रिपोर्ट – अविनाश सिंह
लखीसराय: पाल वंश की धार्मिक राजधानी लखीसराय रहा है. पाल वंश के प्रतापी राजा इंद्रद्युम्न उर्फ इंद्रपाल अपने विद्वता, दानशीलता, न्यायप्रियता और सत्यवादिता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध थे. प्रतापी होने के साथ-साथ इंद्रद्युम्न भगवान शिव के अनन्य भक्त भी थे. उन्होंने अपने शासन काल में कई मंदिरों का निर्माण कराने के साथ जिर्णोद्धार भी करवाए थे. इसलिए यहां कई ऐसे धार्मिक धरोहर हैं जो अति प्राचीन होने के साथ-साथ सदियों से लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है.
आस्था के केंद्रों में लखीसराय जिले के बहादुरपर गांव में स्थित पंचवदन महादेव मंदिर है. इस मंदिर में स्थापित अति प्राचीन अलौकिक शिवलिंग पूरे भारत वर्ष में इकलौता है. क्योंकि पूरे भारत वर्ष के शिवालयों में स्थापित भगवान शिव के या तो लिंग स्थापित हैं या फिर देह, लेकिन इस मंदिर में लिंगबेर स्थापित है. यानि की शिवलिंग और भगवान शिव का स्वदेह एक ही में समाहित है.
लिंगबेर की गहराई का अब तक नहीं लगाया जा सका है अंदाजा
यह शिवलिंग लगभग चार फीट व्यास का है एवं इसकी ऊंचाई भी लगभग चार फीट की है. काले पत्थर का अत्यंत चमकीला और अद्भुत लिंगबेर की गहराई का अंदाजा अभी तक नहीं लगाया जा सका है. यह मंदिर लखीसराय जिले के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है. स्थानीय लोगों की माने तो इस मंदिर में विराजमान लिंगबेर ( लिंग और भगवान शिव का स्वदेह एक में समाहित) भगवान श्रीराम द्वारा पूजित सव्यंभू हैं. इस मंदिर से लोगों की आस्था इस कदर जुड़ी हुई है कि कई गावों से लोग यहां विवाह और मुंडन संस्कार को लेकर सदियों से आ रहे हैं. आस्थावानो के मुताबिक यह मनोकामना पूर्ति महादेव हैं जो भी यहां आता है खाली नहीं जाता है.
भगवान राम ने त्रेता युग में की थी यहां पूजा- अर्चना
कई धर्म ग्रंथों में उल्लेखित साक्ष्यों के आधार पर लोगों की ऐसी मान्यताएं है कि भगवान राम त्रेता युग में अत्रि मुनि के सहयोग से यहां पूजा-अर्चना की थी. जिसके बाद पूरे परिवार के साथ श्रृंगी ऋषि धाम में जाकर अपने और भाईयों का मुंडन संस्कार करवाया था. अब आपके मन में सवाल यह उठ रहा होगा कि अत्रि मुनि कौन हैं ? इसलिए इनका संक्षिप्त परिचय जान लीजिए. अत्रि मुनि ब्रम्हा जी के मानस पुत्रों में से एक थे और सती अंसुइया के पति थे. रामायण के अनुसार भगवान राम उनकी भार्या सीता और अनुज लक्ष्मण अत्रि मुनि से उनके आश्रम में मिले थे और जीवन के कई गूढ़ रहस्यों को जाना था. अत्रि ऋषि सनातन परंपरा के सप्तऋषियों में से एक हैं. इस कारण इस शिव लिंगबेर को अत्रेश्वर महादेव भी कहा जाता है.
क्या कहता है बिहार का पुरातत्व निदेशालय
यहां निरीक्षण के लिए आए पुरातत्व निदेशालय के अधिकारी उमाशंकर पंडित के द्वारा अंकित टिप्पणी के मुताबिक पंचवदन महादेव की मूर्ति अपने आप में भारत वर्ष में अकेला है. पूरे भारत वर्ष में लिंग और शरीर सहित ऐसा अलौकिक विशाल कोई दूसरा ऐसा मूर्ति मौजूद नहीं है. यह मनोकामना पूर्ति लिंग बेर है.
मुगल आक्रांताओं ने मूर्ति को क्षतिग्रस्त कर लूट लिए थे हीरा जड़ित मुकुट
मुगल आक्रांताओं ने मूर्ति विभंजन के दौर में इस मूर्ति को उखाड़ने का प्रयास किया था. लेकिन स्थानीय बताते हैं कि उनके पूर्वजों के मुताबिक लगातार दस दिनों के मेहनत के बाद भी आकर्णताओं को मूर्ति को धरती से उखाड़ने में सफलता हाथ नहीं लगी. तो उसने मूर्ति के सिर पर लगे हीरे जड़ित मुकुट और सोने चांदी के आभूषणों के उखड़ लिया और मूर्ति को क्षतिग्रस्त किया. हालांकि अभी भी मूर्ति पर आक्रांताओं के क्रूर निशान साफ देखे जा सकते हैं .
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