सख्त दिशा-निर्देशों और नियमों को लागू कराने के सरकार और संतों के प्रयासों का नतीजा यह हुआ कि मेले में सामान्य उपस्थिति का अंश ही पहुंचा. (फोटो: News18 English)
(स्वामी अवधेशानंद गिरि)
कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर काफी दुखद रही. पूरा राष्ट्र इस घातक वायरस के खिलाफ एक वीरतापूर्ण लड़ाई लड़ रहा है. यह भी सच है कि बड़ी संख्या में परिवारों को निजी नुकसान और भावनात्मक संकट का सामना करना पड़ा है. अब दुखों के कारणों का पता लगाना स्वभाविक है. ऐसे में हाल ही में हरिद्वार में संपन्न हुआ महाकुंभ मेला पूरे आरोप लगाने के लिए एक आसान लक्ष्य बन गया है, लेकिन क्या ऐसा करना सही है? आइए कुछ तथ्यों को जान लेते हैं.
महा कुंभ मेला करोड़ों भक्तों के लिए हजारों साल पुराना एक धार्मिक और सांस्कृतिक समारोह है. यूं तो आमतौर पर मेला 12 साल के अंतराल में आयोजित होता है. फिर भी तिथि और समय पर अंतिम निर्णय ज्योतिष विज्ञान के आधार पर संत लेते हैं. इसी तरह यह तय किया गया कि हरिद्वार का महाकुंभ मेला 2021 में आयोजित होगा.
लाखों लोगों की भक्ति का आह्वान करने वाले धार्मिक और सांस्कृतिक समारोहों का समाज में एक विशेष स्थान है. उदारण के तौर पर, जर्मनी में चांसलर एंजेला मार्केल ने ईस्टर के समारोह के लिए अपने लॉकडाउन के फैसले को वापस लिया था. वहीं, भारत में संतों ने अलग दृष्टिकोण रखा. पारंपरिक रूप से हरिद्वार कुंभ की अवधि चार महीने की होती है, जो जनवरी से अप्रैल तक चलती है. ऐसा ही पिछले महा कुंभ में भी रहा है. हालांकि, इस साल महामारी को देखते हुए खुद संतों ने अवधि को कम कर एक महीना करने का निर्णय लिया. इसके बाद मेला 1 से 30 अप्रैल तक चला. यह ऐसे समय में किया गया, जब पहली लहर लगभग कम हो चुकी थी. कुल मामले 10 हजार की रेंज में थे और जानकार अनुमान लगा रहे थे कि दूसरी लहर नहीं आएगी. इसके अलावा, जब अप्रैल में स्थिति इतनी जरूरी हो गई, तो माननीय प्रधानमंत्री की अपील पर मेले की अवधि को और कम कर दिया गया.
मेले की अवधि के दौरान सरकार ने वायरस के प्रसार को रोकने और निगरानी के लिए कड़े नियम तय किए थे. सभी तीर्थयात्रियों का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया था. पिछले 72 घंटों में लिया गया एक नेगेटिव आरटी-पीसीआर टेस्ट भी प्रवेश के लिए अनिवार्य कर दिया गया था. 150 से ज्यादा स्थायी और मोबाइल सैनिटाइजेशन पॉइंट स्थापित किए गए. कोविड संबंधी व्यवहार के पालन को सुनिश्चित करने के लिए करीब 2 हजार वॉलिंटियर्स को तैनात किया गया. कुंभ में लगे सभी फ्रंटलाइन कर्मियों को टीका लगाया गया था और इसमें 2.18 लाख डोज का इस्तेमाल हुआ था. भीड़ ना हो, इस बात को सुनिश्चित करने के लिए कड़े यात्रा दिशानिर्देश जारी किए गए. मेला वाले क्षेत्र में अलग-अलग स्थानों पर रेंडम टेस्ट किए गए. इस दौरान करीब 10 लाख जांचें की गईं और पॉजिटिविटी रेशो केवल 1.49 फीसदी के आसपास था.
सख्त दिशानिर्देशों और नियमों को लागू कराने के सरकार और संतों के प्रयासों का नतीजा यह हुआ कि मेले में सामान्य उपस्थिति का अंश ही पहुंचा. एक उदाहरण के तौर पर इस साल 14 अप्रैल को महा संक्रांति पर हुए शाही स्नान में केवल 13.5 लाख श्रद्धालुओं ने पवित्र डुबकी लगाई. जबकि, 2010 में हुए शाही स्नान में यह संख्या 1.8 करोड़ थी. यह आंकड़ा 13 गुना से भी ज्यादा है.
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Tags: Coronavirus, Haridwar, Kumbh, Second Wave
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