पटना. शराबबंदी कानून (Liquor Ban Policy) को लेकर एक बार फिर से बिहार में चर्चाओं का बाजार गर्म है. दरअसल हाल के दिनों में जिस तरह से बिहार में शराब से जुड़े मामलों का खुलासा हो रहा है और संदेहास्पद स्थिति में लोगों की मौत की वजह शराब बताई जा रही है, ऐसे में इस बात के कयास लगाए जाने लगे हैं कि नीतीश सरकार अपने महत्वकांक्षी फैसले यानी शराबबंदी कानून में संशोधन (Change In Liquor Prohibition Law) ला सकती है. हालांकि इस मुद्दे पर किसी भी तरह से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है, लेकिन माना जा रहा है कि अंदरखाने से ब्यूरोक्रेसी और सरकार में इस बात को लेकर विचार-विमर्श चल रहा है कि शराबबंदी कानून में कुछ फेरबदल किया जाए.
पिछले कुछ दिनों में बिहार में नालंदा और छपरा में जहरीली शराब से लोगों की मौत हुई है जबकि उससे पहले भी ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं. दूसरी ओर शराब की तस्करी और सेवन दोनों में संलिप्त पाये जाने वाले भी लगातार गिरफ्तार किए जा रहे हैं, लेकिन उनको इस कानून के तहत सजा दिलाने का प्रावधान है, उस पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
सूत्रों की मानें तो मद्य निषेध उत्पाद एवं निबंधन विभाग द्वारा इसको लेकर संशोधन प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है. नए संशोधन में शराब पीने के अपराध में गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों को राहत मिल सकती है. शराब पीने के जुर्म में जेल भेजे जाने के बजाय मजिस्ट्रेट के सामने तय जुर्माना राशि को भरने के बाद छोड़े जाने का प्रावधान लागू किया जा सकता है. सूत्रों के मुताबिक जुर्माना नहीं भरने की हालत में ही अभियुक्तों को जेल भेजा जाएगा. हालांकि नए प्रावधान के मुताबिक शराब बनाने और बेचने वालों पर पहले की तरह सख्त कार्रवाई जारी रहेगी. इस संशोधन प्रस्ताव पर फिलहाल मद्य निषेध विभाग के मंत्री से लेकर अधिकारी तक कुछ भी बोलने से बचते नजर आ रहे हैं.
बिहार में इस बात की भी चर्चा है कि बिहार विधानमंडल के आगामी बजट सत्र में शराबबंदी कानून में संशोधन का प्रस्ताव सरकार सदन में ला सकती है. नई व्यवस्था का मकसद न्यायालय में लंबित मामलों को कम करने के अलावा बड़े शराब माफियाओं और तस्करों को जल्द से जल्द सजा दिलवाना है. बता दें कि बिहार में अप्रैल 2016 से पूर्ण शराबबंदी कानून लागू है. इसके तहत शराब बेचने और खरीदने पर प्रतिबंध है, इसका उल्लंघन करने पर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है. मिली जानकारी के मुताबिक बिहार में अभी 30 से 40 प्रतिशत केस शराब पीने वालों के खिलाफ दर्ज है. ऐसे में शराब तस्करी से जुड़े हुए मामलों की सुनवाई प्रभावित हो रही है.
माना जा रहा है कि संशोधन के बाद न्यायालयों में लंबित आवेदनों का दबाव कम हो सकता है. ऐसा होने पर बड़े शराब माफिया और तस्करों के मामलों की सुनवाई जल्द पूरी की जा सकेगी. सरकार भी चाहती है कि ट्रायल जल्द पूरा कर बड़े शराब माफियाओं को सजा दिलाने की गति बढ़ायी जाए.
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