उपेंद्र कुशवाहा ( न्यूज 18 फोटो)
लोकसभा चुनाव 2019 करीब है. इसको लेकर सभी पार्टियां अपने-अपने तरीके से चुनाव की तैयारी में जुट गई है. वहीं बिहार एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर सभी घटक दलों के बीच खींचतान जारी है. एनडीए के घटक दल में जेडीयू अपने आपको बड़ा भाई साबित करने के लिये ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है. वहीं एलजेपी खुद के पुराना साथी होने का हवाला देकर 2014 में मिले 6 सीटों को फिर से पाना चाहती है.
ऐसे आलम में बीजेपी के सहयोगी दलो में शामिल आरएलएसपी के अध्यक्ष और केन्द्रीय राज्य मानव संसधान विकास मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा जो पहले से नाराज थे, सीटों के बंटवारे में सबसे नीचले पायदान पर खड़े नजर आ रहे हैं. केन्द्र में मंत्री बनने के बाद कुछ वर्षों तक सबकुछ ठीक था, लेकिन जब केन्द्र में पूछ घटी तो बिहार में अपना दबदबा बनाये रखने के लिये बिहार सरकार के खिलाफ पटना में शिक्षा को लेकर धरना पर बैठ गए थे. राज्य सरकार के खिलाफ कई बार उनकी नाराजगी भी सामने आ चुकी है.
सीट बंटवारे को लेकर चल रहे कौतुहल के बीच फिर से तल्खी बढ़ी तो उपेन्द्र कुशवाहा ने एनडीए से अलग होने का मन बनाया है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक उपेन्द्र कुशवाहा अक्टुबर के पहले सप्ताह या नवम्बर के दूसरे सप्ताह में एनडीए का साथ छोडकर महागठबंधन का दामन थाम सकते हैं. इसके मद्देनजर बीजेपी ने कुशवाहा वोट बैंक को अपने साथ जोड़े रखने के लिये इस जाति के दूसरे चेहरे को धीरे-धीरे सामने लाने की तैयारी शुरू कर दी है.
जानकारी के मुताबिक इसके लिए पूर्व मंत्री सम्राट चौधरी को बीजेपी अपना चेहरा बनाना चाहती है. सम्राट को नीतीश कुमार का सहारा मिल रहा है. इसमें नीतीश कुमार उपेन्द्र कुशवाहा से अपनी पुरानी अदावत भी साध रहे हैं और खुद की सीटों की संख्या में इजाफा भी करना चाहते हैं. दरअसल सम्राट चौधरी कुशवाहा जाति से आते हैं और 1999 में पहली बार राबड़ी देवी के मंत्रिमंडल में मापतौल व बागवानी मंत्री बने थे.
साल 2010 में वो आरजेडी के टिकट पर परबत्ता से विधायक बने. उसके बाद जेडीयू में शामिल हो गये थे. सम्राट चौधरी सत्ता में रहने के दौरान नीतीश कुमार के काफी करीबी माने जाते थे. इस बीच 2014 लोकसभा चुनाव में जेडीयू के बेहद खराब प्रदर्शन के बाद नीतीश कुमार ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. जब जीतनराम मांझी मुख्यमंत्री बने तो सम्राट चौधरी बिहार में नगर विकास मंत्री बनाये गये.
विधानसभा चुनाव 2015 के वक्त नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के बीच हुए गठबंधन को लेकर जीतनराम मांझी जब अलग पड़े तो सम्राट ने मांझी की पार्टी का दामन थाम लिया. हालांकि इस बीच सम्राट अपनी राजनीतिक सक्रियता बरकरार रखते हुए 11 जून 2017 को बीजेपी से शामिल हो गए. अब बीजेपी वोट बैंक की परिस्थितियों को समझकर उन्हे उपेन्द्र कुशवाहा को मात देने के लिये चेहरा बनाने की तैयारी में है.
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