प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली. डिपॉजिट स्कीम की मैच्योरिटी पर विड्रॉल से बैंक यह कहकर इनकार नहीं कर सकता है कि डिपॉजिट सर्टिफिकेट गलती से जारी किया गया है. एक मामले की सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने यह बात कही.
एक दिलचस्प मामले में ओडिशा के बिसरा स्थित सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की ब्रांच ने 2007 में एक ग्राहक को 9.25% ब्याज पर 70,000 रुपये में मनी मल्टीप्लायर डिपॉजिट सर्टिफिकेट (MMDC) की रसीद जारी की. 5 साल बाद जब ग्राहक 1,00,842 रुपये की मैच्योरिटी रकम निकालने गया तो बैंक ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि डिपॉजिट स्लिप गलती से अनजाने में जारी की गई थी. बैंक ने यह भी दावा किया कि एमएमडीसी के लिए उनके अकाउंट से कोई पैसा नहीं काटा गया.
जिला फोरम ने ग्राहक के पक्ष में सुनाया फैसला
इससे दुखी होकर ग्राहक ने राउरकेला में जिला फोरम का दरवाजा खटखटाया जिसने उसके पक्ष में आदेश जारी किया. जिला फोरम ने बैंक को मानसिक पीड़ा और उत्पीड़न के लिए मुआवजे के रूप में 20,000 रुपये का भुगतान करने का भी आदेश दिया.
राज्य आयोग के फैसले के खिलाफ NCDRC में अपील
बैंक ने इस आदेश के खिलाफ राज्य आयोग के समक्ष अपील की, जिसने पिछले आदेश को पलट दिया. राज्य आयोग से झटके के बाद ग्राहक ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के समक्ष अपील की.
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NCDRC ने क्या कहा
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगने मामले की जांच की और पाया कि बैंक ने याचिकाकर्ता को एमएमडीसी जारी करने से इनकार नहीं किया है. राज्य आयोग के आदेश को रद्द करते हुए एनसीडीआरसी ने कहा कि बैंक ने याचिकाकर्ता द्वारा 70,000 रुपये जमा करने का विरोध किया है, लेकिन वह डिपॉजिट स्लिप के उपयोग की व्याख्या करने में सक्षम नहीं था.
एनसीडीआरसी ने कहा कि डिपॉजिट स्लिप और बैंक की मंशा के संबंध में राज्य आयोग के निष्कर्ष किसी सबूत पर नहीं बल्कि अनुमान पर आधारित प्रतीत होते हैं. यह मैटेरियल अनियमितता के बराबर है. इसलिए यह आयोग अपने रीविजनल क्षेत्राधिकार का प्रयोग करे.
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