पटना. बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन (Grand Alliance) में सीट शेयरिंग को लेकर कवायद तेज हो गई है. इसी क्रम में मंगलवार को एक बार फिर CPI, CPI (M) के सदस्य RJD कार्यालय पहुंचे. CPI के राज्य सचिव राम नरेश पांडेय और CPI (M) के राज्य सचिव अवधेश कुमार ने प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह और विधायक भोला यादव से बंद कमरे में मुलाकात की. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक यह मुलाकात सीट शेयरिंग के मसले की आखिरी दौर की बातचीत थी, लेकिन नतीजा क्या निकला अभी तक सामने नहीं आया है.
बता दें कि अपने को हर तरीके से मजबूत करने में लगा महागठबंधन वोटों के बिखराव रोकने के मकसद से छोटी-छोटी पार्टियों को भी अपने में समेटने की कोशिश कर रहा है. लेकिन, बड़े दलों के सामने अपने लिए निर्धारित सीटों की संख्या में कटौती करने की चिंता भी दिख रही है. राजद और कांग्रेस के नेता भी मानते हैं कि अगर छोटे-छोटे दल महागठबंधन में शामिल होते हैं तो सीटों की संख्या उनके लिए कम होगी. महागठबंधन की मजबूती के नाम पर बड़े दल अपनी-अपनी सीटों की संख्या घटाने की बात तो कहते हैं पर फैसला लेने में हिचक रहे हैं.
महागठबंधन ने खुद को मजबूत करने के लिए लेफ्ट के अलावा झामुमो, बसपा जैसे दलों को भी खुद में समेटने की कवायद तेज कर दी है. मकसद है वोटों का बिखराव रोकना. राजद नेतृत्व ने बड़ी पार्टी कांग्रेस को भी जता दिया है. ऐसे में विधानसभा चुनाव में बिहार महागठबंधन में कांग्रेस की सीटें बढ़ने की उम्मीद कम है. दरअसल राजद नेतृत्व ने कांग्रेस आलाकमान को स्पष्ट किया है कि जितने सहयोगी बढ़ाएंगे उतने ही त्याग करने पड़ेंगे.
सवाल सिर्फ कांग्रेस का ही नहीं, सीट राजद की भी कम होंगी. दरअसल रालोसपा और तीनों वाम दलों ने करीब-करीब 50-50 सीटों के लगभग डिमांड रखी है. वीआईपी ने भी 20 से ऊपर सीट मांगी हैं. झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने भी राजद अध्यक्ष लालू यादव से मिल कर झारखंड के पड़ोसी जिलों में 8 सीटों पर दावेदारी जताई है. छोटे सहयोगी दलों की बड़ी मांग ने बड़े दलों को पसोपेश में डाल दिया है.
महागठबंधन के नेता हालात को समझने का दावा भी कर रहे हैं और हर हाल में त्याग का दावा करते नजर आ रहे हैं. राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी, कांग्रेस प्रवक्ता राजेश राठौड़ हो या रालोसपा नेता धीरज सिंह कुशवाहा, सभी महागठबंधन की एकता के लिए पार्टी द्वारा अपना सीट छोड़ने का दावा कर रहे हैं.
हालांकि भाजपा प्रवक्ता निखिल आनंद की मानें तो महाठबंधन में शामिल दल सत्ता के लिए नीति औऱ सिद्धांतों को ताक पर रख अवसरवादी गठजोड़ करने में जुट गये हैं. लेकिन मतदाता इस चाल को बेहतर समझने लगे हैं कि यह केवल सत्ता हासिल करने का प्रयास मात्र है.
बहरहाल, महागठबंधन की मजबूती के नाम पर कौन सा दल खुद कितना त्याग कर पाता है, यह बता पाना फिलहाल मुश्किल है, लेकिन अगर ये सभी दल अपने दावे पर खरे उतरे तो महागठबंधन की मजबूती एनडीए को दमदार टक्कर दे सकती है, इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता.