पटना. बिहार के हाजीपुर के रहनेवाले प्रमोद भगत को इस बार पद्मश्री सम्मान से नवाजे गए हैं. प्रमोद ने 2020 के पैरालंपिक में पुरुष बैडमिंटन में गोल्ड जीतकर देश का नाम रोशन किया. पर खुद के राज्य में यह खिलाड़ी आज भी गुमनामी में है. राज्य सरकार ने कभी इस खिलाड़ी का ध्यान नहीं किया.
खेलरत्न से लेकर पद्मश्री पुरस्कार तक पा चुके हैं प्रमोद. पैरालंपिक 2020 में गोल्ड भले ही इन्होंने ओडिशा से शामिल होकर जीता. लेकिन प्रमोद मूलरूप से हाजीपुर के छोटे से गांव सुभई के रहनेवाले हैं. अभी भी इस गांव में प्रमोद का घर है, जहां उनका पूरा परिवार रहता है. प्रमोद को ओडिशा कोटे से पद्मश्री पुरस्कार दिए जाने की सूचना मिलते ही घर लोगों ने पूरे गांव में जलेबी बांटकर खुशी जताई. प्रमोद के पिता रामा भगत को आज भी इस बात का मलाल है कि प्रमोद जिस राज्य के हैं, जिस राज्य में आज भी उनके मां-पिता हैं, उस राज्य की सरकार के लिए यह परिवार आज भी गुमनाम है. सम्मान की बात तो दूर आज तक राज्य सरकार ने इस परिवार या प्रमोद की सुध तक नहीं ली.
प्रमोद की मां मालती देवी बताती हैं कि जन्म के कुछ दिन बाद ही प्रमोद पैर से लाचार हो गया था. हमारी माली हालत खराब हो थी. तो प्रमोद की बुआ उसके लालन पालन के लिए उसे लेकर ओडिसा चली गईं. वहां प्रमोद ने बैडमिंटन खेलते हुए देश का मान पूरी दुनिया में बढ़ाया. 2020 में पैरालंपिक में गोल्ड मेडल भी जीता. प्रमोद अभी भी विदेश में ही है. वहीं से उसने केंद्र सरकार को धन्यवाद दिया कि उसे पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया जा रहा है. भारत का डंका पूरे विश्व में बजाने के लिए प्रमोद दिन रात मेहनत कर रहा है. पिछले दो साल से प्रमोद अपने घर नहीं लौटे हैं. लेकिन वह लौटकर करेंगे भी क्या? जिस राज्य के बेटे ने पूरी दुनिया में देश का नाम रोशन किया, उसी राज्य में वह आज भी गुमनाम हैं.
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