देश में 1 से 14 जून तक डीजल की कुल खपत 34 लाख टन रही है.
नई दिल्ली. भारतीय अर्थव्यवस्था जैसे-जैसे कोविड-19 महामारी के साये से बाहर निकल रही है, ईंधन की खपत भी तेज से बढ़ती जा रही है. जून के पहले पखवाड़े में पेट्रोल और डीजल की खपत पिछले साल से करीब डेढ़ गुना बढ़ चुकी है. पेट्रोलियम मंत्रालय ने बुधवार को आंकड़े जारी कर यह जानकारी दी है.
मंत्रालय के अनुसार, 1 से 14 जून तक देश में कुल 34 लाख टन डीजल की खपत हुई है, जो पिछले साल की समान अवधि से 47.8 फीसदी और मई महीने की समान अवधि से 12 फीसदी ज्यादा है. इसी तरह, पेट्रोल की खपत भी जून के पहले पखवाड़े में 12.8 लाख टन रही जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 54.2 फीसदी ज्यादा है. मंत्रालय ने यह आंकड़ा उन खबरों के बाद जारी किया है जिसमें कहा गया है कि देश के कई शहरों में पेट्रोल-डीजल की किल्लत चल रही. ईंधन की इस बढ़ती खपत का भारतीय अर्थव्यवस्था और उद्योगों पर क्या असर पड़ेगा, इसे लेकर विशेषज्ञों की राय ली गई.
खेती में कामकाज बढ़ने के संकेत
जाने-माने अर्थशास्त्री अरुण कुमार का कहना है कि डीजल की बिक्री में अचानक हुई वृद्धि का सबसे बड़ा कारण खेती-किसानी की गतिविधियों में तेजी आना है. ग्रामीण क्षेत्रों में खरीफ की फसलों की बुवाई अब शुरू हो गई है. किसानों को बस बारिश का इंतजार है और धान की फसल के लिए खेत तैयार किए जा रहे. किसान अभी खेतों की सिंचाई के लिए डीजल का इस्तेमाल करने के साथ जुताई के लिए ट्रैक्टर में भी डीजल की खपत कर रहे हैं. देश में अगर डीजल की खपत अचानक बढ़ गई है तो इसका सीधा मतलब है कि कृषि गतिविधियां अपने जोरों पर हैं.
अरुण कुमार ने कहा, ईंधन की खपत बढ़ने का अर्थव्यवस्था पर हमेशा पॉजिटिव असर पड़ता है. इससे इस बात के भी संकेत मिलते हैं कि औद्योगिक गतिविधियां भी अब सामान्य हो रहीं जिनमें ईंधन की मांग बढ़ रही है. डीजल का दूसरा सबसे ज्यादा उपयोग माल ढुलाई में होता है. अगर इसकी खपत बढ़ी है तो हम कह सकते हैं कि देश में उत्पादों की आपूर्ति और माल ढुलाई में भी तेजी आई है.
उत्पादन ने पकड़ी रफ्तार
कमोडिटी एक्सपर्ट और केडिया एडवाइजरी के डायरेक्टर अजय केडिया का कहना है कि डीजल की खपत बढ़ने से माल ढुलाई में तेजी आने के संकेत मिलते हैं. इसका असर सड़क परिवहन के रूप में ट्रकों में डीजल के ज्यादा इस्तेमाल के साथ रेलवे की मालगाड़ियों पर भी दिखता है. अगर माल की ढुलाई ज्यादा हो रही है तो इसका सीधा मतलब है कि फैक्ट्री का उत्पादन भी बढ़ा है. यानी औद्योगिक गतिविधियों में भी अब तेजी आ रही है.
कुल मिलाकर ईंधन की खपत बढ़ने का पूरी अर्थव्यवस्था पर पॉजिटिव असर पड़ता है. सबसे बड़ी बात ये है कि देश की जीडीपी में सबसे ज्यादा भूमिका निभाने वाले औद्योगिक जगत के साथ कृषि क्षेत्र को भी इसका लाभ मिल रहा है.
मार्च में हुई थी ईंधन की सबसे ज्यादा खपत
इस साल देश में अब तक ईंधन की सबसे ज्यादा खपत मार्च 2022 में हुईं थी. पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल के अनुसार, मार्च में डीजल की कुल खपत 77.1 लाख टन थी. इस दौरान पेट्रोल की कुल खपत 29.1 लाख टन रही. यह पेट्रोल की खपत का यह अब तक का रिकॉर्ड है, जबकि डीजल की अब तक सबसे ज्यादा खपत मई 2019 में रही थी. तब डीजल की कुल खपत 77.9 लाख टन रही थी.
…भारत को खरीदना होगा ज्यादा कच्चा तेल
ईंधन की मांग लगातार बढ़ने से भारत को ज्यादा मात्रा में कच्चा तेल खरीदना होगा. साथ ही मांग और खपत बढ़ने पर ग्लोबल मार्केट में इसकी कीमत पर भी असर पड़ेगा. ऐसे में भारत पर आयात बिल का बोझ भी बढ़ सकता है. कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से आयात बिल बढ़ता है और इससे राजकोषीय घाटा और चालू खाता घाटा फैलता है. भारत कच्चे तेल की अपनी जरूरत के लिए चूंकि ज़्यादातर आयात पर निर्भर है, लिहाजा कीमत में मामूली वृद्धि भी खजाने पर बड़ा असर डालती है. अगर कच्चे तेल की कीमत 10 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ी तो इससे जीडीपी की विकास डर 0.50% सुस्त हो जाएगी. भारत अपनी जरूरत का 85% कच्चा तेल आयत करता है और इसकी हिस्सेदारी बढ़ने से व्यापार घाटे की खाई भी और चौड़ी हो जाएगी, जो पहले से ही अपने रिकॉर्ड स्तर पर है.
अभी नहीं दिख रही राहत
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने हाल में जारी एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत सहित तमाम विकासशील अर्तव्यवस्थाओं पर महंगे क्रूड का असर दिखेगा. एजेंसी ने भारत सहित दुनियाभर के देशों में इधन की खपत बढ़ने का अनुमान लगाया था, जिससे माना जा रहा है कि फिलहाल कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से राहत मिलती नहीं दिख रही. ग्लोबल मार्केट में अभी कच्चा तेल 120 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है और देश में लगातार बढ़ती ईंधन की खपत इसकी कीमतों को और बढ़ाने का कारण बन सकती है. ओपेक की रिपोर्ट के मुताबिक, फिलहाल देश में रोजाना 50 लाख बैरल कच्चा तेल रोज खरीदा जा रहा है. इसमें सालाना 8.2% की वृद्धि हो रही है.
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