कोरोना का कहर! देश के कर्ज में भारी इजाफा, 90 फीसदी पहुंचा डेट-जीडीपी रेश्यो

90 फीसदी पहुंचा डेट-जीडीपी रेश्यो
कोरोना संकट की वजह से देश का कर्ज-जीडीपी का अनुपात 90 फीसदी पर पहुंच गया है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की ओर से रिपोर्ट जारी कर इस बारे में जानकारी दी गई है.
- News18Hindi
- Last Updated: April 8, 2021, 12:24 PM IST
नई दिल्ली: देश में फैली कोरोना महामारी (COVID 19) के चलते देश का कर्ज-जीडीपी का अनुपात (India debt GDP ratio) ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की ओर से जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 में देश का कर्ज 74 फीसदी था जो कि कोरोना संकट में बढ़कर 90 फीसदी पर पहुंच गया है. साल 2020 में देश का कुल GDP (Gross domestic product) 189 लाख करोड़ रुपये रहा था. वहीं, कर्ज करीब 170 लाख करोड़ रुपये था.
IMF की ओर से जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक, देश का कर्ज तो बढ़ा है लेकिन इस समय पर इकोनॉमी में जो सुधार और रिकवरी देखने को मिल रही है उसकी वजह से यह अनुपात करीब 10 फीसदी तक घट सकता है. यानी जल्द ही यह अनुपात 80 फीसदी हो जाएगा.
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जानें क्या बोले डिप्टी डायरेक्टर पाओलो मॉरोPTI की ओर से मिली जानकारी के मुताबिक, IMF के वित्तीय मामले विभाग के डिप्टी डायरेक्टर पाओलो मॉरो ने कहा, 'कोरोना महामारी से पहले साल 2019 में भारत का कर्ज अनुपात सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 74 फीसदी था, लेकिन साल 2020 में यह जीडीपी के करीब 90 फीसदी तक आ गया है. यह बढ़त काफी ज्यादा है, लेकिन दूसरे उभरते बाजारों या उन्नत अर्थव्यवस्थाओं का भी यही हाल है.'
इसके आगे उन्होंने कहा कि हमारा अनुमान है जिस तरह से देश की इकोनॉमी में सुधार होगा. देश का कर्ज भी कम होगा. इसके साथ ही जल्द ही यह कर्ज 80 फीसदी पर पहुंच जाएगा.
कंपनियों और लोगों की मदद की जानी चाहिए
पाओलो मॉरो ने कहा कि इस संकट में हमें देश की कंपनियों और लोगों की मदद करनी चाहिए, जिससे वह अपने कामकाज को आगे बढ़ा सकें. इससे देश की इकोनॉमी को भी रफ्तार मिलेगी. साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि आम जनता और निवेशकों को यह फिर से भरोसा दिया जाए कि लोक वित्त नियंत्रण में रहेगा और एक विश्वसनीय मध्यम अवधि के राजकोषीय ढांचे द्वारा इसे किया जाएगा. आपको बता दें देश का जो भी कुल कर्ज होता है उसमें केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों के कर्ज का ही योग होता है.
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बता दें कि पॉलिसी मीट में भी आरबीआई ने वित्त वर्ष 2022 के लिए जीडीपी ग्रोथ अनुमान 10.5 फीसदी ही दिया था. देश में ग्रोथ को कोविड की वजह से भारी मार पड़ी है. सप्लाई चेन बुरी तरह से प्रभावित हुई है और छोटे कारोबारियों की कमर टूट गई है. इसके अलावा आरबीआई ने वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी में 7.5-8 फीसदी के संकुचन का अनुमान किया है.
क्या होता है डेट-GDP अनुपात?
डेट-GDP अनुपात या सरकारी कर्ज अनुपात के जरिए किसी भी देश के कर्ज चुकाने की क्षमता को दिखाता है, जिस देश का डेट-GDP रेश्यो जितना ज्यादा होता है उस देश को कर्ज चुकाने के लिए उतनी ही ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अगर किसी देश का डेट-GDP अनुपात जितना अधिक बढ़ता है, उसके डिफाॅल्ट होने की आशंका उतनी अधिक हो जाती है.
IMF की ओर से जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक, देश का कर्ज तो बढ़ा है लेकिन इस समय पर इकोनॉमी में जो सुधार और रिकवरी देखने को मिल रही है उसकी वजह से यह अनुपात करीब 10 फीसदी तक घट सकता है. यानी जल्द ही यह अनुपात 80 फीसदी हो जाएगा.
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इसके आगे उन्होंने कहा कि हमारा अनुमान है जिस तरह से देश की इकोनॉमी में सुधार होगा. देश का कर्ज भी कम होगा. इसके साथ ही जल्द ही यह कर्ज 80 फीसदी पर पहुंच जाएगा.
कंपनियों और लोगों की मदद की जानी चाहिए
पाओलो मॉरो ने कहा कि इस संकट में हमें देश की कंपनियों और लोगों की मदद करनी चाहिए, जिससे वह अपने कामकाज को आगे बढ़ा सकें. इससे देश की इकोनॉमी को भी रफ्तार मिलेगी. साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि आम जनता और निवेशकों को यह फिर से भरोसा दिया जाए कि लोक वित्त नियंत्रण में रहेगा और एक विश्वसनीय मध्यम अवधि के राजकोषीय ढांचे द्वारा इसे किया जाएगा. आपको बता दें देश का जो भी कुल कर्ज होता है उसमें केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों के कर्ज का ही योग होता है.
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बता दें कि पॉलिसी मीट में भी आरबीआई ने वित्त वर्ष 2022 के लिए जीडीपी ग्रोथ अनुमान 10.5 फीसदी ही दिया था. देश में ग्रोथ को कोविड की वजह से भारी मार पड़ी है. सप्लाई चेन बुरी तरह से प्रभावित हुई है और छोटे कारोबारियों की कमर टूट गई है. इसके अलावा आरबीआई ने वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी में 7.5-8 फीसदी के संकुचन का अनुमान किया है.
क्या होता है डेट-GDP अनुपात?
डेट-GDP अनुपात या सरकारी कर्ज अनुपात के जरिए किसी भी देश के कर्ज चुकाने की क्षमता को दिखाता है, जिस देश का डेट-GDP रेश्यो जितना ज्यादा होता है उस देश को कर्ज चुकाने के लिए उतनी ही ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अगर किसी देश का डेट-GDP अनुपात जितना अधिक बढ़ता है, उसके डिफाॅल्ट होने की आशंका उतनी अधिक हो जाती है.