सरकारी उपेक्षा का शिकार ब्रिटिश काल का रोड रोलर.
पटना. यह सच है कि विरासत और खंडहर किसी भी शहर की पहचान होते हैं. ऐसी ही विरासत और खंडहरों से शहर के गौरवशाली इतिहास का भी पता चलता है. ऐसे ही खंडहरों में कला, संस्कृति और विकास की गाथाएं छुपी होती हैं. पर जब शहरों की पहचान स्थापित करने वाले ये विरासत उपेक्षित किए जाते हैं, नजरअंदाज किए जाते हैं तो ऐसी उपेक्षा परेशान करने वाली होती है.
राजधानी पटना में भी दुर्लभ विरासतों और खंडहरों की भरमार है और इन विरासतों की अनदेखी की कुछ ऐसी भी तस्वीरें हैं जो परेशान करती है. ऐसी ही एक विरासत है जिससे पटना की सड़कें बनवाई गई थीं और आज वह विरासत सड़क के पास कचरे के ढेर पर पड़ी है. इस खबर के साथ यह जो तस्वीर लगी देख रहे हैं आप, यह पुराने कलेक्टेरियट परिसर की है. इस पुराने कलेक्टेरियट परिसर में एक बरगद का पेड़ है और उस पेड़ के पास कूड़े के ढेर में पड़ा यह रोड रोलर अपने आप में अनूठा है. आपको बता दें कि यह रोड रोलर लगभग 121 साल पुराना है. इसे ब्रिटिश शासनकाल में सड़क निर्माण के लिए ब्रिटेन से 1900 ईस्वी में मंगाया गया था. इस रोड रोलर की बनावट अनूठी है. लेकिन 121 साल पुराने इस रोड रोलर को म्यूजियम में रखने की जगह कचरे के ढेर पर छोड़ दिया गया है.
आते जाते लोगों की निगाह बरबस ही इस रोड रोलर पर पड़ जाती है. पर कचरे में पड़े होने के कारण न तो किसी को इसके गौरवशाली इतिहास की जानकारी है और न ही इसके रख-रखाव में कोई रुचि. पटना में खंडहरों और विरासतों पर काम करने वाले वरिष्ठ पत्रकार और इतिहासकार अरुण सिंह बताते हैं कि इस रोड रोलर का निर्माण इंग्लैंड की कंपनी जॉन फाउलर एंड कंपनी लीड्स लिमिटेड ने किया था. जब ब्रिटिश सरकार सड़क का निर्माण करवा रही थी तो सन् 1900 में इसे ब्रिटेन से पटना मंगाया गया था. अब इस तरह के रोड रोलर का निर्माण बंद हो चुका है. ऐसे ही मॉडल का एक रोड रोलर राजस्थान के डूंगरपुर में उदय विलास परिसर स्थित म्यूजियम में रखा गया है. अरुण सिंह बताते हैं कि यह रोड रोलर सरकारी बेरुखी का सबूत है, पर ऐसा भी नहीं कि सिर्फ इसके प्रति सरकार ने बेरुखी दिखाई. ऐसी ही हालत में पटना शहर में कई खंडहर और भी हैं, जिन्होंने पटना को बनते देखा है और अब खुद को बिगड़ते देख रहे हैं. शहर की इन स्मृतियों को सहेजे जाने की जरूरत है.
कचरे के ढेर पर पड़े इस रोड रोलर के इतिहास से लोग अपरिचित हैं. अगर रंग-रोगन कर और थोड़ी साफ-सफाई कर इसे म्यूजियम में लगा दिया जाए, तो यह शहर और म्यूजियम के लिए सम्मान की बात हो सकती है. कई ऐसे पुराने इंजन और मशीनें हैं, जिन्हें आज संभाल कर रखा गया है. पटना के राजेंद्र नगर टर्मिनल पर रखा गया रेलवे इंजन इसका बेहतरीन उदाहरण है. इस इंजन का डिजाइन डब्ल्यूजी है, जो 40 साल पहले तक काम में लाया जाता था. यह इंजन झाझा रेलवे स्टेशन पर खड़ा रहता था, जो माल गाड़ियों को खींचकर पटना तक लाता था. 1992 में इस स्टीम इंजन को बंद कर दिया गया. आज यह इंजन राजेंद्र नगर टर्मिनल की शोभा बढ़ा रहा है.
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