पटना. यूं तो बीजेपी और जेडीयू (BJP-JDU) दोनों एनडीए गठबंधन में स्वाभाविक सहयोगी पार्टियां हैं. दोनों वर्ष 2005 से एक साथ एक मुद्दे पर सत्ता में आये और पिछले 16 वर्षों से एक साथ हैं. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) हमेशा एनडीए के चेहरा बने और बीजेपी साझा सरकार (NDA Government) में रही. यह दोनों दल दो ध्रुव पर हैं, मगर सियासत में साथ हैं. दोनों के बीच रिश्तों की बनावट ऐसी रही है कि अलग विचार के बावजूद साथ खड़े रहे हैं. जेडीयू समाजवाद की मजबूत पैरोकार है तो बीजेपी राष्ट्रवाद का मजबूत समर्थक.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गुस्सा सार्वजनिक रूप से बिरले ही दिखाई पड़ता है. कहा जाता है कि नीतीश कुमार अपनी भावनाओं को काबू में रखते हैं, चेहरे पर वो भाव नहीं आने देते जिससे उनके विरोधी समझ सकें कि वो क्या सोच रहे हैं. मगर सोमवार को नीतीश कुमार ने सदन में जो गुस्से का इजहार किया उसने आपसी उलझनों की कई परतें खोल दी. इससे कई सवाल खड़े होते हैं. क्या उनका यह गुस्सा स्वाभाविक था या फिर सत्ता के समीकरण के उलझन और गठबंधन की पेचीदगी का नतीजा था.
BJP-JDU के सियासी उलझनों को समझने की जरूरत
नीतीश कुमार के महागठबंधन के साथ लगभग डेढ़ साल तक चली सरकार को छोड़ दें तो बिहार की सत्ता में वो शुरू से बीजेपी के साथ बने हुए हैं. मगर पिछले एक-डेढ़ साल में बीजेपी और जेडीयू के बीच कई मुद्दों पर आपसी तकरार दिखी है. केंद्र की एनडीए सरकार के सबसे बड़े सहयोगी होने के बावजूद जेडीयू के मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने के फैसले ने सबको चौंकाया था. कहा गया कि मनमाफिक मंत्री पद नहीं मिलने के कारण जेडीयू मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुई. हालांकि बाद में मंत्रिमंडल विस्तार में जेडीयू शामिल हुई.
जातीय जनगणना पर आमने-सामने हैं दोनों दल
जातीय जनगणना के सवाल पर बीजेपी और जेडीयू आमने-सामने खड़े दिखे हैं. सीएम नीतीश कुमार ने स्पष्ट कर दिया है कि जातीय जनगणना जरूरी है पर बीजेपी ने इससे इनकार कर दिया है. विशेष राज्य का दर्जा दोनों दलों के बीच सबसे बड़ी सियासी उलझन है. केंद्र ने साफ कर दिया है कि अब विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जाएगा, जिस राज्य को जरूरत होगी उसे विशेष पैकेज दिया जाएगा. वहीं, जेडीयू विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर लगातार दबाब बनाये हुए है. विशेष राज्य के दर्जे के सवाल पर जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर प्रवक्ता तक मुहिम चलाते रहे हैं. जेडीयू विशेष राज्य के दर्जे को अपनी सबसे मजबूत मांग मानती है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सबसे बड़ी और महत्वाकांक्षी योजना पूर्ण शराबबंदी के सवाल पर जेडीयू और विशेषज्ञों की नजर में यह गुस्सा चार राज्यों में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव भी एक बड़ा कारण है. उत्तर प्रदेश में जेडीयू ने बीजेपी के साथ गठबंधन बना कर चुनाव लड़ने की बहुत कोशिश की मगर अंतिम समय में बात न बन सकी, और जेडीयू को यहां अकेले ही चुनाव मैदान में जाना पड़ा.
सदन में CM के गुस्से का तत्कालीन कारण कितना जिम्मेदार?
सोमवार को सदन में जब सीएम नीतीश कुमार पहुंचे और जिस तरह उन्होंने अपने गुस्से का इजहार किया वो सबको चौंकाने वाला था. नीतीश कुमार की नजरों से देखें तो यह गुस्सा एक ही मसले को बार-बार सदन में उठाने का नतीजा था. सरस्वती पूजा के अवसर पर लखीसराय में डीजे बजाने के कारण कोरोना गाइडलाइन का उल्लंघन होने के कारण कई लोगों पर मुकदमा दर्ज किया गया था. कुछ लोगों पर की गई पुलिस की कार्रवाई से विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा संतुष्ट नहीं थे. चूंकि यह उनका क्षेत्र है इसलिए स्पीकर विजय सिन्हा ने सबसे पहले लखीसराय में पुलिस के सामने मामला उठाया था.
अंदरखाने के द्वंद्व में उलझी दोनों पार्टियां
इस मुद्दे पर पहले भी सदन में जबाब दिया जा चुका था. मगर सोमवार को जब इस पर एक बार फिर सवाल हुआ तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आगबबूला हो गए. उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि ऐसे सदन नहीं चलेगा. जांच की रिपोर्ट कोर्ट में जाता है, न कि सदन में. वहीं, विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा ने भी मुख्यमंत्री को शब्दों में सदन के नियमों का हवाला दिया. सदन की कार्यवाही समाप्त होने के बाद अब यह मामला शांत होता दिख रहा है. मगर राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो दोनों (बीजेपी और जेडीयू) के बीच अंदरखाने चल रहे आपसी द्वंद्व इतनी जल्दी खत्म होने वाली नहीं.
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