Karakat Lok sabha Result 2019, काराकाट लोकसभा रिजल्ट 2019: इन वजहों से हारे नीतीश कुमार के सबसे बड़े ‘दुश्मन’

upendra kushwaha
बिहार में महागठबंधन के साथ मिलकर काराकाट और उजियारपुर से चुनाव लड़ रहे उपेंद्र कुशवाहा को दोनों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा.
- News18Hindi
- Last Updated: June 2, 2019, 2:50 AM IST
2019 लोकसभा चुनाव की आहट के बीच राजनीतिक नफे-नुकसान को भांपते हुए राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने 2018 में एनडीए से नाता तोड़ लिया था. एनडीए में जेडीयू की वापसी के बाद उनके लिए स्थितियां अनुकूल नहीं रह गई थी. बिहार में महागठबंधन के साथ मिलकर काराकाट और उजियारपुर से चुनाव लड़ रहे कुशवाहा को दोनों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. काराकाट में उन्हें जेडीयू के महाबली सिंह ने 84542 वोटों से हरा दिया. वहीं, उजियारपुर से बीजेपी उम्मीदवार नित्यानंद राय ने कुशवाहा को 277278 वोटों के अंतर से मात दे दी.
उपेंद्र कुशवाहा की हार के प्रमुख कारण
-काराकाट सीट के जातीय समीकरण उपेंद्र कुशवाहा के पक्ष में काम नहीं कर पाए. खुद कुशवाहा की जाति के वोट बंट गए. कुशवाहा और महाबली सिंह दोनों ही कोईरी जाति से आते हैं. महाबली सिंह को स्वजातीय वोटों के साथ सवर्ण और जेडीयू के पिछड़े अतिपिछड़े वोटर्स का साथ मिला. जातियों की गोलबंदी में महाबली सिंह आगे निकल गए.
-2014 में कुशवाहा की जीत की सबसे बड़ी वजह थी मोदी लहर. मोदी लहर पर सवार होकर ही उन्होंने 2014 के चुनाव में आरजेडी की उम्मीदवार कांति सिंह को शिकस्त दी थी. इस बार के चुनाव में यही समीकरण महाबली सिंह के पक्ष में गया और कुशवाहा को मुंह की खानी पड़ी.-काराकाट सीट आरएलएसपी के खाते में जाने की वजह से कांति सिंह को इस सीट से हाथ धोना पड़ा. 2014 में कांति सिंह दूसरे स्थान पर रही थीं. इस बार वो मजबूरी में कुशवाहा के लिए वोट मांग रही थी. लेकिन टिकट कटने की वजह से न कांति सिंह में उत्साह दिखा और न ही आरजेडी के वोटर्स में वो सरगर्मी दिखी.
-काराकाट सीट की कुल जनसंख्या में यादव 17.39 फीसदी, राजपूत 10.76 फीसदी, कोइरी 8.12 फीसदी, मुसलमान 8.94 फीसदी, ब्राह्मण 4.28 फीसदी और भूमिहार 2.94 फीसदी हैं. जातीय समीकरण उपेन्द्र कुशवाहा के पक्ष में होते हुए भी उनकी हार हुई. बीएसपी ने इस सीट पर एक स्थानीय उम्मीदवार अनिल यादव को उतार दिया. वहीं भाकपा माले ने राजाराम सिंह को टिकट दिया, जो कोइरी जाति से ही आते हैं. वोटों में बिखराव से उपेन्द्र कुशवाहा की हार हुई.
-बिहार के सीएम नीतीश कुमार काराकाट सीट के चुनाव में खास दिलचस्पी ले रहे थे. वो खुद स्थानीय नेताओं के लगातार संपर्क में थे. वो मोबाइल से फोन कर लोगों से जेडीयू उम्मीदवार के लिए समर्थन मांग रहे थे. नीतीश कुमार के विरोधी नंबर-1 बन चुके उपेंद्र कुशवाहा की हार के लिए जेडीयू ने हर जतन किया.
-काराकाट लोकसभा सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें 4 पर आरजेडी, एक पर बीजेपी और एक पर जेडीयू का कब्जा है. आरजेडी के प्रभुत्व वाले इलाके में यादव वोटर्स का दिल जीतने में कुशवाहा नाकाम रहे.
-2014 के चुनाव में कुशवाहा को बीजेपी के साथ एलजेपी के कार्यकर्ताओं का समर्थन मिला था. अपने संसदीय क्षेत्र के इन्हीं कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर उन्होंने सरकार में रहते हुए इलाके में विकास के कामकाज किए. लेकिन आखिरी वक्त में एनडीए से अलग होकर महागठबंधन में जाने की वजह से जो कार्यकर्ता उनके विकास कार्यों का लेखा-जोखा लेकर वोटर्स तक जाते, वो उनसे अलग हो गए.
-2009 में नए परिसीमन के बाद काराकाट लोकसभा सीट अस्तित्व में आई. अब तक के चुनाव में इस सीट पर एनडीए का दबदबा रहा है. 2009 में इस सीट से जेडीयू के टिकट पर महाबली सिंह ने जीत हासिल की थी. एनडीए के प्रति वोटर्स के समर्थन ने कुशवाहा की राह मुश्किल की.
-इस सीट पर मल्लाह वोटर भी एक बड़ा फैक्टर बने. सोन नदी में बालू के उत्खनन को लेकर मल्लाह और यादवों के बीच जंग से सभी वाकिफ हैं. महागठबंधन मल्लाह और यादव वोटर्स को एकजुट नहीं रख पाया, जिसका खामियाजा उपेन्द्र कुशवाहा को भुगतना पड़ा.
-इस चुनाव में डालमियानगर उद्योग समूह, सोन नदी में अवैध बालू उत्खनन, प्रमुख सिंचाई और सड़क की परियोजनाओं जैसे स्थानीय मुद्दे गायब हो गए. राष्ट्रीय मुद्दों में सर्जिकल स्ट्राईक, राष्ट्रवाद और आतंकवाद की चर्चा ही रही. इन मुद्दों के होने से जेडीयू प्रत्याशी को फायदा मिला.
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उपेंद्र कुशवाहा की हार के प्रमुख कारण
-काराकाट सीट के जातीय समीकरण उपेंद्र कुशवाहा के पक्ष में काम नहीं कर पाए. खुद कुशवाहा की जाति के वोट बंट गए. कुशवाहा और महाबली सिंह दोनों ही कोईरी जाति से आते हैं. महाबली सिंह को स्वजातीय वोटों के साथ सवर्ण और जेडीयू के पिछड़े अतिपिछड़े वोटर्स का साथ मिला. जातियों की गोलबंदी में महाबली सिंह आगे निकल गए.
-काराकाट सीट की कुल जनसंख्या में यादव 17.39 फीसदी, राजपूत 10.76 फीसदी, कोइरी 8.12 फीसदी, मुसलमान 8.94 फीसदी, ब्राह्मण 4.28 फीसदी और भूमिहार 2.94 फीसदी हैं. जातीय समीकरण उपेन्द्र कुशवाहा के पक्ष में होते हुए भी उनकी हार हुई. बीएसपी ने इस सीट पर एक स्थानीय उम्मीदवार अनिल यादव को उतार दिया. वहीं भाकपा माले ने राजाराम सिंह को टिकट दिया, जो कोइरी जाति से ही आते हैं. वोटों में बिखराव से उपेन्द्र कुशवाहा की हार हुई.
-बिहार के सीएम नीतीश कुमार काराकाट सीट के चुनाव में खास दिलचस्पी ले रहे थे. वो खुद स्थानीय नेताओं के लगातार संपर्क में थे. वो मोबाइल से फोन कर लोगों से जेडीयू उम्मीदवार के लिए समर्थन मांग रहे थे. नीतीश कुमार के विरोधी नंबर-1 बन चुके उपेंद्र कुशवाहा की हार के लिए जेडीयू ने हर जतन किया.
-काराकाट लोकसभा सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें 4 पर आरजेडी, एक पर बीजेपी और एक पर जेडीयू का कब्जा है. आरजेडी के प्रभुत्व वाले इलाके में यादव वोटर्स का दिल जीतने में कुशवाहा नाकाम रहे.
-2014 के चुनाव में कुशवाहा को बीजेपी के साथ एलजेपी के कार्यकर्ताओं का समर्थन मिला था. अपने संसदीय क्षेत्र के इन्हीं कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर उन्होंने सरकार में रहते हुए इलाके में विकास के कामकाज किए. लेकिन आखिरी वक्त में एनडीए से अलग होकर महागठबंधन में जाने की वजह से जो कार्यकर्ता उनके विकास कार्यों का लेखा-जोखा लेकर वोटर्स तक जाते, वो उनसे अलग हो गए.
-2009 में नए परिसीमन के बाद काराकाट लोकसभा सीट अस्तित्व में आई. अब तक के चुनाव में इस सीट पर एनडीए का दबदबा रहा है. 2009 में इस सीट से जेडीयू के टिकट पर महाबली सिंह ने जीत हासिल की थी. एनडीए के प्रति वोटर्स के समर्थन ने कुशवाहा की राह मुश्किल की.
-इस सीट पर मल्लाह वोटर भी एक बड़ा फैक्टर बने. सोन नदी में बालू के उत्खनन को लेकर मल्लाह और यादवों के बीच जंग से सभी वाकिफ हैं. महागठबंधन मल्लाह और यादव वोटर्स को एकजुट नहीं रख पाया, जिसका खामियाजा उपेन्द्र कुशवाहा को भुगतना पड़ा.
-इस चुनाव में डालमियानगर उद्योग समूह, सोन नदी में अवैध बालू उत्खनन, प्रमुख सिंचाई और सड़क की परियोजनाओं जैसे स्थानीय मुद्दे गायब हो गए. राष्ट्रीय मुद्दों में सर्जिकल स्ट्राईक, राष्ट्रवाद और आतंकवाद की चर्चा ही रही. इन मुद्दों के होने से जेडीयू प्रत्याशी को फायदा मिला.
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