भगत सिंह के परिवार ने किसान आंदोलन में दिया था खास योगदान, जानें सबकुछ

भगत सिंह के परिवार ने किसान आंदोलन में दिया था खास योगदान
पंजाब में पिछले 2 महीनों से किसान आंदोलन चल रहा है. नए कृषि कानून के खिलाफ सितंबर में खुद पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह शहीद भगत सिह के गांव खटकड़ कलां में धरने पर बैठ गए थे.
- News18Hindi
- Last Updated: December 3, 2020, 6:43 PM IST
नई दिल्ली: पंजाब में पिछले 2 महीन से किसान आंदोलन चल रहा है. वहां के हजारों किसान 9 दिन से दिल्ली बॉर्डर पर बैठे हुए हैं. कहा जा रहा है कि इस आंदोलन में ज्यादातर पंजाब के ही लोग क्यों हैं? बता दें कि कृषि एक्ट के खिलाफ सितंबर में खुद पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह शहीद भगत सिह के गांव खटकड़ कलां में धरने पर बैठ गए थे. इस गांव के किसानों का हमेशा से ही आंदोलन से गहरा नाता है. भगत सिंह के अलावा उनके चाचा सरदार अजीत सिंह भी एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी किसानों को समर्पित कर दी.
किसानों के लिए किया काफी काम
उन्होंने किसानों के लिए ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ (Pagdi Sambhal Jatta) आंदोलन चलाया. इसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें 40 साल का देश निकाला दे दिया. भगत सिंह के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू ने न्यूज18 हिंदी खास बातचीत की. इसमें उन्होंने बताया कि हमारे परिवार ने हमेशा से ही किसानों के लिए काफी काम किया है. अंग्रेज सरकार ने कॉलोनाइजेशन एक्ट और दोआब बारी एक्ट बनाया था. इसमें नहर बनाने के नाम पर किसानों से उनकी जमीन हथिया ली गई थी. साथ ही उल्टे-सीधे टैक्स भी लगाए जा रहे थे. किसान परेशान किए जाने लगे.
इसे भी पढ़ें: क्या सरकारी खरीद ज्यादा होने से बढ़ जाती है किसानों की आमदनी?
आइए आपको ‘पगड़ी संभाल जट्टा’आंदोलन की कहानी बताते हैं-
23 फरवरी 1881 को पंजाब के खटकड़ कलां में जन्मे अजीत सिंह (भगत सिंह के चाचा) ने इसके खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया. 3 मार्च 1907 को लायलपुर (अब पाकिस्तान) में एक रैली हुई. इसी में एक व्यक्ति ने पगड़ी संभाल जट्टा, पगड़ी संभाल ओए...गाना गाया. वो गाना फेमस हो गया. इस तरह वहां से जो किसान आंदोलन (Kisan Andolan) शुरू हुआ उसका नाम ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ पड़ गया.
संधू बताते हैं कि किसान इस आंदोलन से जुड़ते गए. अंग्रेजों के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे. आंदोलन और बड़ा न हो जाए इसके लिए अंग्रेजों ने अजीत सिंह को 40 साल के लिए देश निकाला दे दिया. इसके बाद वो जर्मनी, इटली, अफगानिस्तान आदि में गए और किसानों व देश को आजाद करवाने की आवाज बुलंद रखी.
इसे भी पढ़ें: किसान आंदोलन के बाद अब PMFBY को लेकर कई राज्य उठाने वाले हैं बड़ा कदम
अपनी जिंदगी के बेहतरीन पलों में वे अपने वतन से दूर दूसरे मुल्कों में भटकते रहे. क्योंकि स्वतंत्रता की मांग और किसान आंदोलन की वजह से अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी घोषित कर रखा था. लेकिन जब वो 38 साल बाद देश लौटे लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. देश का विभाजन हो चुका था. वो इससे काफी दुखी थे. 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ. आजादी (Freedom) के इस मतवाले ने इसी दिन इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

अजीत सिंह, किशन सिंह और ‘भागां वाला’
संधू अपने पिता से सुने वर्णनों के आधार पर बताते हैं कि भगत सिंह जी की माता विद्यावती देवी और दादी जयकौर ने अपने पोते का नाम ‘भागां वाला’ रखा था. क्योंकि उस दिन 28 सितम्बर 1907 को उनके पिता किशन सिंह संधू व चाचा अजीत सिंह जेल से रिहा हुए थे. जिसकी वजह से मिलता जुलता नाम भगत सिंह रखा. भगत सिंह के दादा अर्जुन सिंह गदर पार्टी आंदोलन से जुड़े हुए थे. उनके पिता किशन सिंह लाला लाजपत राय के साथ अंग्रेजों से लोहा लेते रहे.
किसानों के लिए किया काफी काम
उन्होंने किसानों के लिए ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ (Pagdi Sambhal Jatta) आंदोलन चलाया. इसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें 40 साल का देश निकाला दे दिया. भगत सिंह के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू ने न्यूज18 हिंदी खास बातचीत की. इसमें उन्होंने बताया कि हमारे परिवार ने हमेशा से ही किसानों के लिए काफी काम किया है. अंग्रेज सरकार ने कॉलोनाइजेशन एक्ट और दोआब बारी एक्ट बनाया था. इसमें नहर बनाने के नाम पर किसानों से उनकी जमीन हथिया ली गई थी. साथ ही उल्टे-सीधे टैक्स भी लगाए जा रहे थे. किसान परेशान किए जाने लगे.
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पिछले 9 दिन से दिल्ली बॉर्डर पर जारी है किसान आंदोलन
आइए आपको ‘पगड़ी संभाल जट्टा’आंदोलन की कहानी बताते हैं-
23 फरवरी 1881 को पंजाब के खटकड़ कलां में जन्मे अजीत सिंह (भगत सिंह के चाचा) ने इसके खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया. 3 मार्च 1907 को लायलपुर (अब पाकिस्तान) में एक रैली हुई. इसी में एक व्यक्ति ने पगड़ी संभाल जट्टा, पगड़ी संभाल ओए...गाना गाया. वो गाना फेमस हो गया. इस तरह वहां से जो किसान आंदोलन (Kisan Andolan) शुरू हुआ उसका नाम ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ पड़ गया.
संधू बताते हैं कि किसान इस आंदोलन से जुड़ते गए. अंग्रेजों के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे. आंदोलन और बड़ा न हो जाए इसके लिए अंग्रेजों ने अजीत सिंह को 40 साल के लिए देश निकाला दे दिया. इसके बाद वो जर्मनी, इटली, अफगानिस्तान आदि में गए और किसानों व देश को आजाद करवाने की आवाज बुलंद रखी.
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अपनी जिंदगी के बेहतरीन पलों में वे अपने वतन से दूर दूसरे मुल्कों में भटकते रहे. क्योंकि स्वतंत्रता की मांग और किसान आंदोलन की वजह से अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी घोषित कर रखा था. लेकिन जब वो 38 साल बाद देश लौटे लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. देश का विभाजन हो चुका था. वो इससे काफी दुखी थे. 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ. आजादी (Freedom) के इस मतवाले ने इसी दिन इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

किसानों का प्रदर्शन जारी है. (फाइल फोटो)
अजीत सिंह, किशन सिंह और ‘भागां वाला’
संधू अपने पिता से सुने वर्णनों के आधार पर बताते हैं कि भगत सिंह जी की माता विद्यावती देवी और दादी जयकौर ने अपने पोते का नाम ‘भागां वाला’ रखा था. क्योंकि उस दिन 28 सितम्बर 1907 को उनके पिता किशन सिंह संधू व चाचा अजीत सिंह जेल से रिहा हुए थे. जिसकी वजह से मिलता जुलता नाम भगत सिंह रखा. भगत सिंह के दादा अर्जुन सिंह गदर पार्टी आंदोलन से जुड़े हुए थे. उनके पिता किशन सिंह लाला लाजपत राय के साथ अंग्रेजों से लोहा लेते रहे.