मूनलाइटिंग पर एक्सपर्ट्स की अलग-अलग राय है
नई दिल्ली. मून लाइट. पिछले कुछ महीनों से इसपर काफी चर्चा है. आईटी इंडस्ट्री में तो इसपर टॉप ऑर्डर से लेकर एंप्लाईज तक में खूब बात हो रही है. कुछ हफ्ते पहले विप्रो चेयरमैन रिशद प्रेमजी के एक ट्वीट के बाद इसपर और चर्चा शुरू हुई, जिसमें उन्होंने लिखा, टेक इंडस्ट्री में लोगों द्वारा मूनलाइटिंग किए जाने पर काफी बात हो रही है. सीधी और सरल भाषा में बोलें तो ये चीटिंग है.
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज ने आईटी इंडस्ट्री के 400 कर्मचारियों पर कुछ हफ्ते पहले एक सर्वे किया. इसमें जानकारी निकली की 65% कर्मचारियों ने कहा है कि वह वर्क फ्रॉम होम के दौरान या तो खुद पार्ट टाइम जॉब में बिजी थे, या वे ऐसे ऑफिस सहयोगी को जानते हैं जो पार्ट टाइम काम करता था.
कर्मचारियों की अपनी राय
एक तरफ जब तमाम एक्सपर्ट और सीईओ कह रहे हैं कि आईटी इंडस्ट्री के लिए ये एक चुनौतीपुर्ण समय है, उसमें मूनलाइटिंग इंडस्ट्री को और परेशानी में डाल रहा है. दूसरी तरफ प्रेमजी के ट्वीट के बाद कर्मचारियों के भी अपने अलग-अलग व्यू हैं. कई का कहना है, वे अपने ऑफिस टाइमिंग के बाद क्या करेंगे, इसका निर्णय सिर्फ वे ले सकते हैं.
सबसे पहले जान लेते हैं मूनलाइटिंग है क्या?
कोई कर्मचारी अपने 9 से 5 की जॉब के बाद कोई फुल टाइम जॉब करता है तो वह मूनलाइटिंग कहलाता है. इसमें ऐसे लोग भी हैं जो पार्ट टाइम जॉब या कुछ साइड जॉब करते हैं. ये सिर्फ आईटी सेक्टर में ही नहीं हैं.
मूनलाइटिंग का मामला कब सामने आया?
कोविड लॉकडाउन के दौरान जब वर्क फ्रॉम होम का कल्चर आया, इसके बाद मूनलाइटिंग का मामला तेजी से सामने आया. हालांकि, मनी कंट्रोल ने इस मुद्दे पर CIEL HR सर्विस के सीईओ आदित्य नारायण मिश्रा से बात की तो उन्होंने कहा कि इसपर सवालिया होने से पहले एक चीज स्पष्ट है कि मूनलाइटिंग के तीन कारण हैं. 1- समय. 2- पैशन. 3- अतिरिक्त आय.
कंपनियों के लिए क्या है चुनौती
एक्सपर्ट्स के इसपर अलग-अलग राय हैं. ये राय इंडस्ट्रीज के हिसाब से हैं. कुछ का कहना है कि इस फॉर्मेट से इंडस्ट्री या कंपनी के काम करने का फंक्शन प्रभावित नहीं होता है. सामान्यतौर पर मूनलाइटिंग एक्स्ट्रा इनकम के लिए ही लोग करते हैं और अगर दूसरी इंडस्ट्री में ऐसा कर रहे हैं तो डेटा या किसी सूचना के लीक होने की आशंका फिलहाल तो नहीं दिखती है. लेकिन, उसी इंडस्ट्री में कर रहे हैं तो कॉन्फिडेंशियल डेटा लीक होने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है.
वर्क फ्रॉम होम की चुनौती
वहीं, कोई कर्मचारी अगर 8 घंटे के लिए दफ्तर आता है तो आप उसकी प्रोडक्टिविटी को आंखों के सामने देखते हैं. वहीं, जब वह घर से काम कर रहा है तो आप इसपर नजर नहीं रख पाते हैं.
क्या अब समय आ गया है कि इसे पेपर पर लाना चाहिए?
प्रेमजी द्वारा मूनलाइटिंग को चिटिंग करार देने के बाद इंडस्ट्री के दूसरे लोग इसपर अलग-अलग तर्कों के साथ विभाजित हैं.
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मनी कंट्रोल की रिपोर्ट में टीसीएस सर्विस के सीईओ एनजी सुब्रमण्यम ने इसे इथिकल इशू के तौर पर देखा है. वहीं टेक महिंद्रा के सीईओ सीपी गुरुनानी और टीवी मोहनदास पाई, इनफोसिस के पूर्व डायरेक्टर इसपर सहमत नहीं दिखते हैं और उनका मानना है कि इससे कोई बड़ा नुकसान नहीं है.
स्विगी ने दिया मैसेज?
दूसरी तरफ हाल ही में फूड और ग्रॉसरी डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विगी ने अपने कर्मचारियों को एक्सटर्नल प्रोजेक्ट लेने की अनुमति दे दी है. ऐसे में एक्सपर्ट का कहना है कि हर कंपनी को इसपर अपना स्पष्ट राय रखने की जरूरत है.
प्रॉब्लम कितनी बड़ी
एक्सपर्ट कहते हैं कि ये प्रॉब्लम कितनी बड़ी है, कोई नहीं जानता है. क्योंकि कोई भी कर्मचारी इसका खुलासा नहीं करता है कि वह अतिरिक्त क्या काम कर रहा है. वहीं, कुछ एक्सपर्ट का कहना है कि जबतक आप कर्मचारियों के पैशन वाला काम उन्हें नहीं देते हैं या फिर हाईब्रिड वर्क कल्चर नहीं खत्म होता है, आप इसे नहीं रोक सकते हैं.
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