चालू वित्त वर्ष में इन सरकारी बैंकों का नहीं हो पाएगा निजीकरण, जानें क्या है वजह?

कोविड-19 संकट के बीच सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की वैल्यूएशन घट गई है. ऐसे में सरकारी बैंकों के निजीकरण पर असमंजस की स्थिति है.
COVID-19 के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) की रिकवरी प्रोसेस थम गई है. वहीं, वैश्विक महामारी (Pandemic) के कारण निजी क्षेत्र के बैंकों की माली हालत (Financial Health) भी बिगड़ गई है. हालांकि, सरकार कुछ साल से एक के बाद एक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को एकदूसरे में विलय (Merger) करती जा रही है.
- News18Hindi
- Last Updated: June 14, 2020, 3:45 PM IST
नई दिल्ली. कोरोना वायरस (Coronavirus) कारण पैदा हुए आर्थिक हालात को देखते हुए चालू वित्त वर्ष में किसी सरकारी बैंक (PSBs) के निजीकरण (Privatisation) की उम्मीद नहीं है. दरअसल, कोविड-19 के बीच सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) के घटे मूल्यांकन (Low Valuations) और स्ट्रेस्ड एसेट्स (Stressed Assets) में बढ़ोतरी की वजह से बड़ा फायदा मिलने की उम्मीद नहीं है. ऐसे में सरकार की ओर से फिलहाल सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण नहीं करने का फैसला लिया जा सकता है.
4 पीएसबी पर लगी पाबंदियों के कारण बेचने का औचित्य नहीं
सार्वजनिक क्षेत्र के चार बैंक इस समय भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (PCA) ढांचे के तहत हैं, जो उन पर कई प्रतिबंध लगाता है. इनमें कर्ज देने, प्रबंधन क्षतिपूर्ति और निदेशकों की फीस पर पाबंदियां शामिल हैं. ऐसे में इन सरकारी कर्जदाताओं की बिक्री का कोई औचित्य नहीं है. इनमें इंडियन ओवरसीज बैंक (IOB), सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (CBI), यूको बैंक (UCO Bank) और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया (UBI) शामिल हैं. सूत्रों का कहना है कि मौजूदा हालात में प्राइवेट बैंकिंग सेक्टर से उन्हें कोई खरीदार मिलना ही मुश्किल हो जाएगा.
ये भी पढ़ें-अब इस सरकारी बैंक के साथ हुई करोड़ों रुपये की धोखाधड़ी, जानें कैसे किया गया फ्रॉडकई पीएसबी में 75 फीसदी से ज्यादा है सरकार की हिस्सेदारी
सूत्रों के मुताबिक, इस समय बैंक अपने रणनीतिक क्षेत्र (Strategic Sectors) से जुड़े किसी भी संस्था की बिक्री से परहेज ही करेगी. पिछले कई साल में बमुश्किल किसी सरकारी बैंक ने वैल्यूएशन कम रहने पर अपनी हिस्सेदारी बेचने का फैसला लिया होगा. वहीं, अतिरिक्त पूंजी डालने (Capital Infusion) के कारण कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 75 फीसदी से भी ज्यादा हो गई है. COVID-19 के कारण सरकारी बैंकों की रिकवरी प्रोसेस थम गई है. वहीं, वैश्विक महामारी (Pandemic) के कारण निजी क्षेत्र के बैंकों की माली हालत (Financial Health) भी अच्छी नहीं है.
ये भी पढ़ें- बड़ी खबर! रेलवे ने इस स्पेशल ट्रेन की टाइमिंग में किया बदलाव, टिकट बुक करने से पहले जानें यहां
बैंकों की माली सुधारने के लिए बजट में नहीं की गई कोई व्यवस्था
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (FM Nirmala Sitharaman) ने बजट 2020-21 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की माली हालत सुधारने के लिए किसी तरह के कैपिटल इंफ्यूजन का प्रावधान भी नहीं किया था. हालांकि, सरकार कुछ साल से एक के बाद एक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को एकदूसरे में विलय (Merger) कर एकीकरण (consolidation) करती जा रही है. सरकार ने इसकी शुरुआत 2008 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) में स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र के विलय के साथ की थी. इसके बाद 2010 में स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का विलय भी एसबीआई में कर दिया गया था. इसके बाद ये सिलसिला जारी रहा.
ये भी पढ़ें- टैक्स बचत के लिए जून तिमाही में किया है निवेश तो आईटीआर दाखिल करते समय यहां देना होगा ब्योरा
ये भी पढ़ें- किसानों का फायदा, अच्छी बारिश से बुआई के लिए ज्यादा तैयारी की जरूरत नहींं
4 पीएसबी पर लगी पाबंदियों के कारण बेचने का औचित्य नहीं
सार्वजनिक क्षेत्र के चार बैंक इस समय भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (PCA) ढांचे के तहत हैं, जो उन पर कई प्रतिबंध लगाता है. इनमें कर्ज देने, प्रबंधन क्षतिपूर्ति और निदेशकों की फीस पर पाबंदियां शामिल हैं. ऐसे में इन सरकारी कर्जदाताओं की बिक्री का कोई औचित्य नहीं है. इनमें इंडियन ओवरसीज बैंक (IOB), सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (CBI), यूको बैंक (UCO Bank) और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया (UBI) शामिल हैं. सूत्रों का कहना है कि मौजूदा हालात में प्राइवेट बैंकिंग सेक्टर से उन्हें कोई खरीदार मिलना ही मुश्किल हो जाएगा.
ये भी पढ़ें-अब इस सरकारी बैंक के साथ हुई करोड़ों रुपये की धोखाधड़ी, जानें कैसे किया गया फ्रॉडकई पीएसबी में 75 फीसदी से ज्यादा है सरकार की हिस्सेदारी
सूत्रों के मुताबिक, इस समय बैंक अपने रणनीतिक क्षेत्र (Strategic Sectors) से जुड़े किसी भी संस्था की बिक्री से परहेज ही करेगी. पिछले कई साल में बमुश्किल किसी सरकारी बैंक ने वैल्यूएशन कम रहने पर अपनी हिस्सेदारी बेचने का फैसला लिया होगा. वहीं, अतिरिक्त पूंजी डालने (Capital Infusion) के कारण कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 75 फीसदी से भी ज्यादा हो गई है. COVID-19 के कारण सरकारी बैंकों की रिकवरी प्रोसेस थम गई है. वहीं, वैश्विक महामारी (Pandemic) के कारण निजी क्षेत्र के बैंकों की माली हालत (Financial Health) भी अच्छी नहीं है.
ये भी पढ़ें- बड़ी खबर! रेलवे ने इस स्पेशल ट्रेन की टाइमिंग में किया बदलाव, टिकट बुक करने से पहले जानें यहां
बैंकों की माली सुधारने के लिए बजट में नहीं की गई कोई व्यवस्था
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (FM Nirmala Sitharaman) ने बजट 2020-21 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की माली हालत सुधारने के लिए किसी तरह के कैपिटल इंफ्यूजन का प्रावधान भी नहीं किया था. हालांकि, सरकार कुछ साल से एक के बाद एक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को एकदूसरे में विलय (Merger) कर एकीकरण (consolidation) करती जा रही है. सरकार ने इसकी शुरुआत 2008 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) में स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र के विलय के साथ की थी. इसके बाद 2010 में स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का विलय भी एसबीआई में कर दिया गया था. इसके बाद ये सिलसिला जारी रहा.
ये भी पढ़ें- टैक्स बचत के लिए जून तिमाही में किया है निवेश तो आईटीआर दाखिल करते समय यहां देना होगा ब्योरा
ये भी पढ़ें- किसानों का फायदा, अच्छी बारिश से बुआई के लिए ज्यादा तैयारी की जरूरत नहींं