Analysis: पासवान का बंगला वीरान, चिराग कहीं और है, रोशनी कहीं और हो रही है

बीजेपी चाह कर भी चिराग पासवान की मदद नहीं कर पा रही...
चिराग पासवान की राजनीतिक शैली से एलजेपी के कई नेता नाखुश हैं. पार्टी को कई नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार का व्यक्तिगत विरोध और जेडीयू के खिलाफ प्रत्याशी देना, चिराग पासवान का गलत फैसला था. बिहार विधानसभा चुनाव में शर्मनाक हार से एलजेपी में हताशा है. अब सवाल ये है कि क्या चिराग हताश पार्टी नेताओं में जोश फूंक पाएंगे?
- News18Hindi
- Last Updated: February 25, 2021, 8:44 PM IST
चिराग कहां, रोशनी कहां. चिराग कहीं और है और रोशनी कहीं और हो रही है. जिस एलजेपी में एक-एक ईंट जोड़कर रामविलास पासवान ने बंगला बनाया था, अब वह वीरान होने के कगार पर है. अपने साथ छोड़ रहे हैं. मैत्री भाव रखने वाली बीजेपी ने नजरें फेर ली हैं. जेडीयू ने तो एलजेपी के लिए जैसे को तैसा वाली नीति अपना रखी है. खुद एलजेपी में भी असंतोष है. कई नेताओं का मानना है कि 37 साल के चिराग पासवान को जल्दबाजी में एलजेपी की बागडोर सौंप दी गई थी. उनका अति आत्मविश्वास पार्टी को ले डूबा. रामविलास पासवान के छोटे भाई और हाजीपुर के सांसद पशुपति कुमार पारस ने जेडीयू के खिलाफ चुनाव लड़ने का विरोध किया था. उनका कहना था कि नीतीश कुमार को टारगेट कर चुनाव लड़ना ठीक नहीं लेकिन चिराग ने किसी की नहीं सुनी. एक समय बिहार में लालू यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान को राजनीति की 'त्रिमूर्ति' कहा जाता था. तब एलजेपी, बिहार की राजनीति में एक अहम भागीदार थी. अब तो वजूद पर संकट है.
बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की नकारात्मक राजनीति का असर अब साफ दिखने लगा है. चिराग ने जेडीयू के नुकासन पहुंचाया. अब जेडीयू एलजेपी की राह में रोड़ा है. एलजेपी अब एनडीए में है या नहीं है, इस पर भी सवाल खड़ा हो गया है. रामविलास पासवान के निधन के बाद एलजेपी के एक
सांसद केन्द्र में मंत्री बन सकते थे लेकिन जेडीयू ने एलजेपी के खिलाफ म्यान से तलवार खींच ली है. बीजेपी चाह कर भी चिराग की मदद नहीं कर पा रही. जेडीयू के विरोध के कारण एलजेपी को केंद्रीय कैबिनेट में जगह नहीं मिल रही. बजट पेश होने से पहले इस साल जनवरी में एनडीए की बैठक बुलाई गई थी. संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने एलजेपी को निमंत्रण भेज भी दिया था. इस बात से जब नीतीश कुमार नाराज हो गए, तब बीजेपी को कदम वापस खींचने पड़े. चिराग पासवान को फोन कर के बताया गया कि वे इस बैठक में आमंत्रित नहीं किए गए हैं. एलजेपी अब लाचार है.
बिहार विधानसभा चुनाव में शर्मनाक हार से एलजेपी में हताशा है. चिराग पासवान की राजनीतिक शैली से भी नाखुशी है. पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा है. चिराग इनका हौसला नहीं बढ़ा पा रहे. पार्टी के एकमात्र विधायक राज कुमार सिंह के जेडीयू में जाने की चर्चा है. वे नीतीश कुमार से मिल भी चुके हैं. हाल ही में एलजेपी के करीब 200 नेता जेडीयू में शामिल हुए हैं. एलजेपी की एकमात्र एमएलसी नूतन सिंह भी अब बीजेपी में शामिल हो चुकी हैं. पार्टी को कई नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार का व्यक्तिगत विरोध और जेडीयू के खिलाफ प्रत्याशी देना, चिराग पासवान का गलत
फैसला था. इन नेताओं की राय है कि रामविलास पासवान के निधन के बाद पार्टी को बहुत संभल कर फैसला लेना चाहिए था. ये वक्त एलजेपी को नए सिरे से खड़ा करने का था. यह काम एनडीए में रहकर ही किया जा सकता था लेकिन चिराग की एकतरफा सोच ने ऐसा होने नहीं दिया. रामविलास पासवान जनता दल में कई साल तक राजनीतिक शक्ति अर्जित करने के बाद ही अलग हुए थे लेकिन चिराग ने छह साल में ही हड़बड़ी कर दी.
बिहार में एलजेपी का संगठन इतना मजबूत नहीं था कि वह 134 सीटों पर चुनाव लड़ती. लेकिन चिराग ने उधार के खिलाड़ियों बारो प्लेयर से मैच खेलने का जोखिम उठाया था. इससे टीम का बेड़ा गर्क हो गया. सिर्फ एक जीत मिली. अब सवाल ये है कि क्या चिराग हताश पार्टी नेताओं में जोश फूंक पाएंगे? दो दिन
पहले चिराग ने जो फैसला लिया है उससे पार्टी में नए सिरे से नाखुशी पनप सकती है. उन्होंने अपने चचेरे भाई और समस्तीपुर के सांसद प्रिंस राज के अधिकारों में एक तरह से कटौती कर दी है. पूर्व विधायक राजू तिवारी को बिहार एलजेपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है. सांसद प्रिंस राज बिहार एलजेपी को अध्यक्ष हैं.
उनके रहते कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करने की क्या जरूरत थी? इस सवाल पर चिराग पासवान के समर्थकों का कहना है कि यह फैसला सामाजिक समीकरण को ध्यान में रख कर लिया गया है. सवर्ण और दलित अब एलजेपी की राजनीति का आधार होंगे. क्या इस सोशल इंजीनियरिंग से एलजेपी अपनी खोई हुई जमीन वापस पा लेगी, यह तो समय ही बताएगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं.)
नकारात्मक राजनीति का असर
बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की नकारात्मक राजनीति का असर अब साफ दिखने लगा है. चिराग ने जेडीयू के नुकासन पहुंचाया. अब जेडीयू एलजेपी की राह में रोड़ा है. एलजेपी अब एनडीए में है या नहीं है, इस पर भी सवाल खड़ा हो गया है. रामविलास पासवान के निधन के बाद एलजेपी के एक
सांसद केन्द्र में मंत्री बन सकते थे लेकिन जेडीयू ने एलजेपी के खिलाफ म्यान से तलवार खींच ली है. बीजेपी चाह कर भी चिराग की मदद नहीं कर पा रही. जेडीयू के विरोध के कारण एलजेपी को केंद्रीय कैबिनेट में जगह नहीं मिल रही. बजट पेश होने से पहले इस साल जनवरी में एनडीए की बैठक बुलाई गई थी. संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने एलजेपी को निमंत्रण भेज भी दिया था. इस बात से जब नीतीश कुमार नाराज हो गए, तब बीजेपी को कदम वापस खींचने पड़े. चिराग पासवान को फोन कर के बताया गया कि वे इस बैठक में आमंत्रित नहीं किए गए हैं. एलजेपी अब लाचार है.
एलजेपी में असंतोष
बिहार विधानसभा चुनाव में शर्मनाक हार से एलजेपी में हताशा है. चिराग पासवान की राजनीतिक शैली से भी नाखुशी है. पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा है. चिराग इनका हौसला नहीं बढ़ा पा रहे. पार्टी के एकमात्र विधायक राज कुमार सिंह के जेडीयू में जाने की चर्चा है. वे नीतीश कुमार से मिल भी चुके हैं. हाल ही में एलजेपी के करीब 200 नेता जेडीयू में शामिल हुए हैं. एलजेपी की एकमात्र एमएलसी नूतन सिंह भी अब बीजेपी में शामिल हो चुकी हैं. पार्टी को कई नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार का व्यक्तिगत विरोध और जेडीयू के खिलाफ प्रत्याशी देना, चिराग पासवान का गलत
फैसला था. इन नेताओं की राय है कि रामविलास पासवान के निधन के बाद पार्टी को बहुत संभल कर फैसला लेना चाहिए था. ये वक्त एलजेपी को नए सिरे से खड़ा करने का था. यह काम एनडीए में रहकर ही किया जा सकता था लेकिन चिराग की एकतरफा सोच ने ऐसा होने नहीं दिया. रामविलास पासवान जनता दल में कई साल तक राजनीतिक शक्ति अर्जित करने के बाद ही अलग हुए थे लेकिन चिराग ने छह साल में ही हड़बड़ी कर दी.
क्या एलजेपी में जान फूंक पाएंगे चिराग?
बिहार में एलजेपी का संगठन इतना मजबूत नहीं था कि वह 134 सीटों पर चुनाव लड़ती. लेकिन चिराग ने उधार के खिलाड़ियों बारो प्लेयर से मैच खेलने का जोखिम उठाया था. इससे टीम का बेड़ा गर्क हो गया. सिर्फ एक जीत मिली. अब सवाल ये है कि क्या चिराग हताश पार्टी नेताओं में जोश फूंक पाएंगे? दो दिन
पहले चिराग ने जो फैसला लिया है उससे पार्टी में नए सिरे से नाखुशी पनप सकती है. उन्होंने अपने चचेरे भाई और समस्तीपुर के सांसद प्रिंस राज के अधिकारों में एक तरह से कटौती कर दी है. पूर्व विधायक राजू तिवारी को बिहार एलजेपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है. सांसद प्रिंस राज बिहार एलजेपी को अध्यक्ष हैं.
उनके रहते कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करने की क्या जरूरत थी? इस सवाल पर चिराग पासवान के समर्थकों का कहना है कि यह फैसला सामाजिक समीकरण को ध्यान में रख कर लिया गया है. सवर्ण और दलित अब एलजेपी की राजनीति का आधार होंगे. क्या इस सोशल इंजीनियरिंग से एलजेपी अपनी खोई हुई जमीन वापस पा लेगी, यह तो समय ही बताएगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं.)