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Fish Farming: बिहार का ये पूरा गांव बना तालाब, खेती-किसानी छोड़ लोग करने लगे मछली पालन

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मछली

मछली पालन कर शिसमा गांव के किसान ने बदल दी अपने गांव की तस्वीर

आलम यह है कि इस गांव को लोग तालाबों का गांव कहने लगे हैं. कारण यह है कि इस गांव में वर्तमान में लगभग 50 से अधिक तालाब म ...अधिक पढ़ें

    रिपोर्ट – अविनाश सिंह

    लखीसराय: भारत की आत्मा गावों में बसती है, क्योंकि पूरे जनसमुदाय तक निवाला पहुंचाने वाला किसान गांवों में बसता है. यहां खेती का कितना महत्व है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की देश की अधिकांश आबादी खेती पर ही निर्भर है. लेकिन किसानों को कई बार प्रकृति के दंश का भी शिकार होना पड़ता है. जिसके चलते उनकी मेहनत पर पानी फिर जाता है और उनकी फसलें बर्बाद हो जाती हैं.

    इन सभी के बीच चट्टानी हौसले के परिचायक किसान अपने नुकसान की भरपाई के लिए कई अन्य तरकीबों की तलाश करते रहते हैं. जिसमें खेती के साथ-साथ पशुपालन, मत्स्य पालन, बकरी पालन, मुर्गी पालन आदि प्रमुख हैं. लगातार खेती में हो रहे नुकसान के बाद लखीसराय जिले के शिसमा गांव के किसानों ने भी सिर्फ खेती पर निर्भर रहना छोड़ दिया है और बड़े पैमाने पर मछली उत्पादन में जुट गए हैं.

    गांव में 50 से ज्यादा तालाब

    अब आलम यह है कि इस गांव को लोग तालाबों का गांव कहने लगे हैं. कारण यह है कि इस गांव में वर्तमान में लगभग 50 से अधिक तालाब मौजूद हैं और कई और तालाबों का खुदाई भी जारी है. जिसमें किसान मछली पालन कर सफलता और खुशहाली की नई कहानी लिख रहे हैं.

    कैसे हुई मछली पालन की शुरुआत

    ग्रामीण बताते हैं कि उनके गांव के ही एक पत्रकार जो कोलकाता में पत्रकारिता कर रहे थे वो वहां से मत्स्य पालन का विधिवत प्रशिक्षण लेकर गांव आए और कुछ अन्य स्थानीय पत्रकारों के साथ मिलकर मत्स्य पालन की शुरुआत की. यह वहां के किसानों के लिए काफी नई बात थी. किसान उनके तालाब खुदवाने से लेकर मछली का जीरा डालना और इसके उत्पादन पर बारीकी से नजर रख रहे थे. जब मछली तालाब से निकली गई और उसे बाजार में बेचा गया तो अच्छा मुनाफा भी हुआ. जिसके बाद किसानों को यह मछली पालन काफी फायदे का सौदा लगा.

    पत्रकारों ने शुरू की मुहिम

    इससे प्रभावित होकर कुछ किसानों ने तालाब खुदवा कर पत्रकार बंधु के सहयोग से मछली पालन की शुरुआत कर दी जो काफी सफल रहा और उन्हें भी अच्छा मुनाफा हाथ लगा. अब क्या था पत्रकारों के द्वारा शुरू किया गया यह मछली पालन गांव वालों के लिए एक प्रेरणा और मुहिम बन गया. अब यहां के अधिकांश किसानों के पास अपना तालाब है और इसमें मछली पालन कर अच्छा मुनाफा कमाने के साथ काफी समृद्ध हो रहे हैं.

    किसानों ने पंगेसियस से शुरू किया मछली पालन

    पंगेसियस मछली पालन का सलाह किसानों को पत्रकारों को टीम से मिला. क्योंकि बिहार और झारखंड की जलवायु पंगेसियस मछली पालन के लिए अनुकूल है. जिसमें 7 से 8 माह में ही यह मछली 1 से 1.5 किलोग्राम वजनी हो जाता है.

    बताते चलें कि यह मछली मीठे पानी में पाए जाने वाली मछलियों के प्रजाति में दुनियां की तीसरी सबसे बड़ी प्रजाति है. इसकी खास बात यह है कि यह वायुश्वासी होती है. यही काम घुलित ऑक्सीजन को सहने की बेजोड़ क्षमता रखती है. इस प्रजाति की कुछ खास विशेषता की अगर बात करें तो इसकी वृद्धि दर काफी अच्छी है. इसकी बाजार में मांग भी व्यापक है. अन्य मछलियों की तुलना में इसमें पतले कांटे भी काफी कम होते हैं.

    इस प्रजाति में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है. वहीं इसकी आहार की बात अगर करें तो इसके लिए फार्मुलेटेड फ्लोटिंग फीड सर्वोत्तम आहार है. अब यहां के किसान इसके अलावा अन्य कई मछलियों के प्रजाति का भी पालन कर रहे हैं.

    तालाब से ही बिक जाती है मछलियां

    किसान बताते हैं कि इसके बाजार की चिंता नहीं रहती है. तालाब के पास ही छोटे-छोटे व्यापारी पहुंचते रहते हैं जो उचित दर पर मछली को खरीदारी कर लेते हैं और स्थानीय बाजार में इसकी बिक्री करते हैं. स्थानीय बाजार में लोकल तालाबों से निकली मछलियों की काफी डिमांड रहती है. जिसके कारण उनकी मछलियां बिना किसी खास परिश्रम के आसानी से बिक जाती है और आशा के अनुरूप मुनाफा भी मिल जाता है.

    Tags: Bihar News, Bihar News in hindi, Trout Fish Farming

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