रिपोर्ट- मो.महमूद आलम
नालंदा. लोक आस्था के महान पर्व छठ बड़गांव से प्रारंभ होने के कई गाथाएं प्रचलित हैं. नालंदा जिले के बिहार शरीफ स्थित ऐतिहासिक सूर्य मंदिर है. मान्यता है कि भगवान भास्कर को अर्घ्य देने की परंपरा यहीं से शुरू हुई थी. धर्म के जानकार बतातें हैं कि एक बार महर्षि दुर्वाशा भगवान कृष्ण से मिलने के लिए द्वारिका गए थे. महर्षि दुर्वाशा को देखकर श्रीकृष्ण के पौत्र राजा शाम्ब को किसी बात पर हंसी आ गई. जिसके बाद उन्होंने शाम्ब को कुष्ठ रोग होने का श्राप दे दिया. फिर भगवान वासुदेव ने शाम्ब को रोग से निवारण के लिए सूर्य की उपासना और सूर्य राशि की खोज करने की सलाह दी थी.
बड़गांव सूर्य मंदिर द्वापरकालीन युग का
ऐसा कहा जाता है कि बड़गांव सूर्य मंदिर द्वापरकालीन युग का है. मान्यता है कि इसी मंदिर से सूर्य देव की आराधना के त्योहार छठ की शुरूआत हुई थी. यह मंदिर नालंदा जिले के बिहार शरीफ से 10 किमी की दूरी पर बड़गांव में स्थित है. धर्म के जानकारों की मानें तो भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र राजा शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था. जिसके बाद उन्होंने मंदिर के पास स्थित सरोवर में स्नान- ध्यान कर सूर्य की उपासना की थी. जिसके बाद राजा शाम्ब को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली थी.
कृष्ण ने बड़गांव पहुंचकर की भगवान भास्कर की आराधना
धर्म के जानकारों का कहना है कि द्वापरकाल में जब भगवान कृष्ण यहां पांडवों के साथ राजगीर आए हुए थे, तो उन्होंने बड़गांव पहुंचकर भगवान भास्कर की आराधना की थी. इसके अलावे मगध सम्राट जरासंध और अजातशत्रु ने भी यहां पर दीनानाथ की विधि-विधान से पूजा आराधना की थी. इस मंदिर की प्रसिद्धि देश के कोने-कोने तक फैली हुई है. कार्तिक और चैती छठ पर हजारों श्रद्धालु यहां अर्घ्य देने पहुंचते हैं. यह मंदिर देश के 12 प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों में से एक है. बताया जाता है कि 1934 में आए भयावह भूकंप में यह मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था. जिसके बाद इस मंदिर को फिर से दुरुस्त कराया गया था.
राजा शाम्ब को महर्षि दुर्वाशा के श्राप से मुक्ति मिली
भगवान कृष्ण की सलाह पर जब राजा शाम्ब सूर्य राशि की खोज में भटकते-भटकते राजगीर तक आ पहुंचे. इस दौरान उनको जोर की प्यास लगी. इसके बाद उन्होंने अपने सेवक को कहीं से पानी खोजकर लाने का आदेश दिया.जंगल होने के चलते सेवक को दूर-दूर तक पानी नहीं मिला.काफी तलाश करने के बाद सेवक को एक गड्ढे में थोड़ा सा जल मिला. लेकिन वह काफी गंदा था.जब सेवक ने पानी राजा शाम्ब को दिया, तो राजा ने उस पानी से हाथ-पैर को घोकर उस जल का सेवन किया.जल का सेवन करते ही राजा शाम्ब का कुष्ठ रोग ठीक होने लगा. तब राजा ने 49 दिनों तक राजगीर में रहकर सूर्य उपासना और अर्घ्यदान किया, तब जाकर राजा शाम्ब को महर्षि दुर्वाशा के श्राप से मुक्ति मिली थी.
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