रघुराम राजन ने कहा-दूसरी तिमाही के आर्थिक आंकड़ों की खुशी मनाना जल्दबाजी, अभी लगेगा लंबा वक्त

पूर्व आरबीआई गवर्नर और अर्थशास्त्री रघुराम राजन
पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन (Raghuram Rajan) ने एक इंटरव्यू में कहा कि दूसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर (Economic Growth Rate) के आंकड़ों को लेकर खुश मनाना जल्दबाजी होगा. मौजूदा महामारी में लोगों की आमदनी घटी है और वो लंबे समय तक अर्थव्यवस्था में मांग बनाये रखने की स्थिति में नही हैं.
- News18Hindi
- Last Updated: December 3, 2020, 9:35 PM IST
नई दिल्ली. चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भारतीय आर्थिक विकास दर (Economic Growth Rate) अनुमान से बेहतर रहा है. पहली तिमाही में यह आंकड़ा -23.90 फीसदी होने के बाद अनुमान लगाया जा रहा था कि दूसरी तिमाही में आर्थिक विकास दर करीब 10 फीसदी के आसपास रहेगा. कई अर्थशास्त्री अपनी उम्मीद से बेहतर इस आर्थिक दर को लेकर दांव खेलने में लगे हैं. इस बीच पूर्व आरबीआई गवर्नर और अर्थशास्त्री रघुराम राजन (Raghuram Rajan) का कहना है कि दूसरी तिमाही में वृद्धि दर से बहुत ज्यादा उत्साहित होने की जरूरत नहीं है. एक डिजिटल प्लेटफॉर्म से बात करते हुए राजन ने कहा कि महामारी से देश की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान हुआ है. नौकरियों समेत इन नुकसान का असर लंबी अवधि में देखने को मिलेगा.
अर्थव्यवस्था में मांग को कायम रखना मुश्किल
राजन ने कहा कि अर्थव्यवस्था में मौजूदा रिकवरी मांग की वजह से है. फिलहाल चिंता की बात यह है कि रिकवरी आखिर कब तक जारी रहती है. उन्होंने कहा कि सच तो यही है कि लोगों को नौकरी से निकाला गया है. उनकी आमदनी घटी है और वो ऐसी स्थिति में नहीं हैं कि बहुत दिनों तक मांग को बढ़ावा दे सकें. राजन ने कहा, 'आर्थिक रिकवरी अच्छी खबर है, लेकिन सवाल यह है कि आखिर यह कब तक चलेगी.'
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लॉकडाउन के नुकसान की भरपाई में लंबा समय
डिजिटल प्लेटफॉर्म मोजो को दिए इस इंटरव्यू में रघुरान राजन ने कहा कि वर्तमान में अर्थव्यवस्था को लेकर खुशी मनाना जल्दबाजी हो सकती है. देश की अर्थव्यवस्था में रिकवरी का दौर अभी शुरू हुआ है, यही अच्छी बात है. लेकिन लॉकडाउन की वजह से देश की अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान हुआ है और इसकी भरपाई करने में लंबा वक्त लगेगा.
और बेहतर हो सकते थे दूसरी तिमाही के आंकड़े
राजन ने केंद्र सरकार पर अरोप भी लगाया कि सरकार आर्थिक ग्रोथ की रफ्तार कायम रखने में फेल रही है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने जरूरत के हिसाब से पैसे नहीं खर्च किए. राजन ने कहा कि अगर कोरोना वायरस महामारी में सरकार और रकम खर्च करती तो दूसरी तिमाही के जीडीपी के आंकड़ों में उसका असर देखने को मिलता.
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देश में बड़े कॉरपोरेट घरानों की तरफ से बैंक खोले जाने पर राजन ने कहा कि इसमें चिंता की सबसे बड़ी बात है कि ऐसे बैंक उन्हीं कॉरपोरेट घरानों की जरूरत को पूरा करते रह जाएंगे. उन्होंने कहा कि पिछले कई साल के दौरान भारत में एनपीए यानी फंसा कर्ज बढ़ा है. लेकिन इसके बाद भी जीडीपी और कर्ज का अनुपात बहुत कम है. इससे साफ है कि जरूरत वाले लोगों को भी कर्ज देने में उदारता नहीं बरती जा रही है.
अर्थव्यवस्था में मांग को कायम रखना मुश्किल
राजन ने कहा कि अर्थव्यवस्था में मौजूदा रिकवरी मांग की वजह से है. फिलहाल चिंता की बात यह है कि रिकवरी आखिर कब तक जारी रहती है. उन्होंने कहा कि सच तो यही है कि लोगों को नौकरी से निकाला गया है. उनकी आमदनी घटी है और वो ऐसी स्थिति में नहीं हैं कि बहुत दिनों तक मांग को बढ़ावा दे सकें. राजन ने कहा, 'आर्थिक रिकवरी अच्छी खबर है, लेकिन सवाल यह है कि आखिर यह कब तक चलेगी.'
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लॉकडाउन के नुकसान की भरपाई में लंबा समय
डिजिटल प्लेटफॉर्म मोजो को दिए इस इंटरव्यू में रघुरान राजन ने कहा कि वर्तमान में अर्थव्यवस्था को लेकर खुशी मनाना जल्दबाजी हो सकती है. देश की अर्थव्यवस्था में रिकवरी का दौर अभी शुरू हुआ है, यही अच्छी बात है. लेकिन लॉकडाउन की वजह से देश की अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान हुआ है और इसकी भरपाई करने में लंबा वक्त लगेगा.
और बेहतर हो सकते थे दूसरी तिमाही के आंकड़े
राजन ने केंद्र सरकार पर अरोप भी लगाया कि सरकार आर्थिक ग्रोथ की रफ्तार कायम रखने में फेल रही है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने जरूरत के हिसाब से पैसे नहीं खर्च किए. राजन ने कहा कि अगर कोरोना वायरस महामारी में सरकार और रकम खर्च करती तो दूसरी तिमाही के जीडीपी के आंकड़ों में उसका असर देखने को मिलता.
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देश में बड़े कॉरपोरेट घरानों की तरफ से बैंक खोले जाने पर राजन ने कहा कि इसमें चिंता की सबसे बड़ी बात है कि ऐसे बैंक उन्हीं कॉरपोरेट घरानों की जरूरत को पूरा करते रह जाएंगे. उन्होंने कहा कि पिछले कई साल के दौरान भारत में एनपीए यानी फंसा कर्ज बढ़ा है. लेकिन इसके बाद भी जीडीपी और कर्ज का अनुपात बहुत कम है. इससे साफ है कि जरूरत वाले लोगों को भी कर्ज देने में उदारता नहीं बरती जा रही है.