स्वतंत्रता सेनानी महेंद्र मिश्र की जयंती 16 मार्च को मनाई गई.
छपरा. अंगुली में डसले बिया नागिनिया रे.. हाय ननदी सैंया के जगा द… सासु मोरा मारे रामा बांस के छेवकिया की ननदिया मोरा रे सुसुकत पनिया के जाय.. जैसे कई लोकप्रिय धुन जब सुनाई पड़ते हैं तो बरबस ही इन गीतों के रचियता पंडित महेंद्र मिश्रा की याद भोजपुरी भाषा भाषी के लोगों को आ जाती है. आज भी बिहार और उत्तर प्रदेश के मंच पंडित जी के रचनाओं के बिना अधूरे लगते हैं. यही कारण है कि मंचों पर ये गाना गा कर कलाकार खुद को गौरवान्वित समझते हैं. पर बहुत कम लोग ही यह जानते हैं कि पूर्वी धुनों के जनक पंडित महेंद्र मिश्र का जन्म सारण जिला के जलालपुर प्रखण्ड के मिश्रवलिया गांव में 16 मार्च 1886 को हुआ था.
आजादी के लड़ाई में अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती देने वाले पंडित महेंद्र मिश्र जाली नोट छाप कर स्वतन्त्रता संग्राम में जुड़े लोगों की आर्थिक मदद कर अपनी एक अलग ही पहचान बनायी थी. होता यह था कि जब रात में सब लोग सो सो जाते थे तो आंगन के शिव मंदिर में पूजा के बहाने जाकर पंडित जी गांव के कुआं से आंगन में जाते और सारी रात नोट छापते और सुबह यही नोट भिखारियों को दे देते. दरअसल, यह भिखारी लोग स्वतन्त्रता सेनानी होते थे जिसे अंग्रेजी हुकूमत डंवाडोल हो गयी थी.
कहते हैं कि महेंद्र मिश्र द्वारा नोट छापने की जानकारी जब अंग्रेजी हुकूमत को हुई तब की इस स्थिति से घबरा कर अंग्रेजी हुकूमत ने पंडित महेंद्र मिश्र के यहां गोपीचन्द नाम के सीबीआई अधिकारी को को लगा दिया, जो पंडित महेंद्र के यहां काम काज देखता था. लेकिन, यह काम इतने गुपचुप तरीके से होता था कि उक्त अधिकारी को भी तीन साल यह पता लगाने में लग गया की पंडित जी पैसा छापते कब हैं. 1924 में गोपीचन्द के निशानदेही पर पंडित जी को गिरफ्तार कर लिया गया और उनके साथ उनका छापाखाना भी बरामद कर लिया गया, जो आज भी सीआईडी के दफ्तर में संजो कर रखा गया है.
इस गिरफ्तारी के वक्त पंडित जी ने एक गाना गया था जो आज भी लोगों की जुबान पर है. हंसी हंसी पनवा खियाइले रे गोपिचन्दवा, पिरितिया लगा के भेजवले जेल खनवां. पंडित मिश्र जिनका भोजपुरी भाषा के उनयन में वही स्थान है जो हिंदी के उनयन में भारतेंदु हरिश्चन्द्र के रचनाओं का है. यह बिडम्बना है कि आज भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की जद्दोजेहाद चल रही है.
उनका पहला महाकाव्य महेंद्र अपूर्व संगीत रामायण तक को प्रकाशित नहीं कराया जा सका है. इनके परिजनों को भरोसा है कि अगर इनकी पांडुलिपियों का प्रकाशन हो जाय तो इनकी ख्याति बढ़ जायेगी. आखिर राज्यभाषा विभाग ने पंडित जी के पांडुलिपियों को प्रकाशित करने का आश्वासन दिया है. जानकर मानते हैं कि पंडित महेंद्र मिश्र के रामायण में लोक संस्कृति की सभी धुनों को एक रचना में पिरोया गया है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार ने इनके जयंती को सरकारी कैलेंडर में शामिल तो कर लिया पर इनके नाम पर कुछ भी नहीं हो पाया. और तो और इन्हें अब तक स्वतन्त्रता सेनानी तक का सम्मान नहीं मिल सका, जो काफी दुखद है. जबकि, बिहार सरकार ने माना है कि पंडित महेंद्र मिश्र आजादी के लड़ाई के दौरान जाली नोट छापने और ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने के आरोप 10 साल से अधिक समय तक बक्सर जेल में रहे.
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