बिहार से चलने या बिहार को जाने वाली ट्रेनों में कंफर्म टिकट हासिल करना एक चुनौती से कम नहीं है.
बिहार, बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश के शहरों के लिए समय पर कंफर्म रेल टिकट हासिल करना एक चुनौती है. इससे कोई इनकार नहीं कर सकता. इन इलाकों से बड़ी संख्या में लोग रोजगार की तलाश में बाहर जाते हैं और फेस्टिव सीजन में अपने घर-गांव लौटते हैं. फिर त्योहारों के बाद वह अपनी कर्म भूमि की ओर लौटने लगते हैं. रेल इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी कहें या पैसेंजर्स की अधिकता. इन इलाकों से गुजरने वाली ट्रेनों में हफ्तेभर के भीतर कंफर्म टिकट हासिल करना लगभग असंभव है. ऐसे में इन इलाकों में ट्रेनों में कंफर्म टिकट हासिल करने के लिए खूब ट्रिक-टेक्निक अपनाए जाते हैं. आज एक ऐसी ही ट्रिक वाली बात की चर्चा करते हैं. यह कहानी है बिहार के एक जिले के दो स्टेशनों की. ये दोनों स्टेशन बेहद व्यस्त कहे जाने वाले रेल मार्ग पर हैं. यहां से रोज हजारों की संख्या में यात्री सफर करते हैं. लेकिन, यह एक पहेली है. इन दो स्टेशनों से आपको दिल्ली या देश में कहीं और जाना है तो यह काफी संभव है सेम ट्रेन, डेट और क्लास में एक जगह से आपको कंफर्म टिकट मिल जाए और उसी जिले के दूसरे स्टेशन से आप टिकट बुक करें तो आपको वेटिंग हाथ लगे.
यह बात बहुत कम यात्रियों को पता होती है. ऐसे में ट्रेवल एजेंटों के लिए यह कमाई का एक बढ़िया जरिया है. वह ग्राहकों से टिकट कंफर्म कराकर देने का वादा करते हैं और इसके लिए अनाप-शनाप पैसे वसूलते हैं. आज आप इस ट्रिक को जानकर देश के अन्य रूट में भी इसे अप्लाई कर सकते हैं. दूसरे रूट पर भी यह ट्रिक काम करता है. लेकिन अन्य रूट्स पर टिकटों की इतनी मारा-मारी नहीं रहती है. इसलिए यात्री बहुत परेशान नहीं होते.
दरअसल, रेलवे अपनी ट्रेनों का संचालन जोन, मंडल और डिविजन के स्तर पर करती है. आमतौर पर जिस स्टेशन से कोई ट्रेन ओरिजिन होती है वहां से उसमें पर्याप्त संख्या में टिकट रहते हैं. ओरिजिन स्टेशन से टिकट बुक कराने पर उसके कंफर्म मिलने का चांस काफी अधिक होता है. यह बात यहीं खत्म नहीं होती है. यहीं पर ट्रिक होता है. ओरिजिन स्टेशन के आगे के कुछ स्टेशनों तक भी रेलवे जनरल कोटा की तरह टिकट बुक करता है. इसको उदारहण से समझते हैं. मान लीजिए A नामक ट्रेन X स्टेशन से ओरिजिन यानी चलना शुरू करती है. X स्टेशन के बाद उस रूट में Y और Z स्टेशन भी पड़ते हैं, जहां से भी बड़ी संख्या में पैसेजर्स गाड़ी में सवार होते हैं. ऐसे में रेलवे X, Y और Z तीनों स्टेशनों के लिए सीटों का कोटा एक कर देती है. इसके बाद के अन्य स्टेशनों पर अलग कोटा लगता है.
इस जिले में हैं ये दो स्टेशन
बिहार में सारण एक बहुत पुराना जिला है. इसमें दो प्रमुख स्टेशन हैं छपरा और सोनपुर. छपरा जिला मुख्यालय है जबकि सोनपुर एक प्रमुख शहर और रेल डिविजन है. यह पूर्व मध्य रेल मंडल के तहत आता है. इसके अप रूट की बात करें तो इसमें सोनपुर से पहले कई अहम स्टेशन पड़ते हैं- जैसे हाजीपुर, समस्तीपुर, बरौनी, दरभंगा, कटिहार. सोनपुर के बाद छपरा, सीवान, गोरखपुर स्टेशन आते हैं. रेल डिविजन होने के कारण सोनपुर को पार करते समय अधिकतर ट्रेनों में रिजर्वेशन के नियम बदल जाते हैं. अगर कोई ट्रेन दरभंगा से चलकर दिल्ली तक जाती है तो उसमें दरंभगा से लेकर सोनपुर तक का टिकट ओरिजिन स्टेशन के कोटे (GN यानी जनरल कोटा) के तहत बुक होगा. यानी उसमें सीट की उपलब्धता ज्यादा होगी.
लेकिन, जैसे ही आप उस ट्रेन में छपरा से टिकट बुक कराएंगे तो कोटा बदलकर RLया PQ में कंवर्ट हो जाएग. आरएल का फुल फॉर्म रिमोट लोकेशन और पीक्यू का फुल फॉर्म पुल्ड कोटा होता है. आप छपरा या सीवान से दिल्ली के लिए किसी ट्रेन में टिकट देखेंगे तो आपको वेटिंग दिखेगा. लेकिन, जब आप उसी ट्रेन में उसी डेट में सोनपुर से टिकट देखेंगे तो आपको हो सकता है कंफर्म या कम वेटिंग दिखेगा. यहीं पर ट्रेवल एजेंट खेल करते हैं. जब आप उनसे छपरा-सीवान से दिल्ली के लिए टिकट कराने को बोलेंगे तो वे आपसे कंफर्म टिकट देने का वादा कर ज्यादा पैसे मांगेंगे. फिर वे सोनपुर से आपका टिकट करवाकर बोडिंग स्टेशन छपरा-सीवान कर देंगे. इससे आपका किराया 50 रुपये तक बढ़ जाएगा. लेकिन, वे आपसे और ज्यादा पैसे मांगेंगे और कहेंगे कि उन्होंने विशेष तरीके से टिकट कंफर्म करवाया है. तो है न यह एक पहेली.
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