मधुमेह सिर्फ़ अकेला नहीं आता, यह अपने साथ-साथ कई और परेशानियां भी लाता है.
क्या आपको पता है कि भारत को दुनिया की मधुमेह राजधानी माना जाता है? आकलन बताते हैं कि भारत में मधुमेह का रोग बढ़ रहा है और इतना ही नहीं, यह बहुत तेज़ी से फैल रहा है. द इंटरनेशनल डायबिटीज़ फ़ेडरेशन एटलस 2019 ने अनुमान लगाया कि 2019 तक भारत की वयस्क आबादी में मधुमेह के लगभग 7.7 करोड़ मरीज़ थे. इस संस्था का मानना है कि 2030 में यह संख्या 10.1 करोड़ और 20452 में 13.4 करोड़ हो जाएगी.
मधुमेह सिर्फ़ अकेला नहीं आता, यह अपने साथ-साथ कई और परेशानियां भी लाता है. मधुमेह, दुनिया भर में अंधेपन की पांचवी मुख्य वजह बन गया है. डायबिटिक रेटिनोपैथी, दुनिया भर में मधुमेह से पीड़ित लोगों में आंखों की रौशनी कम होने और अंधेपन की मुख्य वजहों में से एक है. डायबिटिक रेटिनोपैथी आंखों से जुड़ी एक ऐसी परेशानी है जो मधुमेह के रोगियों को होती है, जिससे रेटिना पर असर पड़ता है. शुरुआती अवस्था में इसकी पहचान नहीं हो पाती और सही समय पर इलाज न होने से आंखों की रौशनी हमेशा के लिए जा सकती है.
अच्छी खबर यह है कि डायबिटिक रेटिनोपैथी की वजह से होने वाले अंधेपन को पूरी तरह से रोका जा सकता है, बशर्ते कि इसे बहुत ही शुरुआती अवस्था में पहचान लिया जाए और मरीज़, डॉक्टर की सलाह को आंख बंद करके मानें3. हालांकि, पहला कदम है इस बीमारी का पता लगाना. डायबिटिक रेटिनोपैथी स्क्रीनिंग और नेत्र रोग विशेषज्ञ4 की निगरानी में किए जाने वाली आंखों की जांच से, डायबिटिक रेटिनोपैथी पता लगाया जा सकता है.
हालांकि, भारत में जांच करवाना ही अपने आप में एक चुनौती हो सकती है. डायबिटिक रेटिनोपैथी की जांच इतनी मुश्किल क्यों है इसकी कई वजह हैं5:
जगह: अगर आप किसी छोटे शहर या ग्रामीण इलाके में हैं, तो ऐसा हो सकता है कि नेत्र रोग विशेषज्ञ बहुत कम हों और बहुत दूर हों. इसलिए, ज़्यादा मरीज़ होने की वजह से डॉक्टर का अपॉइंटमेंट मिलने में काफ़ी समय लग सकता है5.
समय: डायबिटिक रेटिनोपैथी के रोग से पीड़ित कामकाजी लोगों को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. अगर आपके काम का समय लचीला है या आप कोई ऐसा काम करते हैं जिसमें आप काम के बीच से समय निकालकर डॉक्टर की अपॉइनमेंट ले सकते हैं, तब तो बढ़िया है! हालांकि, अगर ऐसा नहीं है, तो आप शायद इसे नज़रअंदाज़ कर रहे हैं… क्योंकि ईमानदारी से सोचा जाए, तो किसके पास इतना वक़्त है कि वह डॉक्टर के वेटिंग रूम में अपना आधा दिन बिता दे? खास तौर पर तब, जब आप छुट्टी और इसकी वजह से वेतन को होने वाले नुकसान को बर्दाश्त नहीं कर सकते5.
भले ही, आपके काम का समय लचीला हो, आप मैट्रो सिटी में रहते हों, और अच्छी चिकित्सकीय देखभाल का खर्च उठा सकते हों, इसके बावजूद मधुमेह के रोगियों के लिए प्रशिक्षित नेत्र रोग विशेषज्ञों की बहुत ज़्यादा कमी है. खास तौर पर इस बात को ध्यान में रखते हुए कि आपको डायबिटिक रेटिनोपैथी की सालाना जांच की ज़रूरत होती है, क्योंकि यह एक लगातार बढ़ने वाली बीमारी है और आपको जितने ज़्यादा समय से मधुमेह होता है इसका खतरा उतना ही बढ़ता जाता है6.
भारत में लगभग 12,000 नेत्र रोग विशेषज्ञ (लगभग 3,500 प्रशिक्षित रेटिना विशेषज्ञ) हैं. जैसा कि पहले बताया गया है, भारत में 20302 तक मधुमेह के 10 करोड़ से ज़्यादा रोगी होने की संभावना है. इसका मतलब है कि एक नेत्र रोग विशेषज्ञ पर मधुमेह वाले 8,333 लोगों की ज़िम्मेदारी है. यहां तक कि अगर इन सभी लोगों के आस-पास उनका नेत्र रोग विशेषज्ञ हो, तब भी डॉक्टर के लिए इन मरीज़ों को हर साल उनकी सालाना डायबिटिक रेटिनोपैथी जांच के लिए देख पाना लगभग नामुमकिन है.
रेटिना सोसाइटी ऑफ़ इंडिया की जॉइंट सेक्रेटरी मनीषा अग्रवाल के अनुसार, चिकित्सकों को इस अंतर की पूरी जानकारी है. साथ ही, इस वजह से अब चिकित्सक, एआई से संचालित समाधानों की तरफ़ रुख कर रहे हैं, जिससे कि वह ज़्यादा लोगों की जांच कर सकें और सिर्फ़ उन लोगों को देख सकें जिन्हें सच में नेत्र रोग विशेषज्ञ की ज़रूरत है. ऐसा हो सकता है कि ये आपको दो अलग-अलग ज़रूरतें लगें, लेकिन इस बारे में सोचें: डायबिटिक रेटिनोपैथी जांच के लिए एक प्रशिक्षित नेत्र रोग विशेषज्ञ की ज़रूरत होती है और बीमारी की सही पहचान और इलाज के लिए भी प्रशिक्षित नेत्र रोग विशेषज्ञ की ज़रूरत है!
क्या हो अगर उन मरीज़ों को अलग से पहचानने का कोई तरीका मिल जाए जिन्हें डायबिटिक रेटिनोपैथी है, ताकि डॉक्टर उन लोगों पर ध्यान केंद्रित कर सकें जिन्हें असल में उनकी मदद की ज़रूरत है? यहां पर एआई काम आ सकता है.
टाइप 2 मधुमेह के 301 मरीज़ों ने रेमिडियो ‘फ़ंडस ऑन फ़ोन’ (एफओपी) के साथ रेटिनल फोटोग्राफ़ी जांच की. यह स्मार्टफ़ोन आधारित डिवाइस है, जो भारत के एक शैक्षिक मधुमेह देखभाल केंद्र में है. 296 मरीज़ों के रेटिना की तस्वीरों की जांच की गई. नेत्र रोग विशेषज्ञों ने 191 (64.5%) और एआई सॉफ़्टवेयर ने 203 (68.6%) मरीज़ों में डायबिटिक रेटिनोपैथी का पता लगाया. वहीं, नेत्र रोग विशेषज्ञों ने 112 (37.8%) और एआई सॉफ़्टवेयर ने 146 (49.3%) मरीज़ों में आंखों की रौशनी कमज़ोर करने वाली डायबिटिक रेटिनोपैथी का पता लगाया7.
एआई को इस तरह से प्रोग्राम किया गया था कि उसने उन मामलों को भी पकड़ा जिनमें उसे डायबिटिक रेटिनोपैथी होने का शक था. यही वजह है कि जांच में एआई के मरीज़ों की संख्या नेत्र रोग विशेषज्ञों के मरीज़ों की तुलना में ज़्यादा रही. ऐसा इसलिए, क्योंकि AI का मकसद है सिर्फ़ स्पष्ट मामलों को पकड़ना. थोड़ा भी शक होने पर यह उन मरीज़ों को नेत्र रोग विशेषज्ञ के पास भेजता है.
रेडिकल हेल्थ की को-फ़ाउंडर रीतो मैत्रा के अनुसार, “रेडिकल हेल्थ जो बना रहा है और जिस चीज़ को हम आगे बढ़ाना चाहते हैं, वह यह है कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करके किसी भी तस्वीर को पढ़ने की क्षमता. जिससे कि पढ़ी जाने वाली हर तस्वीर से उसी समय और उसी जगह पर जांच नतीजे मिल सकें, वह भी किसी रेटिना विशेषज्ञ की ज़रूरत के बिना. इसके लिए मधुमेह विशेषज्ञ, पारिवारिक चिकित्सक, प्राथमिक देखभाल क्लीनिक, सरकारी प्रतिष्ठान, या ज़िला अस्पताल जैसे किसी भी संस्थान की मदद ली जा सकती है… यह कुछ ऐसा है जो कहीं भी और कभी भी किया जा सकता है.” रेडिकल हेल्थ का डिवाइस आधारित एआई समाधान, पहले से ही कई स्वास्थ्य सेवा संस्थाओं में इस्तेमाल किया जा रहा है.
एआई समाधानों के कई फ़ायदे हैं8. अब आपको डॉक्टर के क्लिनिक में और लंबा इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि अब जब एआई आपकी शुरुआती जांच कर सकता है, तो आप डॉक्टर के पास तभी जाएंगे जब आपको असल में ज़रूरत होगी. इसके अलावा, इस जांच को उन ग्रामीण इलाकों में भी किया जा सकता है जहां किसी नेत्र रोग विशेषज्ञ का पहुंचना मुश्किल है. प्रशिक्षित तकनीशियन इस जांच की निगरानी कर सकते हैं और नतीजों के आधार पर, आगे के इलाज के लिए मरीज़ों को नज़दीकी कस्बे या शहर में नेत्र रोग विशेषज्ञ के पास भेज सकते हैं.
नतीजा
ऐसा माना जाता है कि डायबिटिक रेटिनोपैथी, आंख की रौशनी को धीरे-धीरे खत्म कर देती है, लेकिन ऐसा हो यह ज़रूरी नहीं है. सिर्फ़ इस बात की कमी है कि आम जनता के बीच इसे लेकर जागरूकता नहीं है. ज़ाहिर बात है, अगर मधुमेह से पीड़ित हर इंसान को पता हो कि उन्हें सालाना डायबिटिक रेटिनोपैथी जांच करवानी है, तो ऐसी कोई चीज़ नहीं जिस वजह से इसे पहले जैसा नहीं किया जा सकता. जैसा कि हमने कई अन्य बीमारियों के साथ किया है, जो अब हमें याद भी नहीं.
इस महान उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए और डायबिटिक रेटिनोपैथी जांच के महत्व के बारे में जागरूकता की कमी को दूर करने के लिए, नेटवर्क18 ने Novartis के साथ मिलकर Netra Suraksha पहल शुरू की है. यह इस पहल का दूसरा सीज़न है और इसका मकसद है डायबिटिक रेटिनोपैथी के बारे में जागरूकता बढ़ाना, गलतफ़हमियों को दूर करना और बचाव के लिए आंखों की जांच को बढ़ावा देना.
डायबिटिक रेटिनोपैथी और इससे आंखों की रौशनी को होने वाले नुकसान के बारे में ज़्यादा जानने के लिए, Netra Suraksha पहल की वेबसाइट पर जाएं.
Source:
1. Pandey SK, Sharma V. World diabetes day 2018: Battling the Emerging Epidemic of Diabetic Retinopathy. Indian J Ophthalmol. 2018 Nov;66(11):1652-1653. Available at: https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC6213704/ [Accessed 4 Aug 2022]
2. IDF Atlas, International Diabetes Federation, 9th edition, 2019. Available at: https://diabetesatlas.org/atlas/ninth-edition/ [Accessed 4 Aug 2022]
3. Abràmoff MD, Reinhardt JM, Russell SR, Folk JC, Mahajan VB, Niemeijer M, Quellec G. Automated early detection of diabetic retinopathy. Ophthalmology. 2010 Jun;117(6):1147-54. Available at: https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC2881172/ [Accessed 4 Aug 2022]
4. Complications of Diabetes. Available at: https://www.diabetes.org.uk/guide-to-diabetes/complications [Accessed 25 Aug 2022]
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6. Ramachandran Rajalakshmi, Umesh C Behera, Harsha Bhattacharjee, Taraprasad Das, Clare Gilbert, G V S Murthy, Hira B Pant, Rajan Shukla, SPEED Study group. Spectrum of eye disorders in diabetes (SPEED) in India. Report # 2. Diabetic retinopathy and risk factors for sight threatening diabetic retinopathy in people with type 2 diabetes in India. Indian J Ophthalmol. 2020 Feb;68(Suppl 1):S21-S26.. Available at https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/31937724/ [Accessed on 25 Aug 2022]
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