राज्यों पर उनकी जीडीपी के अनुपात में कर्ज लगातार बढ़ रहा है.
नई दिल्ली. चुनाव आते ही तमाम राजनीतिक दल अपने मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त के सामान बांटने की होड़ मचा देते हैं. कोई फ्री में टीवी बांट रहा होता है तो कोई कैश और साड़ी देता है. वित्त आयोग और तमाम सरकारी एजेंसियां लगातार इसे लेकर चेतावनी देती रही हैं, लेकिन राजनीतिक दलों में मुफ्त के सामान बांटने की होड़ कम नहीं हो रही.
मामला इतना बढ़ा कि सुप्रीम कोर्ट को भी इसमें दखल देना पड़ा. बीते मंगलवार को शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से कहा कि चुनाव के दौरान ऐसे मुफ्ट बंदरबांट पर लगाम कसने के लिए आप वित्त आयोग की भी मदद लीजिए. इसके बाद 15वें वित्त आयोग के मुखिया एनके सिंह ने राजनीतिक पार्टियों की इस मनमानी पर लगाम कसने का फूल प्रूफ प्लान तैयार किया है. इसे लागू करने के बाद राजनीतिक दल वोटर्स को लुभाने के लिए मुफ्त के सामान बांटने से हिचकिचाएंगे. सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 3 अगस्त को करेगा.
क्या बोले एनके सिंह
15वें वित्त आयोग के मुखिया एनके सिंह ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर कहा, राज्यों को टैक्स में हिस्सेदारी मिलना उनका अधिकार है लेकिन मुफ्ट के सामान बांटने से उनकी आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो रही है. इस पर लगाम कसने के लिए राज्यों के बढ़ते राजकोषीय घाटे और उन्हें मिलने वाले अनुदान को अब मुफ्त की योजनाओं से लिंक किया जाएगा. इसके लिए केंद्र और राज्यों के कानून में बदलाव करना होगा, ताकि राज्यों की राजकोषीय स्थिति को देखते हुए उन्हें ग्रांट जारी किया जा सके.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर कर अश्विनी उपाध्याय ने कहा था कि राज्यों पर कुल 6.5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज हो चुका है और वे श्रीलंका की तरह दिवालिया होने की राह पर हैं. कई राज्यों का कर्ज उनकी जीडीपी का 40 फीसदी से भी अधिक पहुंच गया है, जिसमें बड़ी भूमिका मुफ्त की योजनाओं की भी है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मामले में संज्ञान लेने को कहा, साथ ही केंद्र सरकार से इस पर लगाम कसने के लिए वित्त आयोग को शामिल करने का निर्देश दिया.
1 लाख करोड़ रुपये पहुंचीं मुफ्त वाली योजनाएं
विभिन्न राज्यों में जनता को दी जाने वाली मुफ्त योजनाओं की कुल सीमा 1 लाख करोड़ रुपये को भी पार कर चुकी है. रिजर्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया था कि पंजाब में जीडीपी के मुकाबले उसका कर्ज 53.3 फीसदी पहुंच गया है, जबकि वहां की नई आप सरकार ने लोगों को 300 यूनिट फ्री बिजली देने का भी वादा किया है. इससे डिस्कॉम पर कर्ज का बोझ और बढ़ जाएगा. राजस्थान में कर्ज का अनुमान 39.5 फीसदी तो बिहार में 38.6 फीसदी पहुंच चुका है. अगर केंद्र सरकार की बात करें तो उसका कर्ज जीडीपी के 90 फीसदी तक पहुंच गया है.
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