पटना. बिहार में मिथिलांचल की भूमि और संस्कृति में पले-बढ़े ‘मिश्रा परिवार’ खानदानी कांग्रेसी रहे हैं. तीन दशक तक बिहार की सत्ता में सिरमौर रहा यह परिवार केंद्र में मंत्री से लेकर प्रदेश की मुख्यमंत्री की कुर्सी तक बैठा. लेकिन, कांग्रेस से अब परिवार के किसी भी सदस्य का कोई नाता नहीं है. राजद और बीजेपी में ‘मिश्रा परिवार’ बंट गया है. कांग्रेस से इस प्रकार से नाता तोड़ने पर गैर कांग्रेसी कहते हैं कि पार्टी में उन्हें वो महत्व नहीं मिला जिसकी उन्होंने अपेक्षा किया था. इधर, कांग्रेसी का कहना है कि ‘मिश्रा परिवार’ ने कभी भी कांग्रेस को अपनाया ही नहीं. यही कारण है कि वे कांग्रेस परिवार के सदस्य नहीं बन पाए.
ललित नारायण मिश्रा पहली बार 1952 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा के सदस्य बने. इसके बाद वे तीन बार लोकसभा और दो दफा राज्यसभा के सदस्य भी रहे. केंद्र में ललित नारायण मिश्रा कद्दावर मंत्री थे और गांधी-नेहरू परिवार के सबसे करीबी माने जाते थे. केंद्र के दूसरे केंद्रीय मंत्री की तुलना में ललित नारायण मिश्रा की हनक कांग्रेस में ज्यादा थी. प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर सियासत में अपनी धमक रखने वाले ललित बाबू को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा, जब 1975 में समस्तीपुर बम-विस्फोट में उनकी मौत हो गई. लेकिन मिश्रा परिवार का कांग्रेस की राजनीति में दबदबा इतना था कि पार्टी ने कांग्रेस में किसी और को प्रमोट करने के बदले उनके छोटे भाई और प्रदेश की कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे डॉ. जगन्नाथ मिश्रा को बिहार में नेता के रूप में आगे बढ़ाया. उनको भी अपने को स्थापित करने में कोई परेशानी नहीं हुई.
विरासत में डॉ. जगन्नाथ मिश्रा को कांग्रेस की सियासत मिली थी और राजनीति का ककहरा उन्होंने अपने बड़े भाई ललित नारायण मिश्रा से सीखा था. इसका लाभ उठाते हुए वे करीब दो दशक तक बिहार की राजनीति के कद्दावर चेहरा बने रहे. लेकिन वक्त के साथ वो बदलते गए और बिहार की सियासत में अपनी जगह भी खोते गए. आखिरी वक्त में वे कांग्रेस छोड़कर जदयू में चले गए. फिर उनकी बीजेपी से भी नजदीकियां बढ़ने की बातें सामने आई.
अलग पार्टी बनाई, फिर भाजपा से सियासत
कांग्रेस सीनियर नेताओं का कहना है कि 1990 के बाद पार्टी में डॉ. जगन्नाथ मिश्रा का जिस प्रकार से विरोध हो रहा था उससे डॉ. मिश्रा परेशान हो गए थे. उनके लोगों को भी पार्टी में किनारे लगा दिया गया. इससे खिन्न होकर वर्ष 1997 में उन्होंने अपनी राजनीतिक जन कांग्रेस नाम से अपनी राजनीतिक पार्टी बना ली. डॉ. जगन्नाथ मिश्रा के बेटे और बीजेपी विधायक नीतीश मिश्रा भी इस बात को स्वीकार करते हैं. वे कहते हैं कि कांग्रेस ने जिस प्रकार से मेरे पिता जी के साथ व्यवहार किया उसके बाद कांग्रेस से मेरा मोहभंग हो गया था. यही कारण था कि हमने कभी भी कांग्रेस से जुड़ने का प्रयास नहीं किया.
डॉ. जगन्नाथ मिश्रा बिहार के अन्तिम कांग्रेसी सीएम थे. उनके ही नेतृत्व में पार्टी चुनाव लड़ी और हार गई. इसके बाद वे अपनी ही पार्टी के अंदर निशाने पर आ गए. पार्टी में उनका विरोध भी शुरु हो गया. पार्टी के अंदर विरोध के कारण वो बिहार की सियासत और पार्टी में अपनी जगह भी खोते चले गए. पार्टी में अपनी उपेक्षा से परेशान होकर उन्होंने पहले अपनी एक राजनीतिक पार्टी का गठन किया. लेकिन, वह भी उन्हें वह पहचान नहीं दिला पायी जो उन्होंने 70-80 की दशक प्राप्त किया था. अन्तिम समय में वे जदयू में चले गए. फिर वहीं से राजनीतिक संन्यास ले लिया.
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