नालंदा. भारत में न्याय प्रकिया में लगने वाली देरी को लेकर हमेशा से सवाल खड़े होते हैं. नगरपालिका घोर संसाधनों की कमी से जूझ रहा है. उस पर आये दिन जमीनी विवाद, शराबबंदी, हत्या, लूट, चोरी जैसे मामलों में बढ़ते मुकदमों के बोझ और उसकी जटिलताएं से आम धारणा बन गई है और लोगों को कोर्ट कचहरी के चक्कर से मुक्ति मिलना बड़ा मुश्किल होता जा रहा है. ऐसा ही एक मामला बिहार के नालंदा से आया है जहां एक दो नहीं बल्कि पांच दशक से भी अधिक समय यानी 52 साल बाद एक केस में कोर्ट का फैसला आया है.
नालंदा के जिला बनने से पहले का मामला
मामला बिहार के नालंदा जिला का है जहां किशोर न्याय परिषद के प्रधान दंडाधिकारी के रूप में त्वरित और मानवीय संवेदनाओं को ध्यान में रखकर कई चर्चित फैसले देने वाले जज मानवेन्द्र मिश्र आज भी चर्चा में बने हुए हैं. न्यायाधीश मानवेंद्र मिश्रा एसीजेएम पंचम के पद पर योगदान देने के हफ्ते भर के भीतर ही चार और पांच दशक पुराने दो मामलों का निष्पादन कर एक बार फिर सुर्खियों में हैं. पहला मामला सन् 1970 और दूसरा मामला सन् 1978 से चल रहा था. मुदई और मुदालय यानि सूचक और आरोपी दोनों की मौत के बाद भी मुकदमा जिंदा था. अब जिन दो मामलों का निष्पादन हुआ है उनमें से एक मामला तो नालंदा जिला का गठन होने से पहले का है.
सरकारी कार्य मे बाधा उत्पन्न करने की है मामला
केस- 01 में नालंदा जिला का गठन के पहले वर्तमान के पटना जिला के परसा निवासी स्व. सीता गोप पर 1970 में सरकारी कार्य में बाधा डालने का आरोप लगा था. उस समय नालंदा पटना जिला में ही शामिल था. तब फतुहा थाना में यह मामला दर्ज हुआ था. जब नालंदा जिला का गठन हुआ तो यह केस ट्रांसफर होकर नालंदा चला आया, तब से यह मामला यहां के न्यायालय में ही लंबित चल रहा था. न्याय का इंतजार करते करते इस मामले के सूचक और प्रतिवादी दोनों काल के गाल में समा गये लेकिन मुकदमे की फाइल धूल-गर्दा के नीचे भी सांस लेती रही.
ग्रामीणों ने थानाध्यक्ष पर किया था मामला दर्ज
इसी बीच एसीजेएम 5 का पद संभालने के बाद जज मानवेन्द्र मिश्र ने इसे खंगाला और दोनों की मृत्यु होने का सत्यापन कर मामले का निष्पादन कर दिया. 52 वर्ष बाद इस मामले 25/सी 1970 का निष्पादन हुआ. केस- 02 में सन 1978 में रोहतास जिले के काराकाट निवासी देवराज सिंह हरनौत के थाना प्रभारी थे. थाना प्रभारी के पद पर रहने के दौरान ही उन पर कुछ स्थानीय लोगों ने मामला दर्ज करा दिया था. कांड संख्या 1544/78 अभी तक लंबित चला आ रहा था. जज मानवेन्द्र मिश्र ने इसे भी प्राथमिकता से लेते हुए संबंधित थाने से देवराज सिंह के जीवित या मृत रहने की पुष्टि करायी. बेटे ने भी पिता की मृत्यु की पुष्टि की, जिसके बाद उन्होंने मामले का निष्पादन कर दिया.
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