बोचहां उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी बेबी कुमारी की हार कोई आश्चर्यजनक नहीं है. उपचुनाव की घोषणा के बाद से ही एनडीए घटक दलों में जिस प्रकार की स्थिति बन रही थी, उससे साफ लग रहा था कि बोचहां में बीजेपी फंस सकती है और वही हुआ. पहले के दो विधानसभा उपचुनावों और स्थानीय प्राधिकार के विधान परिषद चुनाव में भी इसकी बानगी दिखी थी. लेकिन, बोचहां में इसकी पराकाष्ठा दिखी और बीजेपी प्रत्याशी बेबी कुमारी 36,653 मतों से चुनाव हार गई. राजद को बोचहां में 82,562 और बीजेपी को 45,909 वोट मिले. विकासशील इंसान पार्टी जब यहां पर खुलकर बीजेपी के खिलाफ खेल रही थी, तो जदयू कार्यकर्ताओं ने उसी प्रकार से बीजेपी को अकेला छोड़ा जैसे 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग जब नीतीश के खिलाफ बोल रहे थे तो बीजेपी ने छोड़ा था. इसका परिणाम सामने है.
अप्रैल 2022 में जो कुछ हुआ, इसकी पटकथा 2020 में लिखी गई थी. बीजेपी गठबंधन में तो थी, लेकिन वह अपने गठबंधन में लड़ रही थी. तब चिराग पासवान को बीजेपी ने अपना मोहरा बनाया था. वह परिणाम भाजपा के लिए इस हद तक अनुकूल रहा कि उसने जदयू को बड़ा से छोटा भाई बना दिया. बीजेपी के इस घाव को जदयू भूल नहीं पायी. तब से दोनों के रिश्तों में वह मिठास और भरोसा की कमी साफ दिखने लगा. तारापुर उपचुनाव में जदयू किसी प्रकार जीत तो गई. लेकिन, जदयू को भाजपा के कोर वोटरों का साथ नहीं मिला. इस घटना के बाद दोनों के रिश्ते असहज हो गए और टकराव के अवसर बढ़ गए. इसी माह विधान परिषद की 24 सीटों के लिए हुए चुनाव के परिणाम में भी यह टकराव सबके सामने आया. चुनाव में कई सीटों पर भाजपा-जदयू ने ऐलान करके एक दूसरे को हराया.
बोचहां में मुकेश सहनी उसी तर्ज पर बीजेपी पर हमला कर रहे थे, जिस प्रकार 2020 में चिराग पासवान नीतीश कुमार पर किया करते थे. जदयू भी मुकेश सहनी के बयान को उसी प्रकार देख और सुन रही थी, जैसे वर्ष 2020 में बीजेपी चिराग के बयान को देख और सुन रही थी. रमई राम के सहयोग से सहनी दलितों को बताया कि कैसे बीजेपी हमें परेशान कर रही है. दलित और महादलितों के हक की बात करने पर बीजेपी हमें बर्बाद करने पर लगी है. हमारे लोगों को अपने साथ मिला लिया. मेरा मंत्री पद छिन लिया और अब हमें झूठे केसों में फंसाने में लगी है. दलित और महादलितों को चिराग पासवान की कहानी भी उसने बताया. रामविलास पासवान जिस घर में रहते थे उसे कैसे जबरन खाली करवाया गया. रामविलास पासवान के फोटो को किस प्रकार बाहर फेंका गया. जदयू यह सब कुछ सुनने और देखने के बाद भी मौन रही.
बीजेपी बोचहां उपचुनाव एनडीए के सहयोगी दलों के कारण ही नहीं, बल्कि पार्टी के अंदर चल रहे अंतर्कलह के कारण भी हार गई. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने चुनाव परिणाम आने के बाद स्वीकारा कि हमारी मेहनत पर व्यक्तिगत नाराजगी और व्यक्तिगत सहानुभूति भारी पड़ गई और हम चुनाव हार गए. दरअसल, बिहार सरकार में बीजेपी कोटा से मंत्री राम सूरत राय और बीजेपी सांसद अजय निषाद को पार्टी में ज्यादा महत्व मिलने से मुजफ्फरपुर के भूमिहार नेता बीजेपी से नाराज चल रहे हैं. उनका आरोप है कि पार्टी यहां पर भूमिहारों को किनारे लगाने में लगी है. इसको लेकर बिहार सरकार के पूर्व मंत्री सुरेश शर्मा और अजीत कुमार ने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया.
सुरेश शर्मा पर आरोप है कि वे घर में रहकर और अजीत कुमार खुलेआम अपने लोगों से कहा पार्टी अब भूमिहारों को किनारे लगाने में लगी है. इसको लेकर भूमिहार वोटर आक्रोशित हो गए. इधर, राजद नेता तेजस्वी यादव भूमिहारों को यह समझाने में सफल रहे कि राजद अब ए टू जेड लोगों की पार्टी है. हमने इसी कारण विधान परिषद में पिछड़ा और मुसलमान से ज्यादा सवर्णों को अपना प्रत्याशी बनाया. भूमिहारों ने तेजस्वी पर भरोसा कर के बोचहां में अपना समर्थन राजद को दे दिया. जिससे राजद की जीत हुई और बीजेपी की करारी हार हो गई.
(डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
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