नई दिल्ली. मार्केट रेगुलेटर SEBI ने इनीशियल पब्लिक ऑफर (IPO) और उसके साथ आने वाले ऑफर-फॉर-सेल (OFS) से जुड़े नियमों को कड़ा किया है. सोमवार 17 जनवरी को जारी एक नोटिफिकेशन के मुताबिक, अब भविष्य के अज्ञात अधिग्रहणों (Unidentified Future Acquisitions) के लिए IPO से एक सीमित राशि ही जुटाई जा सकेगी. साथ ही प्रमुख शेयरहोल्डरों की तरफ से बिक्री के लिए जाने वाले शेयरों की संख्या को भी सीमित कर दिया गया है.
मनीकंट्रोल की एक खबर के अनुसार, SEBI ने एक अधिसूचना में कहा है कि एंकर निवेशकों की लॉक-इन अवधि 90 दिनों तक बढ़ा दी गई है और अब सामान्य कंपनी कामकाज के लिए रिजर्व किए गए फंड की निगरानी भी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां करेंगी.
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इसके अलावा सेबी ने नॉन-इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स (NII) के लिए शेयरों के आवंटन के तरीके को भी बदला है. इन सभी बदलावों को लागू करने के लिए सेबी ने ICDR (इश्यू ऑफ कैपिटल एंड डिस्क्लोजर रिक्वॉयरमेंट) नियमों के विभिन्न पहलुओं में बदलाव किए हैं. SEBI ने यह बदलाव ऐसे समय में किए हैं, जब नए जमाने की तमाम टेक्नोलॉजी कंपनियां IPO के जरिए पैसा जुटाने के लिए रेगुलेटर के पास तेजी से आवेदन जमा कर रही हैं.
SEBI ने कहा कि अगर कोई कंपनी अपने IPO डॉक्यूमेंट में भविष्य में किए जाने अधिग्रहण या निवेश को चिह्नित नहीं करती है तो इसके लिए प्रस्तावित राशि, IPO के जरिए जुटाई जाने वाली कुल रकम का 35 पर्सेंट से अधिक नहीं होगा. हालांकि, SEBI ने कहा है कि अगर भविष्य में किए जाने अधिग्रहण या निवेश का स्पष्ट उल्लेख है, तब यह पाबंदी लागू नहीं होगी.
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जानकारों का कहना है कि SEBI के नए नियमों से कुछ यूनिकॉर्न कंपनियों की धन जुटाने की योजना पर असर पड़ेगा. इसके अलावा SEBI ने कहा कि सामान्य कॉरपोरेट उद्देश्य के लिए जुटाई गई रकम की निगरानी को रेटिंग एजेंसियों के दायरे में लाया जाएगा.
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