पिछले महीने 1 मई को शहाबुद्दीन की मौत के बाद उनके शव को बिहार के सीवान ले जाए जाने को लेकर दिल्ली से पटना तक सियासी बयानबाजी देखने को मिली थी. (फाइल फोटो)
पटना/नई दिल्ली. बिहार के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन की मौत के बाद भी विवादों का सिलसिला थम नहीं रहा. पहले उनके शव को दिल्ली से सीवान लाए जाने को लेकर मामला सुर्खियों में रहा और अब उनकी पक्की कब्र बनाने का मामला तूल पकड़ रहा है. दरअसल, शहाबुद्दीन के शव को दिल्ली गेट स्थित जदीद कब्रिस्तान में दफनाया गया है. यहां जगह की कमी के कारण पक्की कब्र बनाने की मनाही पहले से ही है. कोरोना संक्रमण के कारण लगातार हो रही मौतों के कारण इस पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है, लेकिन शहाबुद्दीन के कब्र को पक्की किया जा रहा है जो विवाद का कारण बन गया है.
बता दें कि तिहाड़ जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे शहाबुद्दीन कोरोना से संक्रमित हो गए थे. बीते 1 मई को शहाबुद्दीन की मौत इलाज के दौरान हो गई थी. उनके परिजन शव को बिहार के सीवान में पैतृक गांव प्रतापपुर में दफनाना चाहते थे, लेकिन कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए इसकी इजाजत नहीं दी गई. अंत में शहाबुद्दीन के शव को दिल्ली गेट स्थित जदीद कब्रिस्तान में दफना दिया गया. मिली जानकारी के अनुसार अब उसी कब्र को पक्का किए जाने की प्रक्रिया शुरू की गई है, जिसपर कब्रिस्तान कमिटी को ऐतराज है.
कब्रिस्तान कमिटी को ऐतराज
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कब्र को बिना इजाजत ही पक्का करने की शुरुआत हुई तो कब्रिस्तान की कमेटी ने उसे रुकवाने की भी कोशिश की. पुलिस भी बुलाई गई, लेकिन काम जारी ही रहा. बताया जा रहा है कि फिर से काम शुरू हो गया है, जिसपर कब्रिस्तान कमिटी को आपत्ति है. हालांकि, फिलहाल इसपर कमेटी का कोई सदस्य कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हो रहा है.
कब्र पक्की मामले की जांच की मांग
मंसूरी वेलफेयर फाउंडेशन के अध्यक्ष हसनैन अख्तर मंसूरी का तर्क है कि आम लाेगों के लिए अलग और पूर्व सांसद के लिए अलग नियम नहीं हो सकते हैं. मीडिया से बातचीत में उन्होंने बताया कि वर्ष 1992 में ही कब्रिस्तान कमेटी ने एक कानून बनाकर जदीद कब्रिस्तान में कब्र को पक्की करने पर रोक लगा दी थी. अब इस कब्र को जगह घेर कर ईंट से कैसे पक्की की जा रही है, इसकी जांच होनी चाहिए.
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