2021-22 में भारत की विकास दर 4.1 फीसदी रही थी.
नई दिल्ली. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की ओर से आज दोपहर में चालू वित्तवर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के विकास दर आंकड़े जारी किए जाएंगे. इससे पहले न्यूज एजेंसी रॉयटर ने इकनॉमिस्ट के बीच कराए सर्वे में बताया है कि इस बार विकास दर 15 से 16 फीसदी कमे दायरे में रह सकती है.
पिछली तीन तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की विकास दर 15.2 फीसदी रही जो एक साल पहले की तुलना में काफी ज्यादा थी. बीते वित्तवर्ष भारत की कुल विकास दर 4.1 फीसदी ही रही थी. अगर अप्रैल-जून, 2021 की बात की जाए तो जीडीपी की विकास दर 20.1 फीसदी रही थी, जो कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान अप्रैल-जून तिमाही की विकास दर से काफी आगे थी. अर्थशास्त्रियों ने इस साल की पहली तिमाही में 9 फीसदी से लेकर 21.5 फीसदी तक विकास दर रहने का अनुमान लगाया है. हालांकि, आज दोपहर 12 बजे आधिकारिक आंकड़े भी जारी कर दिए जाएंगे.
आरबीआई के अनुमान से पीछे रहेगी विकास दर
रॉयटर के पोल में बताया गया है कि इस साल भले ही पिछले साल के मुकाबले विकास दर का अनुमान ज्यादा लगाया जा रहा हो, लेकिन यह आरबीआई के 16.2 फीसदी अनुमान से पीछे ही रह सकती है. रिजर्व बैंक ने मई से अब तक रेपो रेट में 1.40 फीसदी की वृद्धि की है, जिसका असर आर्थिक गतिविधियों पर भी दिखेगा. कुछ अर्थशास्त्री यह भी अनुमान लगा रहे कि आगे भी आरबीआई 0.25 फीसदी रेपो रेट बढ़ा सकता है, जिससे विकास दर पर और असर पड़ने का अनुमान है.
रॉयटर पोल के अनुसार, महंगाई भी आर्थिक गतिविधियों को सुस्त बना रही है. ब्याज दरें बढ़ने के साथ महंगाई के दबाव में उपभोक्ता खपत तेजी से घट रही. इसका सीधा असर विकास दर पर दिखेगा, क्योंकि खाने और ईंधन की कीमतों में वृद्धि से उपभोक्ता खर्च में गिरावट आई है. आर्थिक गतिविधियों में भागीदारी की बात की जाए तो उपभोक्त खपत की इसमें हिस्सेदारी करीब 55 फीसदी की है.
आने वाली तिमाहियों में सुस्त पड़ेगी विकास दर
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि चालू तिमाही के साथ आने वाली तिमाहियों में महंगाई और ब्याज दर का असर दिखेगा, जिससे विकास दर में काफी गिरावट आ सकती है. पोल में अनुमान लगाया गया है कि जुलाई-सितंबर तिमाही में भारत की विकास दर घटकर 6.2 फीसदी, अक्तूबर-दिसंबर तिमाही में 4.5 फीसदी और जनवरी-मार्च तिमाही में 4.2 फीसदी रहने का अनुमान है.
रुपये की कमजोरी का भी असर
विश्लेषकों का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती का जोखिम आगे और बढ़ सकता है, क्योंकि इस पर आरबीआई की सख्त मौद्रिक नीतियों का असर दिखेगा. इस साल डॉलर के मुकाबले रुपये में करीब 7 फीसदी गिरावट आई है, जिससे आयात बिल बढ़ा है और उपभोक्ताओं व कारोबारियों के लिए आयातित सामान खरीदना महंगा हो गया. यह निश्चित तौर पर जीडीपी की ग्रोथ पर असर डालेगा.
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