रिशद प्रेमजी (Rishad Premji) - Moneycontrol
नई दिल्ली. परोपकारी दानवीर का नाम लेते ही सबसे पहले अज़ीम प्रेमजी (Azim Premji) की याद आती है. अज़ीम प्रेमजी एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्हें लोग बिजनेसमैन के तौर पर कम और परोपकारी दानवीर के तौर पर ज्यादा जानते हैं. फिलहाल अजीम प्रेमजी ने अपना सारा कारोबार अपने बेटे को सौंप दिया है. बता दें कि आईटी सेक्टर के दिग्गज अजीम प्रेमजी की कंपनी विप्रो (Wipro) की कमान अब उनके बेटे रिशद प्रेमजी के हाथों में है. रिशद प्रेमजी (Rishad Premji) भी अपने पिता अजीम प्रेमजी की तरह ही सादगी पसंद व्यक्ति रहे हैं. चेयरमैन बनाये जाने से पहले रिशद विप्रो में ही मुख्य रणनीति अधिकारी थे. रिशद 2018-19 में आईटी कंपनियों के संगठन नैस्कॉम के चेयरमैन भी रहे हैं. रिशद को साल 2014 में विश्व आर्थिक मंच ने यंग ग्लोबल लीडर की उपाधि से नवाजा था. आइए जानें रिशद प्रेमजी के बारे में…
कौन है रिशद प्रेमजी- सन 2007 में रिशद विप्रो का हिस्सा बने थे. विप्रो में काम शुरू करने से पहले वो बेव कंपनी लंदन में काम करते थे. उन्होंने जीई कैपिटल के साथ भी काम किया है. रिशद प्रेमजी ने हॉवर्ड बिजनेस स्कूल से MBA किया है. साल 2014 में उनको वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने यंग ग्लोबल लीडर का अवार्ड दिया था. रिशद आईटी कंपनियों के संगठन नैस्कॉम (NASSCOM) के चेयरमैन भी रहे हैं.
सादगीभरे अंदाज में की थी रिशद ने शादी
देश के युवा उद्यमियों में से एक रिशद की निजी जिंदगी की बात करे तो उन्होंने साल 2005 में बेहद सादे समारोह में अदिति से शादी की थी. अदिति हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में रिशद के साथ पढ़ती थीं. रिशद के दो बच्चे रोहन और रिया हैं. रिशद को पढ़ने और म्यूजिक सुनने का बेहद शौक है. उनके दादा भारत के जाने-माने चावल व्यापारी थे. प्रेमजी का बचपन मुंबई में बीता.
पिता ने नहीं दी थी गेस्टहाउस में रुकने की परमिशन
अजीम प्रेमजी का जन्म 24 जुलाई 1945 को हुआ था विप्रो की स्थापना भी उसी समय 29 दिसबंर 1945 को हुई. 21 साल की उम्र में अजीम प्रेमजी ने पिता के जाने के बाद विप्रो को संभाला और दुनिया की प्रमुख आईटी कंपनियों में शामिल किया. प्रेमजी ने अपने बच्चों को भी उन्हीं मूल्यों के तहत परवरिश की, जिनमें वह यकीन करते रहे हैं. जब रिशद प्रेमजी लंदन में थे तो उन्होंने पिता अजीम प्रेमजी से विप्रो के गेस्टहाउस में रुकने की अनुमति मांगी लेकिन प्रेमजी ने यह कहते हुए उन्हें परमिशन देने से इनकार कर दिया था कि वह कंपनी की संपत्ति है.
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अज़ीम प्रेमजी को पढ़ाई छोड़ लौटना पड़ा स्वदेश
चूंकि अज़ीम प्रेमजी के परिवार की आर्थिक हालत अच्छी थी, तो शुरुआती जीवन में पढ़ाई के दौरान उन्हें कोई दिक्कत नहीं आई. मुंबई में स्कूली शिक्षा ली और फिर इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग करने अमेरिका स्थित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी चले गए. उस समय अज़ीम प्रेमजी की उम्र 21 वर्ष थी, लेकिन उनके साथ कुछ ऐसा होने वाला था, जिससे उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल जाने वाली थी. बात 1966 की है, जब स्टैनफोर्ड में पढ़ाई करते समय उन्हें पता चला कि उनके पिता का देहांत हो गया है. अज़ीम प्रेमजी को स्वदेश लौटना पड़ा.
दादा को था देश की मिट्टी से प्यार
अजीम के पिता मो. हुसैन हशम प्रेमजी भी कारोबारी थे. अजीम की मां गुलबानू ने मेडिकल डिग्री ली थी, लेकिन वह प्रैक्टिस नहीं करती थीं. हशम प्रेमजी ने महाराष्ट्र के अमलनेर में फैक्टरी लगाई थी. वहां वनस्पति तेल, साबुन आदि का प्रॉडक्शन होता था. प्रेमजी का परिवार गुजरात से नाता रखता है. पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना भी गुजराती मुस्लिम थे. जब भारत का विभाजन हुआ, तो जिन्ना ने हशम प्रेमजी को पाकिस्तान में बसने के लिए बुलाया था. जिन्ना ने उन्हें पाकिस्तान का वित्त मंत्री बनाने की पेशकश की थी. लेकिन हशम प्रेमजी ने अपनी जन्मभूमि भारत में ही रहना पसंद किया.
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