इन म्यूचुअल फंड स्कीम में पैसा लगाने वालों को हुआ नुकसान! अब क्या करें निवेशक
म्यूचुअल फंड में पैसा लगाने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. लेकिन पिछले दो साल में जिन लोगों ने इक्विटी म्यूचुअल फंड में सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के जरिए पैसे लगाए थे, उनमें से कई अब नुकसान में हैं
News18Hindi
Updated: February 9, 2019, 4:54 AM IST
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Updated: February 9, 2019, 4:54 AM IST
म्यूचुअल फंड में पैसा लगाने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. लेकिन पिछले दो साल में जिन लोगों ने इक्विटी म्यूचुअल फंड में सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के जरिए पैसे लगाए थे, उनमें से कई अब नुकसान में हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, 137 इक्विटी म्यूचुअल फंडों में से 78 के एसआईपी निवेशकों को औसतन 1.5 फीसदी का नुकसान हुआ है. इसमें से ज्यादातर मिड और स्मॉल कैप फंड में 6 फीसदी का घाटा हुआ है. वहीं, लार्ज कैप फंड्स में 1.5 फीसदी की मजबूती आई है. आपको बता दें कि पिछले कुछ साल से इक्विटी म्यूचुअल फंड में एसआईपी रूट से काफी निवेश हो रहा है. दिसंबर 2019 में एसआईपी निवेश 8,022 करोड़ के साथ शिखर पर पहुंच गया था. मार्च 2015 में एसआईपी से 1,916 करोड़ रुपये का निवेश इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में हुआ था.
एम्फी के डेटा से पता चला है कि म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री ने 2018-19 के हर महीने में औसतन 9.46 लाख एसआईपी अकाउंट जोड़े हैं. एसआईपी का एवरेज साइज 3,150 रुपये मंथली रहा है. निवेशकों ने जनवरी से दिसंबर 2018 के बीच एसआईपी के जरिये इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में 88,667 करोड़ रुपये लगाए थे.
(1) समय-समय पर रकम निकालना सही रणनीति- मान लीजिए कि इन निगेटिव फंड्स में अगर आपने एक लाख रुपए लगाए होते तो 5 साल में आपकी रकम करीब 1.20 लाख रुपए हो जाती, जो एक औसत रिटर्न है. साथ ही पिछले एक साल में स्टॉक मार्केट के गिरने से आपकी रकम और कम हो जाती. इस पर एक्सपर्ट्स कहते हैं कि समय-समय पर फंड्स से रकम निकालनी चाहिए.(2) एक फंड से दूसरे फंड में शिफ्ट होना जरूरी- एक्सपर्ट्स कहते हैं कि लॉन्ग टर्म का मतलब यह नहीं होता है कि निगेटिव रिटर्न वाले फंड में बने रहें. बल्कि समय रहते एक फंड से दूसरे फंड में शिफ्ट होना सही रणनीति होती है.
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(3) अंडरपरफॉर्मर को पहचानने का तरीका- इन्वेस्टर्स की सबसे बड़ी मुश्किल होती है, पोर्टफोलियो में अंडरपरफॉर्मर को पहचानना. इसकी पहचान के लिए एक्सपर्ट कहते हैं कि हर क्वार्टर में इन्वेस्टर्स को रिटर्न चेक करने चाहिए. अगर किसी फंड का रिटर्न बेंचमार्क इंडेक्स के मुकाबले अच्छा रिटर्न दे रहा है और अगले दो क्वार्टर में भी इसकी परफॉर्मेंस इंडेक्स के बराबर ही रहने पर इन्वेस्टर्स को निवेशित रहना चाहिए. वहीं अगर फंड अंडरपरफॉर्म करता है. तब फंड से बाहर निकलना सही होगा.(4) अच्छे फंड्स चुनने का तरीका- बाजार में हजारों म्यूचुअल फंड की स्कीमें चल रही हैं. सभी दावा करती हैं कि वे सबसे अलग हैं. यही कारण है कि निवेशक बिना सोचे समझे म्यूचुअल फंड का चयन कर लेता है, जो आगे चलकर समस्या बन जाता है. हम आपकी इस समस्या का हल यहां पर करेंगे. आप सिर्फ कुछ नियमों का पालन कर अच्छे म्यूचुअल फंड का चुनाव कर निवेश कर सकते हैं. म्यूचुअल फंड के चयन में चार बातों को ध्यान में रखना होता है- परफॉर्मेंस, रिस्क, मैनेजमेंट और कॉस्ट.
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एम्फी के डेटा से पता चला है कि म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री ने 2018-19 के हर महीने में औसतन 9.46 लाख एसआईपी अकाउंट जोड़े हैं. एसआईपी का एवरेज साइज 3,150 रुपये मंथली रहा है. निवेशकों ने जनवरी से दिसंबर 2018 के बीच एसआईपी के जरिये इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में 88,667 करोड़ रुपये लगाए थे.
अब क्या करें निवेशक
(1) समय-समय पर रकम निकालना सही रणनीति- मान लीजिए कि इन निगेटिव फंड्स में अगर आपने एक लाख रुपए लगाए होते तो 5 साल में आपकी रकम करीब 1.20 लाख रुपए हो जाती, जो एक औसत रिटर्न है. साथ ही पिछले एक साल में स्टॉक मार्केट के गिरने से आपकी रकम और कम हो जाती. इस पर एक्सपर्ट्स कहते हैं कि समय-समय पर फंड्स से रकम निकालनी चाहिए.(2) एक फंड से दूसरे फंड में शिफ्ट होना जरूरी- एक्सपर्ट्स कहते हैं कि लॉन्ग टर्म का मतलब यह नहीं होता है कि निगेटिव रिटर्न वाले फंड में बने रहें. बल्कि समय रहते एक फंड से दूसरे फंड में शिफ्ट होना सही रणनीति होती है.
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(3) अंडरपरफॉर्मर को पहचानने का तरीका- इन्वेस्टर्स की सबसे बड़ी मुश्किल होती है, पोर्टफोलियो में अंडरपरफॉर्मर को पहचानना. इसकी पहचान के लिए एक्सपर्ट कहते हैं कि हर क्वार्टर में इन्वेस्टर्स को रिटर्न चेक करने चाहिए. अगर किसी फंड का रिटर्न बेंचमार्क इंडेक्स के मुकाबले अच्छा रिटर्न दे रहा है और अगले दो क्वार्टर में भी इसकी परफॉर्मेंस इंडेक्स के बराबर ही रहने पर इन्वेस्टर्स को निवेशित रहना चाहिए. वहीं अगर फंड अंडरपरफॉर्म करता है. तब फंड से बाहर निकलना सही होगा.
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