वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में पेश किया आर्थिक सर्वेक्षण.
नई दिल्ली. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) द्वारा जारी आर्थिक सर्वेक्षण (India Economic Survey 2023) में कहा गया है कि 2020 के बाद दुनिया को आर्थिक स्तर पर तीन बड़े झटकों का सामना करना पड़ा है. सभी राष्ट्र कोविड-19, रूस-यूक्रेन युद्ध और महंगी ब्याज दरों से प्रभावित हुए और उनकी विकास दर को नुकसान पहुंचा. हालांकि, ऐसे समय में भी भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी रही. वित्त वर्ष 22 में देश की अर्थव्यवस्था ने अन्य मुल्कों से बेहतर विकास दर हासिल की और वित्त वर्ष 23 में एक बार फिर कोविड-19 पूर्व स्थिति के रास्ते पर चल पड़ी. हालांकि, अभी देश के सामने मुद्रास्फीति पर लगान लगाने की चुनौती खड़ी है.
सर्वेक्षण में बताया गया है कि वैश्विक जिंसों की कीमतों में कमी और RBI की नीतियों की बदौलत महंगाई को संतोषजनक दायरे में लाया गया है. फिर भी रुपये में गिरावट एक चुनौती बनी हुई है. सर्वेक्षण के अनुसार, यह अन्य मुद्राओं के मुकाबले कम है और ऐसा फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि किए जाने के कारण हो रहा है. इन चुनौतियों के बावजूद दुनियाभर की एजेंसियां वित्त वर्ष 23 में भारत को सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में देख रही हैं. इनका अनुमान है कि भारत इस वित्त वर्ष में 6.5-7.0 फीसदी की वृद्धि दर के साथ आगे बढ़ेगा. कोई भी अन्य बड़ी अर्थव्यव्यस्था इस गति से आगे नहीं बढ़ रही है.
किन कारकों से मिली अर्थव्यवस्था को मदद
आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, निजी खपत में वृद्धि से उत्पादन गतिविधियों को बढ़ावा मिला. बेहतर टीकाकरण व्यवस्था के कारण लोग एक बार फिर रेस्तरां, होटल, सिनेमाघरों व शॉपिंग मॉल में आ पाए और आर्थिक चक्र एक बार फिर कुछ हद तक पहले की तरह चलने लगा. केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय ने भी इसमें बड़ा योगदान दिया. सर्वेक्षण के अनुसार, वित्त वर्ष 23 के पहले आठ महीने में केंद्र का पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) 63.4 फीसदी बढ़ा. सर्वे में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष में देश की आर्थिक वृद्धि के 2 मुख्य कारण निजी खपत और पूंजी संरचना ही रही है. इससे रोजगार सृजन को बढ़ावा मिला है जिसका सबूत कर्मचारी भविष्य निधि के पंजीकरण के रूप में देखा जा सकता है. हालांकि, प्राइवेट कंपनियों द्वारा अब खर्च को बढ़ाकर रोजगार सृजन में अब अपनी भूमिका भी निभानी होगी.
विश्व के सामने चुनौतियां
सर्वेक्षण के अनुसार, जनवरी 2020 के बाद विश्व के सामने सबसे बड़ी चुनौती कोविड-19 महामारी के रूप में सामने आई. 2 साल बाद जब विश्व अभी इस झटके से उबर ही रहा था कि रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष की शुरुआत हो गई. इसे चालू हुए अब लगभग 1 साल हो चुका है. पिछले 11 महीनों में वैश्विक अर्थव्यवस्था ने कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, उर्वरक और गेहूं जैसी महत्वपूर्ण वस्तुओं के दामों में इजाफा देखा. इससे मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिला. अधिकांश राष्ट्रों में मुद्रास्फीति ने रिकॉर्ड स्तर छू लिया. कमोडिटी की बढ़ती कीमतों में उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में भी मुद्रास्फीति को बढ़ाने का काम किया.
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