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उपचुनाव परिणाम के बाद बदल जाएगी बिहार की राजनीति, ये होंगे 5 बड़े परिवर्तन

बिहार में हुए उपचुनाव के नतीजों के बाद सियासत में बड़े बदलाव के संकेत हैं.

बिहार में हुए उपचुनाव के नतीजों के बाद सियासत में बड़े बदलाव के संकेत हैं.

अमित शाह के बयान के बाद लगने लगा था कि जेडीयू-बीजेपी के बीच सब ठीक हो गया है, लेकिन उपचुनाव के परिणाम के बाद अब स्पष्ट ...अधिक पढ़ें

पटना. बीते दिनों बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह (Amiot Singh) ने न्यूज 18 के एडिटर इन चीफ राहुल जोशी (Rahul Joshi) से बात करते हुए साफ संदेश देते हुए कहा था कि बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए चुनाव लड़ेगा. इसका असर यह हुआ कि बिहार के स्थानीय नेताओं को नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का नेतृत्व स्वीकार हो गया. दोनों पार्टियों की ओर से विवादित और तनाव भरे बयान आने कम हो गए. लेकिन उपचुनाव के नतीजों में जेडीयू (JDU) की करारी शिकस्त होने के बाद सियासत का रुख अब कुछ-कुछ बदलने लगा है. इसकी शुरुआत बीजेपी के विधान पार्षद टुन्ना पांडे ने कर दी है और नैतिकता के आधार पर सीएम नीतीश कुमार से इस्तीफा मांग लिया है. वहीं, तेजस्वी यादव (Tejaswi Yadav) के लिए कुछ अच्छे संकेत भी सामने आने लगे हैं. जाहिर है बिहार की सियासत में ये तो अभी शुरुआत भर है. आने वाले समय में कई और बड़े बदलाव होंगे जो बिहार की सियासत की दशा-दिशा तय करेंगे.

नीतीश कुमार पर बढ़ेगा दबाव
अमित शाह के बयान के बाद लगने लगा था कि जेडीयू-बीजेपी के बीच सब ठीक हो गया है, लेकिन उपचुनाव के परिणाम के बाद अब स्पष्ट है कि बिहार में बड़ा भाई बने रहने जेडीयू की ख्वाहिश को झटका लगेगा. 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार भी सीटों के बंटवारे के दौरान सियासी मोलभाव करने से बचेंगे और बीजेपी बारगेनिंग की स्थिति में होगी. संभव है कि जिस तरह का फॉर्मूला (17-17 सीटें) लोकसभा चुनाव में अपनाया गया था वही आगामी विधानसभा चुनाव में भी लागू हो. ऐसे में इसे जेडीयू के लिए बैकफुट पर आना ही कहा जाएगा.

तेजस्वी महागठबंधन के सर्वमान्य नेता
दूसरा बड़ा बदलाव बिहार की राजनीति में ये होने जा रहा है कि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ही महागठबंधन के नेता बने रहेंगे. जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी जैसे नेताओं का विरोध भी कुंद पड़ने की संभावना है क्योंकि नाथनगर में मांझी की पार्टी और सिमरी बख्तियारपुर में मुकेश सहनी की पार्टी के प्रत्याशी वोटकटवा ही साबित हुए, बावजूद आरजेडी ने अच्छा प्रदर्शन किया. वहीं कांग्रेस को भी थक हार कर आरजेडी की शरण में ही रहना पड़ेगा क्योंकि जेडीयू की ओर से कोई संकेत नहीं हैं कि वह बीजेपी से अलग होगी.

सीमांचल में बदली सियासत
आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र विधानसभा में एंट्री मारने के बाद असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन (AIMIM) ने अब बिहार विधानसभा (Bihar Assembly) में एंट्री मार ली है. बिहार के किशनगंज सीट पर उनकी पार्टी के उम्मीदवार कमरुल होदा (Kamrul Huda) ने बीजेपी की प्रत्याशी स्वीटी सिंह को मात दे दी. जाहिर है यह सीमांचल (Seemanchal) की राजनीति में बड़े उलटफेर के संकेत हैं. वहीं आरजेडी-जेडीयू के मुस्लिम वोट बैंक में भी बड़ी सेंध लगने के संकेत मिलने लगे हैं.

सुशील मोदी के लिए खतरा!
बीते 17 अक्टूबर को बिहार भाजपा ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाते हुए दरौंदा के कर्णजीत सिंह उर्फ व्यास सिंह को पार्टी से निकाल दिया. उपचुनाव के परिणाम जब आए तो पार्टी को अपनी भूल का अहसास हुआ क्योंकि कर्णजीत सिंह ने जेडीयू प्रत्याशी अजय सिंह को करारी शिकस्त दी. जाहिर है इससे भाजपा नेता और बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी के निर्णयों पर भी सवाल उठेंगे क्योंकि कहा जा रहा है कर्णजीत सिंह को पार्टी से निकलने में उनकी ही भूमिका थी. ऐसे में सुशील मोदी की विश्वसनीयता भाजपा नेतृत्व की नजर में कम भी हो सकती है.

तीसरे मोर्चे की बढ़ी संभावनाएं
बिहार उपचुनाव में जिस तरह से असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने प्रदर्शन किया और महागठबंधन में जिस तरीके से बिखराव नजर आ रहे हैं, इससे आने वाले समय में बिहार में तीसरे मोर्चे की संभावना एक बार फिर जीवित हो सकती है. बता दें कि जन अधिकार पार्टी के नेता पप्पू यादव लगातार कोशिश में हैं कि जीतन राम मांझी, मुकेश सहनी और कन्हैया कुमार जैसे नेताओं को साथ लेकर तीसरे मोर्चे का गठन किया जाए. अब जब ओवैसी की पार्टी ने भी अपना कद बढ़ा लिया है तो इस संभावना के बारे में भी चर्चा शुरू हो सकती है.

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Tags: Assembly by election, Bihar News, Jdu, Nitish kumar, RJD, Tejaswi yadav

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