Boycott Chinese Products: कैसे चाइनीज सामान के लिए मजबूर होते गए भारतीय लोग?

हम चीन से सालाना करीब 67 बिलियन यूएस डॉलर का सामान इंपोर्ट कर रहे हैं
विशेषज्ञ ने बताया कि क्या करके हम चीन की कमर तोड़ सकते हैं. कैसे भारत के छोटे उद्योगपति धीरे-धीरे प्रोडक्शन छोड़कर चीनी माल के ट्रेडर बन गए?
- News18Hindi
- Last Updated: June 18, 2020, 8:10 PM IST
नई दिल्ली. पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर चीनी सैनिकों के साथ हुई हिंसक झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए. इसके बाद पूरे देश में बॉयकॉट चाइना (Boycott Chinese products) की मुहिम तेज हो गई है. कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने 500 से ज्यादा चीनी उत्पादों के बहिष्कार की लिस्ट जारी कर दी है. ऐसे में बड़ा सवाल ये उठता है कि कैसे और क्यों हम भारतीय लोग चीन के सामान के लिए मजबूर होते गए और क्या हम अभी चीन के उत्पादों का विरोध करने की स्थिति में हैं? हम कैसे चीन के उत्पादों का इस्तेमाल बंद करके उसे सबक सिखा सकते हैं.
इंडिया-चाइना इकोनॉमिक कल्चरल काउंसिल के सेक्रेटरी जनरल प्रोफेसर मो. साकिब का कहना है कि चीन पर भारत की निर्भरता इसलिए बढ़ती गई क्योंकि हमने अपने यहां फैक्ट्रियों को प्रमोट नहीं किया. कोई उद्योग लगाना चाहे तो उसे 40-45 तरह के इंस्पेक्टर तंग करते हैं और 50 तरह की परमिशन चाहिए होती है. ये सब बंद करना होगा तब छोटे उद्योग पनपेंगे.
कोई इससे उबर भी जाए तो लोन लेने में भ्रष्टाचार, उससे कई इंस्पेक्टर जो मंथली लेते हैं उसका खर्च अलग. इसकी वजह से यहां छोटे उद्योगों (Small Industry) में सामान बनाना महंगा पड़ता है. जो सामान हम 100 रुपये में बनाते हैं उससे अच्छा 70 रुपये में बनकर चाइना से हमारे घरों तक पहुंच जाता है. इसलिए भारत की बहुत सारी कंपनियां इन दिनों चीन से माल मंगाकर सिर्फ अपना ठप्पा लगाकर उसे बेच रही हैं. यूं ही नहीं, भारत वहां से सालाना करीब 67 बिलियन डॉलर का सामान इंपोर्ट कर रहा है.
ऐसे में कैसे स्थापित होंगे उद्योग
राष्ट्रपति अवार्डी सुनील कुमार सिंह कहते हैं कि उन्होंने इंडस्ट्रियल मॉडल टाउनशिप के प्लॉट पर सिडबी (Small Industries Development Bank of India) से 1.30 करोड़ रुपये के लोन के लिए साल भर पहले आवेदन किया. कोलेक्ट्रल के बावजूद उन्हें इसलिए लोन नहीं दिया जा रहा है क्योंकि सिडबी वाले टेबल के नीचे से पैसा चाहते हैं. स्काउट एंड गाइड में राष्ट्रपति अवार्ड लेने वाले सिंह का कहना है कि लोन (Loan) मिले न मिले वे बैंक अधिकारियों को रिश्वत नहीं देंगे. ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जिनकी वजह से अपने यहां उद्योग लगाने में दिक्कत आती है.
ये भी पढ़ें: संघ से जुड़े संगठन की मांग, चाइनीज कंपनियों को कांट्रैक्ट देना बंद करे सरकार
भारत की चीन पर ऐसी है निर्भरता
-हम सालाना 8 बिलियन यूएस डॉलर का आर्गेनिक केमिकल मंगा रहे हैं. दवा उद्योग का 85-90 फीसदी रॉ मैटीरियल चीन पर निर्भर है.
-हम चीन (China) से सालाना 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक्स सामान मंगा रहे हैं. यह बहुत बड़ी रकम है.
-खेती के लिए सालाना 2 बिलियन डॉलर का फर्टिलाइजर चीन से इंपोर्ट किया जा रहा है. इस मामले में भी हमारी निर्भरता ज्यादा है.
-भारत की मोबाइल कंपनियां भी चाइना से ही माल मंगाकर उसे असेंबल करके मार्केट में बेच रही हैं.
-जूता-चप्पल बनाने वाली भारत की कई कंपनियां चीन से तैयार माल मंगाकर उस पर अपना ठप्पा लगाकर बेच रही हैं.

चीन की आर्थिक कमर हम कैसे तोड़ सकते हैं?
प्रो. साकिब कहते हैं कि हमें अगर चीन को आर्थिक मोर्चे पर तोड़ना है तो ठंडे दिमाग से रणनीति बनानी पड़ेगी. चीन से मंगाए (Import) जाने वाले सामान को तीन श्रेणी में बांटकर उसे अपने यहां बनाने के लिए सरकार को सही माहौल देना होगा. छोटे उद्योग लगाने की पूरी छूट देनी होगी. लोन की प्रक्रिया सही मायने में आसान करनी होगी.
लो टेक्नॉलोजी की चीजें: ऐसी चीजें जिन्हें बनाने में नाम मात्र की तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है, जैसे लड़ियां, स्टेशनरी, खिलौने, भगवान की मूर्तियां, सजावट की चीजें, एफएमसीजी प्रोडक्ट, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, फर्निशिंग फैब्रिक्स, टेक्सटाइल्स, बिल्डर हॉर्डवेयर, फुटवेयर, अपैरल, किचन आइटम्स, आभूषण, स्टेशनरी, कागज आदि. इन्हें हम खुद बना सकते हैं. सबसे पहले इसके कारखाने लगाकर, उन्हें टैक्स में छूट देकर सस्ता करना चाहिए.
मशीन मंगाने पर न लगे टैक्स: अगर इन सामानों को बनाने के लिए कोई मशीन मंगा रहा है तो उस पर ड्यूटी खत्म कर देनी चाहिए. ताकि लोग उससे अपने यहां जरूरत का पूरा सामान बना सकें.
मीडियम टेक्नॉलोजी वाली चीजें: इलेक्ट्रॉनिक्स, घड़ियां, मोबाइल व अन्य उपकरणों में आत्मनिर्भर बनने के लिए 5 से 7 साल का वक्त तय करके रणनीति बनानी चाहिए.
हाई टेक्नॉलोजी वाली चीजें: ऐसी चीजें जिसमें बहुत हाई क्लास की तकनीक का इस्तेमाल होता है, जैसे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से जुड़ी चीजें और दवाएं आदि में आत्म निर्भर बनने के लिए 10 साल का वक्त देकर उसी के हिसाब से रणनीति बनानी चाहिए.
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MSME के लिए फिर रिजर्व किए जाएं प्रोडक्ट: मंच
स्वदेशी जागरण मंच (Swadeshi Jagran Manch) के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख दीपक शर्मा का कहना है कि चीन से मुकाबले के लिए हमें छोटे उद्योगों को आगे बढ़ाने की नीति को अपनाना होगा. पहले एमएसएमई (MSME) को बनाने के लिए 1700 आइटम रिजर्व थे. उसे कोई बड़ा उद्योग नहीं बना सकता था. लेकिन 2015 में इसे डि-रिजर्व कर दिया गया.

इससे छोटे उद्योगों को नुकसान हुआ. सरकार से मंच की मांग है कि इस लिस्ट को फिर से रिजर्व कर दिया जाए. उन्हें टैक्स में छूट दी जाए. उनके प्रति सरकार को लिबरल होना पड़ेगा. तब हम निश्चित तौर पर अपनी जरूरत का सस्ता और अच्छा सामान बना पाएंगे. मेरे ख्याल से अब खुली अर्थव्यवस्था के मॉडल को भी रिव्यू करने का वक्त आ गया है.
इंडिया-चाइना इकोनॉमिक कल्चरल काउंसिल के सेक्रेटरी जनरल प्रोफेसर मो. साकिब का कहना है कि चीन पर भारत की निर्भरता इसलिए बढ़ती गई क्योंकि हमने अपने यहां फैक्ट्रियों को प्रमोट नहीं किया. कोई उद्योग लगाना चाहे तो उसे 40-45 तरह के इंस्पेक्टर तंग करते हैं और 50 तरह की परमिशन चाहिए होती है. ये सब बंद करना होगा तब छोटे उद्योग पनपेंगे.
कोई इससे उबर भी जाए तो लोन लेने में भ्रष्टाचार, उससे कई इंस्पेक्टर जो मंथली लेते हैं उसका खर्च अलग. इसकी वजह से यहां छोटे उद्योगों (Small Industry) में सामान बनाना महंगा पड़ता है. जो सामान हम 100 रुपये में बनाते हैं उससे अच्छा 70 रुपये में बनकर चाइना से हमारे घरों तक पहुंच जाता है. इसलिए भारत की बहुत सारी कंपनियां इन दिनों चीन से माल मंगाकर सिर्फ अपना ठप्पा लगाकर उसे बेच रही हैं. यूं ही नहीं, भारत वहां से सालाना करीब 67 बिलियन डॉलर का सामान इंपोर्ट कर रहा है.

भारतीय सैनिकों पर चीन के हमले के बाद बॉयकॉट चाइना की मुहिम तेज हो गई है
राष्ट्रपति अवार्डी सुनील कुमार सिंह कहते हैं कि उन्होंने इंडस्ट्रियल मॉडल टाउनशिप के प्लॉट पर सिडबी (Small Industries Development Bank of India) से 1.30 करोड़ रुपये के लोन के लिए साल भर पहले आवेदन किया. कोलेक्ट्रल के बावजूद उन्हें इसलिए लोन नहीं दिया जा रहा है क्योंकि सिडबी वाले टेबल के नीचे से पैसा चाहते हैं. स्काउट एंड गाइड में राष्ट्रपति अवार्ड लेने वाले सिंह का कहना है कि लोन (Loan) मिले न मिले वे बैंक अधिकारियों को रिश्वत नहीं देंगे. ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जिनकी वजह से अपने यहां उद्योग लगाने में दिक्कत आती है.
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भारत की चीन पर ऐसी है निर्भरता
-हम सालाना 8 बिलियन यूएस डॉलर का आर्गेनिक केमिकल मंगा रहे हैं. दवा उद्योग का 85-90 फीसदी रॉ मैटीरियल चीन पर निर्भर है.
-हम चीन (China) से सालाना 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक्स सामान मंगा रहे हैं. यह बहुत बड़ी रकम है.
-खेती के लिए सालाना 2 बिलियन डॉलर का फर्टिलाइजर चीन से इंपोर्ट किया जा रहा है. इस मामले में भी हमारी निर्भरता ज्यादा है.
-भारत की मोबाइल कंपनियां भी चाइना से ही माल मंगाकर उसे असेंबल करके मार्केट में बेच रही हैं.
-जूता-चप्पल बनाने वाली भारत की कई कंपनियां चीन से तैयार माल मंगाकर उस पर अपना ठप्पा लगाकर बेच रही हैं.

चाइनीज प्रोडक्ट का हम कब बंद कर पाएंगे इस्तेमाल?
चीन की आर्थिक कमर हम कैसे तोड़ सकते हैं?
प्रो. साकिब कहते हैं कि हमें अगर चीन को आर्थिक मोर्चे पर तोड़ना है तो ठंडे दिमाग से रणनीति बनानी पड़ेगी. चीन से मंगाए (Import) जाने वाले सामान को तीन श्रेणी में बांटकर उसे अपने यहां बनाने के लिए सरकार को सही माहौल देना होगा. छोटे उद्योग लगाने की पूरी छूट देनी होगी. लोन की प्रक्रिया सही मायने में आसान करनी होगी.
लो टेक्नॉलोजी की चीजें: ऐसी चीजें जिन्हें बनाने में नाम मात्र की तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है, जैसे लड़ियां, स्टेशनरी, खिलौने, भगवान की मूर्तियां, सजावट की चीजें, एफएमसीजी प्रोडक्ट, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, फर्निशिंग फैब्रिक्स, टेक्सटाइल्स, बिल्डर हॉर्डवेयर, फुटवेयर, अपैरल, किचन आइटम्स, आभूषण, स्टेशनरी, कागज आदि. इन्हें हम खुद बना सकते हैं. सबसे पहले इसके कारखाने लगाकर, उन्हें टैक्स में छूट देकर सस्ता करना चाहिए.
मशीन मंगाने पर न लगे टैक्स: अगर इन सामानों को बनाने के लिए कोई मशीन मंगा रहा है तो उस पर ड्यूटी खत्म कर देनी चाहिए. ताकि लोग उससे अपने यहां जरूरत का पूरा सामान बना सकें.
मीडियम टेक्नॉलोजी वाली चीजें: इलेक्ट्रॉनिक्स, घड़ियां, मोबाइल व अन्य उपकरणों में आत्मनिर्भर बनने के लिए 5 से 7 साल का वक्त तय करके रणनीति बनानी चाहिए.
हाई टेक्नॉलोजी वाली चीजें: ऐसी चीजें जिसमें बहुत हाई क्लास की तकनीक का इस्तेमाल होता है, जैसे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से जुड़ी चीजें और दवाएं आदि में आत्म निर्भर बनने के लिए 10 साल का वक्त देकर उसी के हिसाब से रणनीति बनानी चाहिए.
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MSME के लिए फिर रिजर्व किए जाएं प्रोडक्ट: मंच
स्वदेशी जागरण मंच (Swadeshi Jagran Manch) के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख दीपक शर्मा का कहना है कि चीन से मुकाबले के लिए हमें छोटे उद्योगों को आगे बढ़ाने की नीति को अपनाना होगा. पहले एमएसएमई (MSME) को बनाने के लिए 1700 आइटम रिजर्व थे. उसे कोई बड़ा उद्योग नहीं बना सकता था. लेकिन 2015 में इसे डि-रिजर्व कर दिया गया.

चीन के खिलाफ भारत के लोगों में गुस्सा है
इससे छोटे उद्योगों को नुकसान हुआ. सरकार से मंच की मांग है कि इस लिस्ट को फिर से रिजर्व कर दिया जाए. उन्हें टैक्स में छूट दी जाए. उनके प्रति सरकार को लिबरल होना पड़ेगा. तब हम निश्चित तौर पर अपनी जरूरत का सस्ता और अच्छा सामान बना पाएंगे. मेरे ख्याल से अब खुली अर्थव्यवस्था के मॉडल को भी रिव्यू करने का वक्त आ गया है.