पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन की बिहार में एक मंत्री के रूप में शपथ लेने के साथ ही 17 साल का वनवास टूट गया.
पटना. पिछले दिनों नीतीश कैबिनेट (Nitish Cabinet) में बीजेपी (BJP) के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन (Syed Shahnawaz Hussain) की एक मंत्री के रूप में शपथ लेने के साथ ही 17 साल का वनवास टूट गया. शाहनवाज की वापसी को लेकर पिछले कई दिनों से राजनीतिक गलियारे में चर्चाएं जोर-शोर से चल रही थीं. इसका कारण यह था कि सबसे कम उम्र में वे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. बीजेपी के केंद्रीय राजनीति में शाहनवाज हुसैन, मुख्तार अब्बास नकवी और सैयद जफर इस्लाम जैसे चंद मुस्लिम चेहरे ही हैं. इसके बावजूद बीजेपी आलाकमान ने उन्हें राज्य की राजनीति करने के लिए भेजा है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के चहेतों में से एक शाहनवाज हुसैन पिछले कुछ वर्षों से पार्टी में हासिए पर चल रहे थे. हुसैन 1999, 2006 और 2009 में 3 बार लोक सभा से सांसद रह चुके हैं और वाजपेयी सरकार में नागरिक उड्डयन और कपड़ा मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री के तौर पर भी काम कर चुके हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि इतने सालों बाद अगर शाहनवाज हुसैन की वापसी भी हुई है तो वह भी राज्य की राजनीति में क्यों?
राजनीति में शाहनवाज हुसैन का ऐसे उदय हुआ
बता दें कि शाहनवाज हुसैन हुसैन एबीवीपी छात्र संगठन से लंबे समय तक जुडे रहे. 1989-90 में किशनगंज की एक जनसभा में अटल बिहारी वाजपेयी की नजर इन पर गई जब मंच पर ये उनसे पहले भाषण दे रहे थे. उसके बाद वाजपेयी ने इन्हें दिल्ली बुला लिया जहां इन्हें पार्टी के लिए अलग-अलग जिम्मेदारियां दी गईं. 1999 के आम चुनाव में उन्हें किशनगंज सीट से तस्लीमुद्दीन के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए पार्टी का टिकट दिया गया. किशनगंज सीट पर शाहनवाज की जीत पार्टी के लिए एक अप्रत्याशित जीत थी. कारण लालू का बरदहस्त प्राप्त तस्लीमुद्दीन को किशनगंज का डॉन माना जाता था. उसके विरोध में कोई भी चुनाव लड़ने का हिम्मत नहीं करता था और जो भी उसके खिलाफ होता था वह या तो उसी का डमी कंडिडेट होता था या जो उसका डमी नहीं होता. उसे न केवल हर तरह से परेशान किया जाता था बल्कि उसका जीना हराम हो जाता था.
वाजपेयी सरकार में कद्दावर हुए
ऐसे में शाहनवाज की जीत बेहद महत्वपूर्ण जीत थी, खासकर तब जबकि उनके समर्थन में सुशील मोदी के अलावा कोई भी बड़ा नेता वहां प्रचार करने नहीं गए. शाहनवाज हुसैन को 32 साल की उम्र में 1 सितंबर 2001 को राजीव प्रताप रुढी की जगह नागरिक उड्डयन मंत्री बनाया गया. 2003 में कपड़ा मंत्रालय का काम दिया गया. वाजपेयी सरकार में दोनों ही मंत्रालय में इनका कामकाज काफी सराहा गया. 2004 के आम चुनाव में वे किशनगंज सीट से अपना चुनाव हार गए.
पहली बार संसद इस सीट से जीत कर पहुंचे
इसके बाद 2006 में जब भागलपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ तो इन्हें पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया और वे चुनाव जीतने में सफल हुए. 2009 के लोक सभा चुनाव में एक बार फिर से बीजेपी की करारी हार हुई तो उस समय भी शाहनवाज भागलपुर से चुनाव जीत लोकसभा पहुंचे. हुसैन संसद में पार्टी का पक्ष मजबूती के साथ रखते थे, लेकिन इसी बीच 2013 के मध्य तक पार्टी के आंतरिक राजनीति और घटनाक्रम में तेजी से बदलाव आया.
हाशिये पर जाने का सिलसिला यहां से शुरू हुआ
2014 के आम चुनाव को लेकर जब पार्टी की नई रणनीति तैयार की जा रही थी तो जून 2013 में पार्टी के प्रचार समिति का अध्यक्ष नरेंद्र मोदी को बनाया गया, जिसका लालकृष्ण आडवाणी ने खुला विरोध किया. आडवाणी ने 13 सितंबर 2013 को न केवल पार्टी के पार्लियामेंट्री बोर्ड से खुद को अलग रखा, बल्कि सभी पदों से इस्तीफा देना चाहा. बता दें कि 1980 में बीजेपी के गठन के बाद से अबतक का यह पहला अवसर था जब आडवाणी ने पार्टी के महत्वपूर्ण बैठकों में भाग नहीं लिया. इस दौर में और इसके काफी समय बाद तक शाहनवाज को मोदी खेमे में नहीं बल्कि आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह, शत्रुघ्न सिन्हा, सुषमा स्वराज, उमा भारती और यशवंत सिन्हा जैसे नेताओं के बीच अधिक देखा गया.
अब फिर ऐसे शुरू कर रहे हैं राजनीति
साल 2014 से शाहनवाज हुसैन पार्टी के लिए लगातार काम करते रहे, लेकिन पार्टी आलाकमान कभी भी न तो राज्यसभा या दूसरे सदन में ही उनको भेजा. 2016 में मोदी कैबिनेट के विस्तार में मुख्तार अब्बास नकवी को तो शामिल कर लिया गया पर हुसैन को इस बहाने के साथ कि वे पार्टी संगठन के लिए काम करेंगे शामिल नहीं किया गया. यही नहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में उनकी भागलपुर सीट जेडीयू के खाते में जाने से दूसरी सीटों से भी उम्मीदवार नहीं बनाया गया. हाल में पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को रामबिलास पासवान के निधन के बाद खाली हुए राज्य सभा सीट पर केंद्रीय राजनीति में बुला लिया गया तो उनकी जगह खाली हुए विधान पार्षद की सीट पर हुसैन की वापसी तो हुई, किंतु कद छोटा कर.
क्या कहते हैं जानकार
वरिष्ठ पत्रकार संजीव पांडेय कहते हैं, ‘बीजेपी ने मुस्लिमों के बीच एक मैसेज दिया है कि वह मुसलमानों की भी चिंता करता है. विपक्षी दल लगातार हमला कर रहे थे कि बीजेपी में मुस्लिमों की उपेक्षा हो रही है. बीजेपी ने इसका जवाब दिया है. साथ ही बीजेपी ने हुसैन को बिहार भेज कर एक खानापूर्ति भी की है. उत्तर प्रदेश में भी आवाज उठने लगी थी कि बीजेपी मुस्लिमों की चिंता नहीं करती है या पार्टी में जो मुस्लिम नेता हैं भी वह उपेक्षित हैं. इस बहाने बीजेपी ने शाहनवाज हुसैन को एक तरह से एडजस्ट किया है. दिल्ली में हुसैन की कोई उपयोगिता नहीं बच गई थी. प्रवक्ता के तौर पर हाल के कुछ वर्षों में वह असरदार साबित नहीं हो रहे थे. बीजेपी आलाकमान ज्यादा दिन तक इसे इग्नोर नहीं कर सकती थी, लिहाजा बीजेपी आलाकमान ने मंत्री बना कर बिहार में अल्पसंख्यकों के बीच एक मैसेज दिया है कि वह मुस्लिमों की भी चिंता करती है.’
उद्योग मंत्री के तौर पर क्या है चुनौती
शाहनवाज हुसैन को नीतीश कैबिनेट में उद्योग मंत्री के रूप में शामिल किया गया है. राजनीतिक विश्लेषक इसके कई निहितार्थ निकाल रहे हैं. इन विश्लेषकों के मुताबिक एक पूर्व केंद्रीय मंत्री को किसी राज्य में छोटे पायदान पर मंत्री बनाने का कुछ न कुछ तो अवश्य ही कारण रहा होगा. मगर इतना तो अवश्य तय है कि एमएलसी बनने और नीतीश कैबिनेट में शामिल होने से शाहनवाज हुसैन का कद जरूर छोटा हो गया है.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
Tags: Atal Bihari Vajpayee, BJP, Nitish Government, PM Modi, Shahnawaz hussain, Syed shahnawaz hussain