रिपोर्ट-मो. महमूद आलम
नालंदा. नालंदा के ज्यादातर किसान खेती से रुख मोड़ रहे हैं, लेकिन कई ऐसे भी किसान हैं जो आधुनिक तरीके से खेती से जुड़े व्यवसाय से मुनाफा कमा रहे हैं. ऐसा ही कुछ कर दिखाया जिले के दीपनगर के किसान सुरेंद्र राम ने.
सुरेंद्र ने 10 एकड़ में खेती, बागवानी, पशुपालन एवं वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन कर रहे हैं. इसके साथ-साथ मधुमक्खी पालन में भी इनकी गहरी रूचि है. सुरेंद्र राम मधुमक्खी पालन से साल भर में करीब 7 लाख की आमदनी कर लेतें हैं. वर्तमान समय में इनके पास मधुमक्खी की 33 से 35 कॉलोनी है.
प्रशिक्षण और अनुभव होना अति आवश्यक है
सुरेंद्र राम बताते हैं कि मधुमक्खी पालन के लिए प्रशिक्षण और अनुभव का होना अति आवश्यक है. मधुमक्खी पालन की शुरुआत जनवरी महीने में करनी चाहिए, जिस समय पौधों और पेड़ों में फूल निकलते हैं. खासकर सरसों के फूल जब निकलतें हैं. इससे किसानों के फसल के उत्पादन भी बढ़ते हैं और साथ ही साथ मधुमक्खी से भी अच्छी आमदनी हो जाती है.
मधुमक्खी पालन के लिए शुरुआती लागत एक कॉलोनी के लिए 7 हजार के करीब लगती है.जिसमें मधुमक्खी रहती है. मधुमक्खी के रहने के लिए कॉलोनी पूर्व में जो मधुमक्खी पालक हैं उनके पास सुलभता से मिल जाती है. उनसे कॉलोनी और मधुमक्खी के फ्रेम को खरीद कर व्यवसाय किया जा सकता है.
एक कॉलोनी से 40-50 केजी निकलता है शहद
एक कॉलोनी से साल भर में करीब 40 से 50 किलो शहद निकलता है. साल में 6 महीने ही जनवरी से लेकर मई-जून के महीने तक मधुमक्खियां अपने छतों में शहद जमा करती है. जिसे मधु निष्कासन यंत्र के सहारे शहद को बाहर निकाला जाता है और प्रोसेसिंग कर शहद को शुद्ध बनाया जाता है. बाजार में 1 kg शहद की कीमत 400 रुपए के करीब है.
सुरेंद्र राम मधुमक्खी पालन में आत्मनिर्भर हो गए. वह पिछले 7 सालों से इस कारोबार से जुड़े हुए हैं. अब उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए बुलाया जाता है. वह अन्य किसानों को मधुमक्खी का पालन कैसे करें, कैसे कम लागत में ज्यादा आमदनी हो इसकी जानकारी देते हैं. अन्य जिलों से भी किसान मधुमक्खी पालन के गुर सीखने के लिए किसान सुरेंद्र राम के पास पहुंचते हैं.
एक कॉलोनी में 10 फ्रेम होते हैं,नर,मादा और रानी मधुमक्खियां रहती है
मधुमक्खियों को एक जगह से दूसरी जगह भेजने के लिए रात का समय उपयुक्त होता है. शाम के वक्त फूलों से रस चूस कर मधुमक्खियां अपने-अपने कॉलोनी में आ जाती है. जिसके बाद कॉलोनी को पैक कर रात के वक्त ही एक जगह से दूसरी जगह भेज दिया जाता है, क्योंकि सूर्योदय होते हीं मधुमक्खियां अपने कॉलोनी से बाहर निकल जाती हैं.
मधुमक्खियों में एक खासियत और है की जिस कॉलोनी में वह रहती है शाम के वक्त उसी कॉलोनी में वापस आती हैं. इसकी वजह है कि रानी मधुमक्खी से एक खास गंध निकलती है जिससे नर एवं मादा मधुमक्खी आकर्षित होती है. एक कॉलोनी में एक ही रानी मधुमक्खी होती है. जिसका काम प्रजनन करना होता है. एक कॉलोनी में 10 फ्रेम होते हैं. जिसमें नर,मादा और रानी मधुमक्खियां रहती है.
मोम से भी अच्छी आमदनी होती है
सुरेंद्र राम बताते हैं कि शहद के अलावा निकलने वाले मोम से भी अच्छी आमदनी की जा सकती है.शहद के प्रोसेसिंग के लिए वह देसी जुगाड़ का इस्तेमाल करते हैं. बड़े बर्तन के अंदर आधा पानी भरकर उसके अंदर लकड़ी का गुटका डाला जाता है. उसके ऊपर छोटे बर्तन में शहद डाला जाता है और पानी को उबाला जाता है. जिससे छोटे बर्तन में शहद उबलने लगता है और उससे गंदगी बाहर निकल जाती है, जिसे बाहर निकाल कर अलग कर लिया जाता है.
इस तरीके से शहद को शुद्ध किया जाता है. वहीं शहद के प्रोसेसिंग के लिए मशीन भी बाजार में उपलब्ध है, जिसकी लागत 3 से 4 लाख आती है. 15 दिनों में मधुमक्खियां कॉलनी के अंदर बने फ्रेम को भर देती है, जिसे काट कर निकाल लिया जाता है और उससे शहद निकाला जाता है. खेतों में बागवानों में मधुमक्खी के कॉलोनी को रखकर अच्छी आमदनी की जा सकती है.
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