Katihar News: आजादी की लड़ाई के नायक थे पिता, अब तंगी में रिक्शा चलाकर पेट पाल रहा बेटा

बिहार के कटिहार में रिक्शा चलाते स्वतंत्रता सेनानी अनूप लाल पासवान के पुत्र
Katihar News: स्वतंत्रता सेनानी अनूप पासवान के पुत्र बताते हैं 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेते हुए उनके पिता ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मनिहारी स्टेशन की रेल पटरी उखाड़ने, मनिहारी थाना, पोस्ट ऑफिस के दस्तावेज जलाने जैसे कई अन्य मामलों में 5 सालों तक जेल में रहे थे.
- News18 Bihar
- Last Updated: January 25, 2021, 6:58 PM IST
कटिहार. देश के स्वतंत्रता आंदोलन (Freedom struggle) में बड़ी भूमिका निभाने वाले कटिहार जिला के स्वतंत्रता सेनानी दिवंगत अनूप लाल पासवान की दूसरी पीढ़ी आज दाने-दाने को मोहताज है. कटिहार (Katihar News) के मनिहारी अनुमंडल वार्ड नंबर 15 सिमबुडी गांव के रहने वाले स्वतंत्रता सेनानी अनुप लाल पासवान की दूसरी पीढ़ी में उनके तीन बेटे हैं. तीन बेटों में बड़ा बेटा इंद्रजीत गोताखोर का काम करता है, कुमारजीत मजदूरी और तीसरा बेटा अमर सिंह पासवान रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पेट पालता है.
इंद्रजीत कहते हैं कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेते हुए उनके पिता मनिहारी स्टेशन की रेल पटरी उखाड़ने, मनिहारी थाना, पोस्ट ऑफिस के दस्तावेज जलाने और मनिहारी गंगा तट के पीर मजार के पीछे तीन जहाज में जमा अंग्रेजों की रसद लूटकर नदी में बहा देने के आरोप में 5 साल से अधिक समय तक जेल की सजा काट चुके हैं. इसके दस्तावेज आज भी उनके पास मौजूद हैं. इसी को लेकर उनके पिता को भारत सरकार ने ताम्रपत्र से भी सम्मानित किया है, मगर उनके जीवित काल में पेंशन के अलावा कुछ भी नहीं मिला है.
अब पिताजी के स्वर्गवास के बाद स्वतंत्रता सेनानी का यह परिवार सम्मान के साथ जीने के लिए संघर्ष कर रहा है. इस मामले में मनिहारी अनुमंडल पदाधिकारी आशुतोष द्विवेदी कहते हैं कि प्रशासन को स्वतंत्रता सेनानी के इस परिवार की बदहाली के बारे में जानकारी ही नहीं थी. अब जानकारी मिली है तो निश्चित तौर पर सरकारी स्तर पर जो भी सहयोग होगा मुहैया करवाया जाएगा.
इंद्रजीत कहते हैं कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेते हुए उनके पिता मनिहारी स्टेशन की रेल पटरी उखाड़ने, मनिहारी थाना, पोस्ट ऑफिस के दस्तावेज जलाने और मनिहारी गंगा तट के पीर मजार के पीछे तीन जहाज में जमा अंग्रेजों की रसद लूटकर नदी में बहा देने के आरोप में 5 साल से अधिक समय तक जेल की सजा काट चुके हैं. इसके दस्तावेज आज भी उनके पास मौजूद हैं. इसी को लेकर उनके पिता को भारत सरकार ने ताम्रपत्र से भी सम्मानित किया है, मगर उनके जीवित काल में पेंशन के अलावा कुछ भी नहीं मिला है.
अब पिताजी के स्वर्गवास के बाद स्वतंत्रता सेनानी का यह परिवार सम्मान के साथ जीने के लिए संघर्ष कर रहा है. इस मामले में मनिहारी अनुमंडल पदाधिकारी आशुतोष द्विवेदी कहते हैं कि प्रशासन को स्वतंत्रता सेनानी के इस परिवार की बदहाली के बारे में जानकारी ही नहीं थी. अब जानकारी मिली है तो निश्चित तौर पर सरकारी स्तर पर जो भी सहयोग होगा मुहैया करवाया जाएगा.