रिपोर्ट : विक्रम कुमार झा
पूर्णिया. 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस है. ऐसे में पूर्णिया के एक युवा ने इसके संरक्षण को लेकर घर को ही घोसला बना दिया. पूर्णिया श्रीराम कॉलोनी गुलाबबाग के शुभम कुमार बिहार के राजकीय पक्षी गोरैया के संरक्षण को लेकर काफी सजग हैं. उनका कहना है कि गोरैया की प्रजाति शहरी इलाकों में अब दुर्लभ बनकर रह गई है. यह विलुप्ति के कगार पर है. शास्त्रों में जिसे शौर्य और सचेतक का प्रतीक माना गया है, उसका विलुप्त होना हमारे पर्यावरण के लिए चिंता का विषय है. बिहार का राजकीय पक्षी का दर्जा मिलने के बावजूद इसके बचाव के लिए सरकार के द्वारा कोई पहल नहीं करना चिंता का विषय है.
शुभम ने कहा कि मेरा मुख्य उद्देश्य छोटे-छोटे जीव जंतु और छोटे-छोटे पक्षियों का संरक्षण करना. ये पक्षी हमारे पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखते हैं. मैं तकरीबन 4 वर्षों से गौरैया संरक्षण की दिशा में लगातार काम कर रहा हूं. उनको उचित माहौल भी दे रहा हूं. वे तकरीबन 100 की संख्या में पहुंच गए हैं. आज गौरैयों की चहचहाहट से घर का माहौल बिल्कुल बदला सा लगता है.
पूर्णिया के पीएचडी शोधार्थी शुभम कुमार कहते हैं कि उन्हें गौरैया पालन करने का शौक बचपन से ही रहा है. वे जब चिड़िया को देखते थे तो ज्यादा खुश हो जाया करते थे. पिताजी ने बचपन में एक तोता लाकर दिया था. कुछ दिनों के बाद शिवमंगल सिंह सुमन की कविता ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के पिंजर बंध ना गा पायेंगे, कनक तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जायेंगे’ इस कविता के प्रभाव से अपने तोते को खुले आसमानों में उड़ा कर आजादी दी.
शुभम ने बताया कि इस घटना के बाद अपने यहां गौरैया रखने की योजना बनाई. आदिवासी समुदाय के मेले झारखंड से उन्होंने नारियल के छिलके का बना घोसला खरीदा. उसमें चिड़िया ने आना रहना शुरू कर दिया. चिड़िया ने अंडा दिया, उससे बच्चे भी निकले. धीरे-धीरे प्रजाति उनकी बढ़ने लगी. जिसके बाद उन्होंने और दो चार घोसले बढ़ा दिए. उनके बाद गौरैया की संख्या बढ़नी शुरू हो गई. तब बर्डहाउस बनाकर लगाना शुरू कर दिया. साथ ही साथ उसका साइज बड़ा होने के कारण अन्य दूसरे पक्षियों के द्वारा कब्जा जमा लिया जाता था, लेकिन फिर उन्होंने उसके गेट को छोटा कर घोसला कर दिया. जिससे आज सैकड़ों की संख्या में गौरैया मौजूद हैं.
गौरैया को खाने के लिए चावल के छोटे-छोटे दाने और पक्षियों के लिए जो खाने योग्य दाने होते हैं वह सब चीजें मूंग के दाल के साथ देते हैं और उनके लिए गर्मियों के मौसम में जल की व्यवस्था करते हैं. शुभम ने कहा कि सरकार अगर सहयोग करे तो इस मुहिम को और भी आगे ले जाऊंगा. शुभम ने अपील की कि आप भी पर्यावरण संरक्षण करने में अपनी भूमिका जरूर निभाएं. पर्यावरण बचेगा तभी हम लोग बच पाएंगे.
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