प्रतीकात्मक तस्वीर.
रिपोर्ट- उधव कृष्ण
पटना. चैत्र नवरात्र के चौथे दिन दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है. नवरात्रि के चौथे रोज मां कुष्मांडाकी विधि- विधान के साथ पूजा करने से भक्तों को लाभ मिलता है. मां कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है. इनके हाथों में धनुष, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमल, और कमंडल सुशोभित है. माना जाता है कि संसार की रचना से पहले जब चारों ओर घना अंधेरा छाया हुआ था, तब देवी के इस स्वरूप से ही ब्रह्मांड का सृजन हुआ था. मान्यता है कि मां कुष्मांडा की उपासना करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है.
किस राशि के लिए है शुभ
पंडित विनोद झा बताते हैं कि इस दिन इन सभी राशियों पर विशेष कृपा भी बरसती है. वे आगे बताते हैं कि ये दिनसभी 12 राशि वालों के लिए शुभ फलदायी होता है. हालांकि, वृषभ और तुला राशि वालों के लिए यह दिन खास फलदायी होता है.
यह है मां कूष्मांडा की पूजा विधि
मां कुष्मांडा की पूजा पीले रंग के वस्त्र धारण कर किए जाने की परंपरा है. मां कुष्मांडाकीपूजा के समय इन्हें पीला चंदन लगाया जाता है. इसके अलावा कुमकुम, मौली, अक्षत भी चढ़ाए जाते हैं. एक पान के पत्ते में थोड़ा सा केसर लेकर और ओम बृं बृहस्पते नमः मंत्र बोलते हुए देवी को अर्पित किया जाता है, तथा ॐ कुष्माण्डायै नम: मंत्र का एक माला जाप करते हुए दुर्गा सप्तशती या फिर सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ किया जाता है. पंडित विनोद झा के अनुसार यह उपाय खासकर अविवाहित लड़कियों को जरूर करना चाहिए. इससे उन्हें सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है. मां कुष्मांडाको वंश वृद्धि के देवी के रूप में भी पूजा जाता है.
यह है पूजन का शुभ मुहूर्त
पंडित विनोद झा बताते हैं कि चौथे दिन यानी आज मां कुष्मांडा की पूजा आराधना की जाती है. जिसका शुभ मुहूर्त शाम 4:23 बजे तक रहेगा. माता को पीला रंग खूब प्रिय है. इस दिन देवी की पूजा में पीले रंग के वस्त्र, पीली चूड़ी, पीली मिठाई अर्पित करने से भक्तों को अनन्य लाभ व फल की प्राप्ति होती है. पूजन के समय \”ॐ देवी कुष्माण्डायै नमः या देवी सर्वभूतेषु मां कुष्माण्डा रूपेण संस्थिता,नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥\” का मंत्र जाप करना चाहिए.
ये है मां कूष्मांडा का विशेष भोग
मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाया जाता है. इससे बुद्धि, यश में वृद्धि और निर्णय लेने की क्षमता में बढ़ोतरी होती है. इसके साथ ही सभी रोग भी नष्ट हो जाते हैं. पंडित विनोद बताते हैं कि मालपुए का भोग लगाने के बाद इसे खुद खाना चाहिए और ब्राह्मण को दान देना चाहिए.
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