ऐसा लगता कि अब वक्त आ गया है कि सरकारों को जनसंख्या नियंत्रण क़ानून एवं धर्मान्तरण को लेकर क़ानून बनाना ही चाहिए.
भारत में धर्मान्तरण का मुद्दा आज का ही नहीं, बल्कि अंग्रेज़ी हुकूमत में देशी रियासतों ने इसे लेकर 1930 से 46 तक कई बार मुद्दा बनाया था. इनमें रायगढ़ (1936), सरगुजा (1942), उदयपुर (1946) में इस पर क़ानून भी बना. भारत आजाद हुआ तो 1954 में इस पर बिल लाया गया, लेकिन वो बहस की भेंट चढ़ गया.
भारत में बहुसंख्यक जनसंख्या हिंदू समाज की है, लेकिन क्या हिंदू समाज अपने ही देश में सुरक्षित है. अगर है तो हरियाणा के मेवात में 100 से अधिक गांव हिंदू विहीन हो क्यूं गए? पूरे उत्तर-पूर्व छोर पर नज़र डालें, तो दिखता है कि किसी गांव में एक हिंदू परिवार है, तो कहीं एक भी नहीं बचा है. उत्तरप्रदेश में मुज़फ़्फ़रनगर में गांवों से हिंदू आबादी का होता पलायन कैसे विस्मृत हो सकता है.
इन सबके साथ अपने देश के बग़ल के दो इस्लामिक देशों में रह रहे हिंदुओं-सिखों की दिनों-दिन घटी जनसंख्या क्या बात कह रही है. हम अगर थोड़ी आंकड़ेबाज़ी करें, तो दिखता है कि जब भारत से पाकिस्तान निकला तो वहां की जनसंख्या का 23% हिस्सा हिंदू समाज का था. लेकिन, अगर 2011 के ही आंकड़े देख लें, तो हिंदू आबादी तेज़ी से घटी है. मन में प्रश्न आता है कि ये हिंदू कहां चले गए, जो आज पाकिस्तान में हिंदू मात्र 3.7 प्रतिशत ही बचे हैं.
इसी प्रकार, 1971 के बाद बांग्लादेश का निर्माण हुआ तो वहां भी तेज़ी से हिंदू समाज की संख्या घटी है. अगर एक नज़र डालें कि 1971 मे हिंदू समाज 13.50% और 2011 में 8.54% रह गए हैं. इसका अर्थ है कि इस समाज को प्रताड़ित किया गया. भारत में भी कई बार ऐसी घटनाएं दिख जाती हैं.
जम्मू-कश्मीर में जबरन दो सिख लड़कियों का धर्मांतर अभी हाल की घटना प्रलोभन, ज़बरन धर्मांतरण को लेकर है. जम्मू कश्मीर में दो सिख लड़कियों को ज़बरन मुस्लिम बना उनसे शादी कर ली जाती है. प्रयागराज में पढ़ रही ऋतु को एक मुस्लिम युवक के सम्पर्क ने इतना प्रभावित कर दिया कि वो हिंदू धर्म छोड़ मुस्लिम बन गई और अपने घर परिवार से अलग रहकर मस्जिदों को 75,000 का दान हर महीने करती है. उत्तर प्रदेश में 2018 में 33 महिलाओं ने इस्लाम स्वीकार किया. मेरठ में एक हिंदू क़ैदी ने 2 लाख की लालच में इस्लाम स्वीकार कर लिया.
एटीएस द्वारा पकड़े गए उमर गौतम एवं मुफ़्ती क़ाज़ी जहांगीर काज़मी ये तो बानगी मात्र है इसके पीछे कितने वर्षों से ये धर्मांतरण का खेल चल रहा है, इसको भी जानने और समझने की ज़रूरत है. एक साल में 144 हिंदू एवं अन्य मतावलंबियों ने केरल में मुस्लिम धर्म अपनाया है, जिनमें 91 महिलाएं थीं.
क्या देश को जरूरत है धर्मांतरण कानून की? भारत में धर्मान्तरण का मुद्दा आज का ही नहीं, बल्कि अंग्रेज़ी हुकूमत में देशी रियासतों ने इसे लेकर 1930 से 46 तक कई बार मुद्दा बनाया था. इनमें रायगढ़ (1936), सरगुजा (1942), उदयपुर (1946) में इस पर क़ानून भी बना. भारत आजाद हुआ तो 1954 में इस पर बिल लाया गया लेकिन वो बहस की भेंट चढ़ गया. 1979 में कुछ काम हो पाया लेकिन वो भी नाकाफ़ी है. भारत में राज्यों ने धर्मान्तरण को लेकर क़ानून बनाए हैं जिनमें गुजरात एवं हिमाचल के क़ानून है, जिसे वर्तमान की भाजपा सरकार ने और अधिक मज़बूत किया है.
धर्मान्तरण को लेकर एक क़ानून की आवश्यकता देश को है. अगर हम 1951 में हिंदू आबादी को देखें तो वो 84.1% थी, जो 2011 में 79.8% रह गई है. वहीं, सिख आबादी 1951 में 1.89% थी 2011 में 1.72%, जैन 1951 में 0.46%, 2011 में 0.37% वहीं बौद्ध 1951 में 0.74% थे 2011 0.70%, ईसाई 1951 में 2.3 , 2011 में भी 2.3 % हैं. 1951 में मुस्लिम आबादी 9.8%, 2011 में 14.23% हैं. ऐसा लगता कि अब वक्त आ गया है कि सरकारों को जनसंख्या नियंत्रण क़ानून एवं धर्मान्तरण को लेकर क़ानून बनाना ही चाहिए. (डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
लेखक परिचय: प्रवेश कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर, जेएनयू
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली में सेंटर फॉर कंपैरेटिव पॉलिटिक्स एंड पॉलिटिकल थ्योरी, स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के सहायक प्राध्यापक. राजनीति और समसामयिक विषयों पर लेखन.