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कॉफी की खुशबू बदल रही बस्तर की तकदीर, Bastar Cafe बना शहर की पहचान, आय में हुई 4 गुना वृद्धि

बस्तर की बदल रही किस्मत (Photo-ANI)

बस्तर की बदल रही किस्मत (Photo-ANI)

छत्तीसगढ़ का बस्तर नक्सलियों और गोलियां की गूंज के लिए बदनाम था. मगर अब वक्त बदल चुका है और वक्त के साथ तस्वीर भी बदल च ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

गांव की बसंती यादव क्षेत्र में उपलब्ध रोजगार के अवसरों को याद करते हुए कहती हैं.
पहले हमें रोजगार की तलाश में गांव से बाहर जाना पड़ता था.
कॉफी प्लांटेशन प्रोजेक्ट शुरू होने से स्थिति में उल्लेखनीय बदलाव आया है.

असम से लेकर केरल तक की कॉफी के किस्से तो आपने बहुत सुने ही होंगे लेकिन क्या आपने बस्तर की काफी के बारे में सुना है. बस्तर छत्तीसगढ़ राज्य का वह जिला है, जहां कभी हवा में बारूद उड़ता था. मगर अब वहां के खेतों में कॉफी महक रही है. एक दौर था, जब छत्तीसगढ़ का बस्तर नक्सलियों और गोलियां की गूंज के लिए बदनाम था. मगर अब वक्त बदल चुका है और वक्त के साथ तस्वीर भी बदल चुकी है. कॉफी की खुशबू अब बस्तर की नई पहचान बनकर सामने आई है. माओवादी हिंसा, विकास की कमी और बेरोजगारी से सबसे बुरी तरह प्रभावित बस्तर क्षेत्र की कहानी को बदलते हुए अब साफ देखा जा सकता है और अब यह कॉफी के उत्पादन का केंद्र बनने की राह पर अग्रसर है.

माओवादी हिंसा के लिए जाना जानें वाला एक अविकसित क्षेत्र बस्तर जिला अब कॉफी बोर्ड ऑफ इंडिया के सहयोग से हॉर्टिकल्चर कॉलेज द्वारा किए जा रहे कॉफी उत्पादन के रूप में उभरा है. यह ग्रामीणों को रोजगार के अवसर प्रदान कर रहा है और उनकी आय दोगुनी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. बागवानी वैज्ञानिक कृष्ण पाल सिंह ने कहा कि 2017-18 में प्रयोगात्मक आधार पर कॉफी अरेबिका की चार किस्मों और कॉफी रोबस्टा की एक किस्म को 20 एकड़ में लगाया गया था.

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2020-21 में की गई थी पहली कटाई
उन्होंने आगे बताया कि इस पहल के तहत, कॉफी अरेबिका की चार अलग-अलग किस्मों और कॉफी रोबस्टा की एक किस्म का रोपण क्रमशः 2017 और 2018 में शुरू किया गया था, जबकि पहला उत्पादन 2020 में शुरू किया गया था. करीब 100 एकड़ जमीन और ब्रांड नाम ‘बस्तर कॉफी’ में इसकी सुगंध पूरे देश में फैल रही है. उन्होंने कहा कि पहली कटाई 2020-21 में की गई थी.

आय में हुई चार गुना बढ़त्तरी
गांव दरभा निवासी बसंती यादव क्षेत्र में उपलब्ध रोजगार के अवसरों को याद करते हुए कहती हैं, ”पहले हमें रोजगार की तलाश में गांव से बाहर जाना पड़ता था. अब कॉफी प्लांटेशन प्रोजेक्ट शुरू होने से स्थिति में उल्लेखनीय बदलाव आया है. और इससे हमें पैतृक गांव में ही रोजगार मिल गया है. पहले, मैं एक दुकान पर काम करके प्रति माह ₹1500 कमा रही थी और अब एक कॉफी क्षेत्र में काम करके ₹6000 मासिक आय प्राप्त कर रही हूं.

वैज्ञानिक ने कहा कि जिले के किसानों को कॉफी के उत्पादन और उसके प्रसंस्करण के लिए इकाई स्थापित करके अधिक से अधिक लाभ सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि बस्तर में कॉफी की खेती को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार बस्तर कैफे की स्थापना कर रही है और यह कॉफी प्रेमियों को आकर्षित कर रहा है.

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कॉफी बागान बना बिजनेस मॉडल
2016 में बस्तर में शुरू किए गए कॉफी बागान अब एक बिजनेस मॉडल के रूप में उभर रहे हैं. कॉफी की शुरुआत के लिए 2016 में जिला प्रशासन ने दरभा ब्लॉक में वन अधिकार पट्टा (वन भूमि डीड) के धारकों और वृक्षारोपण के लिए वन भूमि के उचित उपयोग के लिए एक कदम उठाया था. दरभा वही जगह है जहां एक माओवादी हमले ने छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेतृत्व का लगभग सफाया कर दिया था. 25 मई, 2013 को दरभा प्रखंड के झीरम घाटी में पार्टी की ‘परिवर्तन यात्रा’ के दौरान नक्सलियों ने कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हमला किया था, जिसमें तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस प्रमुख नंद कुमार पटेल, पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा, पूर्व संघ सहित लगभग 29 लोग मारे गए थे.

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