भाजपा ने शाहनवाज हुसैन को MLC बनाया तो बिहार में हुई मुस्लिम सियासत की हलचल तेज

बीजेपी ने शाहनवाज हुसैन को बिहार में एमएलसी बनाया है.
बिहार में जब भाजपा ने शाहनवाज हुसैन को MLC बना दिया, उसके बाद बिहार में मुस्लिम राजनीति को लेकर लगभग तमाम पार्टियों में हलचल तेज हो गई है. लगभग तमाम पार्टियां मुस्लिम हितैषी होने का दावा करने लगीं.
- News18Hindi
- Last Updated: January 17, 2021, 5:10 PM IST
पटना. बिहार (Bihar) में मुस्लिम सियासत (Muslim politics) दोराहे पर खड़ा है. बिहार में इस वक्त जो भी सियासी पार्टियां हैं, किसी भी पार्टी में कोई ऐसा मुस्लिम चेहरा नहीं है, जिसका जनाधार पूरे मुस्लिम समाज में हो. इसी उधेड़बुन के बीच भाजपा (BJP) ने शाहनवाज हुसैन (Shahnavaz hussain) को MLC बना बड़ा दांव खेला है, वो भी तब जब AIMIM जैसी पार्टी बिहार में लगातार मजबूत हो रही है. विधानसभा चुनाव में AIMIM ने 5 सीट पर जीत हासिल की. साथ ही कई सीटों पर अपनी मजबूत पकड़ बनाई है. आने वाले समय के लिए भी AIMIM ने बड़ा दांव खेलने की तैयारी कर रखी है. MIM के प्रदेश अध्यक्ष अखतरुल ईमान कहते हैं कि हम ईमानदारी से मुस्लिम समाज के विकास की राजनीति करते हैं. दूसरी पार्टियों ने मुस्लिम समाज को सिर्फ ठगने का काम किया है. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. हमारे पास असदुद्दीन ओवेसी (Asaduddin Owaisi) जैसे राष्ट्रीय नेता हैं जिनका जनाधार पूरे देश में है, इसका फायदा बिहार में भी मिलेगा.
राजद, कांग्रेस और JDU जैसी पार्टियां आज की तारिख में मजबूती से दावा नहीं कर सकती हैं कि मुस्लिम वोटर उसके साथ खड़े हैं. भले ही राजद MY समीकरण का दावा कर मुस्लिम वोटर की रहनुमाई का दावा कर ले, लेकिन विधानसभा चुनाव में कोशी, मिथिलांचल और सीमांचल जैसे इलाके में राजद की दाल नहीं गल पाई. हालात ये रहे कि अब्दुल बारी सिद्दीकी जैसे बड़े कद्दावर नेता चुनाव हार गए और राजद के सत्ता में आने का सपना इन्हीं इलाकों ने चूर-चूर कर दिया. राजद नेता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि राजद ही एक ऐसी पार्टी है जो मुस्लिमों की सबसे बड़ी हितैषी हो सकती है. लालू यादव और तेजस्वी यादव जैसे नेता मुस्लिमों के लिए मजबूती से खड़े हैं. कुछ लोगों ने वोटों का बंटवारा कर राजनीतिक रोटी सेक ली हो, लेकिन आज भी मुस्लिम समाज राजद को अपना शुभचिंतक मानती है.
कुछ ऐसे ही हालात कांग्रेस के भी हैं. बिहार कांग्रेस में कभी बड़े-बड़े मुस्लिम चेहरे हुआ करते थे. लेकिन आज एक अदद मुस्लिम नेता की कमी से कांग्रेस जूझ रही है. तारिक अनवर जैसे नेता तो हैं, लेकिन वे अपना चुनाव ही हार गए थे. किशनगंज जैसा मजबूत किला भी कांग्रेस से छिटक गया. कोकब कादरी, शकील खान जैसे नेता कांग्रेस के पास हैं, लेकिन उनका भी कोई ऐसा जनाधार नहीं है कि वे मुस्लिम समाज को अपने पीछे कर सकें.
कोकब कादरी कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी ही एक ऐसी पार्टी है, जो मुस्लिमों के साथ-साथ समाज के हर वर्ग को लेकर चलती है. कांग्रेस के सेल्यूलरिजम के झंडे के नीचे तमाम पार्टियां आती हैं, लेकिन मुस्लिम समाज आज भी कांग्रेस की तरफ ही देखता है.वही JDU के नेता गुलाम रसूल बलीयावि कहते हैं कि मुस्लिमों के नेता हमारे पार्टी में भी कई हैं, लेकिन मुस्लिम नेता से कुछ नहीं होता. जितना काम नीतीश कुमार ने मुस्लिम समाज के लिए किया है, उतना शायद ही किसी नेता ने मुस्लिम समाज के लिए किया होगा. चुनाव में भले ही हमें खुलकर जितना वोट मिलना चाहिए था, मुस्लिम समाज ने उतना वोट नहीं दिया. लेकिन आज भी मुस्लिम समाज में नीतीश कुमार की पकड़ सबसे मजबूत है.
लेकिन भाजपा ने शाहनवाज हुसैन को बिहार की सियासी जमीन पर उतार कर बड़ा दांव चला है. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्यक्ष कहते हैं कि शाहनवाज हुसैन की छवि एक सेक्यूलर मुस्लिम नेता की रही है, जिसका फायदा भाजपा को मिल सकता है और उनका कद फिलहाल बिहार में तमाम बड़े मुस्लिम चेहरे पर भारी पड़ सकता है. शाहनवाज के बिहार की सियासत में आने से तमाम पार्टियों के सामने अपनी पार्टी में बड़े जनाधार वाले मुस्लिम चेहरे को आगे करने की चुनौती बढ़ गई है.
राजद, कांग्रेस और JDU जैसी पार्टियां आज की तारिख में मजबूती से दावा नहीं कर सकती हैं कि मुस्लिम वोटर उसके साथ खड़े हैं. भले ही राजद MY समीकरण का दावा कर मुस्लिम वोटर की रहनुमाई का दावा कर ले, लेकिन विधानसभा चुनाव में कोशी, मिथिलांचल और सीमांचल जैसे इलाके में राजद की दाल नहीं गल पाई. हालात ये रहे कि अब्दुल बारी सिद्दीकी जैसे बड़े कद्दावर नेता चुनाव हार गए और राजद के सत्ता में आने का सपना इन्हीं इलाकों ने चूर-चूर कर दिया. राजद नेता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि राजद ही एक ऐसी पार्टी है जो मुस्लिमों की सबसे बड़ी हितैषी हो सकती है. लालू यादव और तेजस्वी यादव जैसे नेता मुस्लिमों के लिए मजबूती से खड़े हैं. कुछ लोगों ने वोटों का बंटवारा कर राजनीतिक रोटी सेक ली हो, लेकिन आज भी मुस्लिम समाज राजद को अपना शुभचिंतक मानती है.
कुछ ऐसे ही हालात कांग्रेस के भी हैं. बिहार कांग्रेस में कभी बड़े-बड़े मुस्लिम चेहरे हुआ करते थे. लेकिन आज एक अदद मुस्लिम नेता की कमी से कांग्रेस जूझ रही है. तारिक अनवर जैसे नेता तो हैं, लेकिन वे अपना चुनाव ही हार गए थे. किशनगंज जैसा मजबूत किला भी कांग्रेस से छिटक गया. कोकब कादरी, शकील खान जैसे नेता कांग्रेस के पास हैं, लेकिन उनका भी कोई ऐसा जनाधार नहीं है कि वे मुस्लिम समाज को अपने पीछे कर सकें.
कोकब कादरी कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी ही एक ऐसी पार्टी है, जो मुस्लिमों के साथ-साथ समाज के हर वर्ग को लेकर चलती है. कांग्रेस के सेल्यूलरिजम के झंडे के नीचे तमाम पार्टियां आती हैं, लेकिन मुस्लिम समाज आज भी कांग्रेस की तरफ ही देखता है.वही JDU के नेता गुलाम रसूल बलीयावि कहते हैं कि मुस्लिमों के नेता हमारे पार्टी में भी कई हैं, लेकिन मुस्लिम नेता से कुछ नहीं होता. जितना काम नीतीश कुमार ने मुस्लिम समाज के लिए किया है, उतना शायद ही किसी नेता ने मुस्लिम समाज के लिए किया होगा. चुनाव में भले ही हमें खुलकर जितना वोट मिलना चाहिए था, मुस्लिम समाज ने उतना वोट नहीं दिया. लेकिन आज भी मुस्लिम समाज में नीतीश कुमार की पकड़ सबसे मजबूत है.
लेकिन भाजपा ने शाहनवाज हुसैन को बिहार की सियासी जमीन पर उतार कर बड़ा दांव चला है. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्यक्ष कहते हैं कि शाहनवाज हुसैन की छवि एक सेक्यूलर मुस्लिम नेता की रही है, जिसका फायदा भाजपा को मिल सकता है और उनका कद फिलहाल बिहार में तमाम बड़े मुस्लिम चेहरे पर भारी पड़ सकता है. शाहनवाज के बिहार की सियासत में आने से तमाम पार्टियों के सामने अपनी पार्टी में बड़े जनाधार वाले मुस्लिम चेहरे को आगे करने की चुनौती बढ़ गई है.