भ्रातियां निवेश निर्णयों को प्रभावित करती हैं.
नई दिल्ली. भविष्य की वित्तीय सुरक्षा के लिए बचत और निवेश बहुत जरूरी है. लेकिन, बचत और निवेश के बारे में सोचते वक्त ज्यादातर लोगों के दिमाग में कई तरह के मिथक होते हैं. कुछ मिथक या भ्रम बहुत से लोगों के मन में इस तरह से समाए होते हैं कि वह उन्हें ही पूरी तरह से सही मानते हैं. मिथकों का शिकार होने का सबसे बड़ा कारण है वित्तीय साक्षरता की कमी. इसका नतीजा यह होता है कि निवेशक गलत वित्तीय फैसले ले लेता है.
ऐसे में हर निवेशक के लिए निवेश से जुड़े हुए इन मिथकों और हकीकत के अंतर को समझना बेहद जरूरी है. ये मिथक आपके वित्तीय लक्ष्य को हासिल करने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा हैं. तो आइए आज जानते हैं इनवेस्टमेंट से जुड़े उन मिथकों के बारे में जिनका शिकार अक्सर एक सामान्य निवेशक हो जाता है.
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कम एनएवी वाला फंड सही
बहुत से रिटेल निवेशकों को भ्रम है कि कम नेट एसेट वैल्यू (NAV) वाले म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) सस्ते होते हैं. इस गलत धारणा का इस्तेमाल अक्सर नए फंड ऑफर (NFO) को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है, क्योंकि उनकी यूनिट्स का अंकित मूल्य 10 रुपये होता है. NAV म्यूचुअल फंड यूनिट की वैल्यू होती है. यह किसी भी समय पर फंड की प्रति यूनिट वैल्यू को बताती है. यानी, किसी समय पर एक यूनिट की कीमत कितनी है, यही एनएवी है.
म्यूचुअल फंड एनएवी को बहुत से कारक प्रभावित करते हैं. क्योंकि, फंड के एनएवी का निर्धारण इसके कांस्टिट्यूएंट इनवेस्टमेंट्स की मार्केट वैल्यू के आधार पर निर्धारित होती. इसलिए एक अच्छी तरह से मैनेज्ड फंड का एनएवी दूसरे फंड की तुलना में तेजी से बढ़ सकता है. इसी तरह नए फंड का एनएवी पुराने फंड की तुलना में ज्यादा होता है. इसलिए केवल एनएवी के आधार पर ही किसी म्यूचुअल फंड में निवेश का निर्णय लेना सही नहीं है.
रिटायरमेंट प्लानिंग बुढ़ापे का काम
रिटायरमेंट प्लानिंग अधिकतर लोगों की प्राथमिकता में शामिल ही नहीं होती है. उनका मानना है कि यह काम जवानी में करने का है ही नहीं. इसी धारणा के चलते वे अपनी सेवानिवृत्ति योजना को टाल देते हैं. अगर आपकी भी यही धारणा है तो आप अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं. जितनी जल्दी आप रिटायरमेंट प्लानिंग शुरू करेंगे, आप उतने ही फायदे में रहेंगे. उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति 30 साल की उम्र से ही रिटायरमेंट प्लानिंग करता है और इक्विटी फंड में प्रति माह 10,000 रुपये का निवेश सिप के माध्यम से करता है, 60 साल की उम्र तक वह 3.49 करोड़ रुपये का सेवानिवृत्ति कोष बना लेगा. 3.49 करोड़ का फंड तो उसे औसतन 12 प्रतिशत का वार्षिक रिटर्न मिलने पर ही मिल जाएगा. अगर रिटर्न ज्यादा मिलेगा तो और बड़ा फंड बनेगा. वहीं, 45 साल की उम्र से रिटायरमेंट कॉर्पस के लिए निवेश करना शुरू करते हैं, तो उन्हें 60 साल की उम्र तक 3.49 करोड़ का फंड बनाने के लिए 70,000 रुपये का मासिक निवेश करना होगा.
छोटी रकम निवेश करना अक्लमंदी नहीं
कम आय और बचत वाले बहुत से लोगों का मानना है कि छोटी रकम कहीं भी निवेश करने से फायदा नहीं होता. हालांकि, उनकी यह धारणा बिल्कुल गलत है. अधिकांश एमएफ योजनाओं में एकमुश्त निवेश के लिए न्यूनतम राशि सिर्फ 5,000 रुपये है. इसी तरह, अधिकांश म्यूचुअल फंड योजनाओं में सिप के माध्यम से 1,000 रुपये से भी निवेश किया सकता है. सिप से कम पैसों से किया गया निवेश भी बहुत फायदा देता है क्योंकि इनमें चक्रवृद्धि ब्याज मिलता है.
फिक्स्ड इनकम इनवेस्टमेंट सबसे सही
कई निवेशक लॉन्ग टर्म में बड़ा फंड बनाने के लिए फिक्स्ड इनकम निवेश योजनाओं जैसे पब्लिक प्रोविडेंट फंड, राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र, और एफडी आदि को ही सही मानते हैं. उनका मानना है कि इस काम के लिए इक्विटी में निवेश सही नहीं है. हालांकि, उनकी यह धारणा बिल्कुल गलत है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इक्विटी का रिटर्न महंगाई दर से ज्यादा होता है. जबकि, एफडी जैसे विकल्पों में मिलने वाला रिटर्न महंगाई को मात नहीं दे पाता.
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