आखिरकार कैसे लालू की राह चलने को 'मजबूर' हुए तेजस्वी यादव!

बिहार की जनता तेजस्वी यादव में लालू यादव का विकल्प मान रहे हैं, लेकिन जानकारों की राय में तेजस्वी को अभी खुद को साबित करना बाकी है.
RJD के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कई बार ये बात कही थी कि तेजस्वी एक खास जाति (यादव जाति) से ही घिरे रहते हैं और दूसरे मुंह ताकते रहते हैं, लालू ऐसा नहीं करते थे.
- News18 Bihar
- Last Updated: September 6, 2019, 6:19 PM IST
पटना. राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की अनुपस्थिति में उनके बेटे तेजस्वी यादव (Tejaswi Yadav) ने आरजेडी (RJD) की कमान संभाली तो लोगों को लगा कि उनका नेतृत्व कुछ अलग होगा. नई सोच और नए तेवर के साथ वे बिहार की राजनीति (Bihar Politics) में अपनी अलग पहचान बनाएंगे. शुरुआती दौर में उन्होंने तेवर भी दिखाए और सियासी तीर भी चलाए. लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) से पहले तो उन्होंने अपने आपको इस तरह से प्रोजेक्ट किया जिससे लगने लगा था कि वे बिहार के नेतृत्व के लिए तैयार हैं, लेकिन इस चुनाव में हार के साथ ही उनके तेवर भी ढीले पड़ गए और वे सक्रिय राजनीति (Active Politics) छोड़ नदारद हो गए.
तेजस्वी एक खास जाति (यादव जाति) से ही घिरे रहते हैं
हालांकि कहा जाता है कि उन्होंने हार पर मंथन जरूर किया है और अपनी सियासी रणनीति भी बदल ली है. दरअसल पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कई बार ये बात कही थी कि तेजस्वी एक खास जाति (यादव जाति) से ही घिरे रहते हैं और दूसरे मुंह ताकते रहते हैं, लालू ऐसा नहीं करते थे.
अति पिछड़ा प्रकोष्ठ की बैठक में तय हुई बातें
बहरहाल बीते 3 सितंबर को जब अति पिछड़ा प्रकोष्ठ की बैठक हुई तो तय किया गया कि पंचायत से लेकर प्रदेशस्तर तक अतिपिछड़ों को 60 फीसदी भागीदारी दी जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि नया बिहार बनाना है तो सभी अतिपिछड़ों को एकजुट होकर राष्ट्रीय जनता दल के झंडे के नीचे काम करना होगा.
बैठक शुरू होने के साथ ही तेजस्वी यादव ने कहा कि मुझे खुशी है नेता प्रतिपक्ष के रूप में आवंटित आवास में गृह प्रवेश अति पिछड़ा वर्ग के लोगों द्वारा हुआ. अब इस आवास में अतिपिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ का कार्यालय भी रहेगा. दो कमरा प्रकोष्ठ को दे दिया गया है.
भाजपा पर छद्म हिन्दूवाद का लगाया आरोप
तेजस्वी ने कहा की आरजेडी न केवल संगठन बल्कि विधानसभा चुनाव में भी अत्यंत पिछड़ा वर्ग को उचित भागीदारी देगी. उन्होने यह भी कहा, लालू प्रसाद ने ही अति पिछड़ों को आवाज दी. उन्होंने आबादी के अनुसार आरक्षण की वकालत करते हुए भाजपा पर छद्म हिन्दूवाद का आरोप लगाया.

33 से 35 प्रतिशत है अति पिछड़ों की आबादी
दरअसल तेजस्वी मुस्लिम और यादव गठजोड़ के बीच अतिपिछड़ों को साथ लेकर ही लालू ने अपनी राजनीति परवान चढ़ाई थी. जाहिर है अब तेजस्वी भी लालू की राह पर लौटते दिख रहे हैं. दरअसल इसे समीकरण के लिहाज से देखें तो बिहार में अति पिछड़े समुदाय की आबादी करीब 33 से 35 प्रतिशत है.
इस तरह लालू की राह पर चल पड़े तेजस्वी
वहीं मुस्लिम 17 प्रतिशत तो यादव समुदाय की आबादी 14 प्रतिशत है. अगर तीनों को इकट्ठा करें तो यह आंकड़ा 62 से 64 प्रतिशत तक हो जाता है. जाहिर है तेजस्वी यादव भी अति पिछड़ों के साथ लाने की रणनीति के साथ आरएसएस विरोध का एजेंडा और मुस्लिम-यादव गठजोड़ की लालू यादव वाली राह पर चल पड़े हैं.
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तेजस्वी एक खास जाति (यादव जाति) से ही घिरे रहते हैं
हालांकि कहा जाता है कि उन्होंने हार पर मंथन जरूर किया है और अपनी सियासी रणनीति भी बदल ली है. दरअसल पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कई बार ये बात कही थी कि तेजस्वी एक खास जाति (यादव जाति) से ही घिरे रहते हैं और दूसरे मुंह ताकते रहते हैं, लालू ऐसा नहीं करते थे.

जनमानस को पढ़ पाने में नाकाम रही आरजेडी की लोकसभा चुनाव में करारी हार हुई.
बहरहाल बीते 3 सितंबर को जब अति पिछड़ा प्रकोष्ठ की बैठक हुई तो तय किया गया कि पंचायत से लेकर प्रदेशस्तर तक अतिपिछड़ों को 60 फीसदी भागीदारी दी जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि नया बिहार बनाना है तो सभी अतिपिछड़ों को एकजुट होकर राष्ट्रीय जनता दल के झंडे के नीचे काम करना होगा.
बैठक शुरू होने के साथ ही तेजस्वी यादव ने कहा कि मुझे खुशी है नेता प्रतिपक्ष के रूप में आवंटित आवास में गृह प्रवेश अति पिछड़ा वर्ग के लोगों द्वारा हुआ. अब इस आवास में अतिपिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ का कार्यालय भी रहेगा. दो कमरा प्रकोष्ठ को दे दिया गया है.
भाजपा पर छद्म हिन्दूवाद का लगाया आरोप
तेजस्वी ने कहा की आरजेडी न केवल संगठन बल्कि विधानसभा चुनाव में भी अत्यंत पिछड़ा वर्ग को उचित भागीदारी देगी. उन्होने यह भी कहा, लालू प्रसाद ने ही अति पिछड़ों को आवाज दी. उन्होंने आबादी के अनुसार आरक्षण की वकालत करते हुए भाजपा पर छद्म हिन्दूवाद का आरोप लगाया.

तेजस्वी यादव पिता लालू यादव की तरह ही पिछड़ा उभार की राजनीति को एक बार फिर हवा देना चाहते हैं.
33 से 35 प्रतिशत है अति पिछड़ों की आबादी
दरअसल तेजस्वी मुस्लिम और यादव गठजोड़ के बीच अतिपिछड़ों को साथ लेकर ही लालू ने अपनी राजनीति परवान चढ़ाई थी. जाहिर है अब तेजस्वी भी लालू की राह पर लौटते दिख रहे हैं. दरअसल इसे समीकरण के लिहाज से देखें तो बिहार में अति पिछड़े समुदाय की आबादी करीब 33 से 35 प्रतिशत है.
इस तरह लालू की राह पर चल पड़े तेजस्वी
वहीं मुस्लिम 17 प्रतिशत तो यादव समुदाय की आबादी 14 प्रतिशत है. अगर तीनों को इकट्ठा करें तो यह आंकड़ा 62 से 64 प्रतिशत तक हो जाता है. जाहिर है तेजस्वी यादव भी अति पिछड़ों के साथ लाने की रणनीति के साथ आरएसएस विरोध का एजेंडा और मुस्लिम-यादव गठजोड़ की लालू यादव वाली राह पर चल पड़े हैं.
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