नई दिल्ली. भारत में दवाओं की कीमतों पर नियंत्रण रखने वाली नियामकीय प्राधिकरण नेशनल फार्मास्युटिकल्स प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) के विश्लेषण में सामने आया है कि महंगी दवाओं पर ट्रेड मार्जिन 1000 फीसदी से भी अधिक लिया जा रहा है.
न्यूज18 की एक खबर के अनुसार, 50-100 रुपये वाली दवाओं में से 2.97 फीसदी दवाओं का ट्रेड मार्जिन 50-100 फीसदी और 1.25 फीसदी दवाओं का ट्रेड मार्जिन 100-200 फीसदी है. वहीं, 2.41 फीसदी दवाओं का मार्जिन 200-500 फीसदी है. एनपीपीए ने कहा है कि अगर बात 100 रुपये से अधिक की टैबलेट के बारे में करें तो 8 फीसदी दवाओं का मार्जिन 200-500 फीसदी के बीच है. 2.7 फीसदी दवाओं का मार्जिन 500-1000 फीसदी के बीच और 1.48 फीसदी दवाओं का मार्जिन 1000 फीसदी से ज्यादा है.
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एनपीपीए और दवा निर्माताओं की हुई बैठक
एनपीपीए ने शुक्रवार को दवा निर्माता कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की. इस बैठक में दवाओं के ट्रेड मार्जिन को तर्कसंगत बनाने के लिए ट्रेज मार्जिन रेशनलाइजेशन (टीएमआर) पर चर्चा हुई. इसके तहत सप्लाई चेन में ट्रेड मार्जिन की सीमा को तय कर दिया जाता है. ड्रग नियामक के विश्लेषण से पता चला है कि भारत में नॉन शेड्यूल दवाओं का सालाना टर्नओवर 1.37 लाख करोड़ रुपये से अधिक है. यह भारत में फार्मा सैक्टर के सालाना टर्नओवर 81 फीसदी है. न्यूज18 को एक सरकारी अधिकारी ने बताया है कि फार्मा कंपनियों ने इस बात को स्वीकारा है कि टीएमआर से दवाओं की कीमतों में बड़ी कमी आएगी. अधिकारी के अनुसार, टीएमआर पर किसी भी तरह का फैसला लिए जाने से पहले दवा उद्योग का सुझाव लिया जाएगा.
क्या होता है ट्रेड मार्जिन
दवा निर्माता जिस कीमत पर दवा को बेचता है और ग्राहक जिस कीमत पर दवा खरीदता है उसे ट्रेड मार्जिन कहते हैं. जैसे-जैसे दवा की कीमत बढ़ती है ट्रेड मार्जिन भी बढ़ता जाता है. दवा निर्माता से कंपनियों से ग्राहक तक दवा पहुचने में खुदरा दुकानदार के अलावा होलसेल डिस्ट्रीब्यूटर्स (थोक विक्रेता) भी होते हैं. अगर एनपीपीए की पहले से दवाओं की कीमत कम होती है तो देश की एक बड़ी आबादी को काफी राहत मिलेगी. सरकार भी दवाओं की कीमतों को काबू में लाने के लिए जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा दे रही है.
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