सुनील ओझा को बिहार भाजपा का सह प्रभारी बनाया गया है.
नई दिल्ली/पटना. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने कमर कसनी शुरू कर दी है. हर राज्यों में संगठन को चुस्त-दुरुस्त करने की कोशिश हो रही है और खाली पड़े पदों को भरा भी जा रहा है. राजनीतिक रूप से बिहार बीजेपी के एजेंडे में काफी ऊपर है. यही कारण है कि बिहार बीजेपी टीम को नया आकार दिया गया है. विनोद तावड़े पार्टी के प्रभारी कुछ महीने पहले ही बनाए गए हैं. उनके साथ हरीश द्विवेदी सह प्रभारी की भूमिका में थे. लेकिन एक और सह प्रभारी सुनील ओझा को बनाया गया है.
दरअसल, बिहार की चुनौती को ध्यान में रखते हुए सुनील ओझा जैसे व्यक्ति को बिहार भेजा गया है. क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यहां 40 में से 39 सीटों पर सहयोगियों के साथ सफलता मिली थी, लेकिन इस बार नीतीश कुमार ने पाला बदल दिया है. लिहाजा पार्टी पुराने प्रदर्शन को दोहराने के लिए पूरी ताकत लगा रही है. इसी रणनीति के तहत बीजेपी ने बिहार में नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति की है.
सम्राट चौधरी को बिहार प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई है, जबकि विनोद तावड़े पार्टी के प्रभारी कुछ महीने पहले ही बनाए गए हैं. उनके साथ हरीश द्विवेदी सह प्रभारी की भूमिका में थे. लेकिन एक और सह प्रभारी बनाया गया है और वह नाम है सुनील ओझा का. बिहार की चुनौती को ध्यान में रखते हुए सुनील ओझा जैसे व्यक्ति को बिहार भेजा गया है.
सुनील ओझा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी बताए जाते हैं. गुजरात की भावनगर विधानसभा सीट से 2 बार विधायक रह चुके हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस से चुनाव मैदान में थे, उस वक्त बीजेपी ने उन्हें यूपी का सह प्रभारी बनाया था. पर्दे के पीछे अपने काम के लिए जाने जाने वाले सुनील ओझा की भूमिका भी इस जीत में काफी अहम मानी जाती है. इस वक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के क्षेत्र वाराणसी और उसके आसपास के इलाकों पर ओझा की पैनी नजर रहती है.
हालांकि, वे एक बार पार्टी से बगावत भी कर चुके हैं. 2007 में जब सुनील ओझा को पार्टी ने विधानसभा का टिकट नहीं दिया था तो वह निर्दलीय चुनाव लड़े, लेकिन चुनाव हार गए थे. वह एमजेपी में शामिल हो गए थे. लेकिन 2011 में फिर से उन्होंने बीजेपी ज्वाइन कर ली. उसके बाद से ही वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के फिर से करीबी हो गए. अमित शाह का भी हाथ उनके ऊपर रहा है.
जमीन से जुड़े और पर्दे के पीछे रहकर काम करने वाले सुनील ओझा की छवि बेहतर संगठन के व्यक्ति के तौर पर रही है. चुनाव को लेकर उनकी रणनीति भी काफी महत्वपूर्ण होती है. उनके कार्यकाल में उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 2017 और 2022 की विधानसभा और 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी और आसपास के इलाके में बड़ी सफलता मिली. अब उनके ऊपर जिम्मेदारी बिहार में बेहतर प्रदर्शन करने की है.
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