इन्फोसिस की नींव साल 1981 में रखी गई थी.
नई दिल्ली. कौन सोच सकता है कि 7 लोगों से मिलकर 10 हजार रुपये में शुरू की गई एक कंपनी आज 1.32 लाख करोड़ का बड़ा अम्पायर बन चुकी है. हम बात कर रहे हैं देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी इन्फोसिस (Infosys) की, जिसकी शुरुआत करीब चार दशक पहले हुई थी और तब से अब तक कंपनी ने कई मील के पत्थर गाड़े हैं और आज यह देश की सबसे सफल कंपनियों में से एक है.
बात 1981 की है, जब बैंगलूर में साथ काम करने वाले 7 युवा इंजीनियरों ने 10 हजार रुपये का फंड लगाकर इन्फोसिस की शुरुआत की थी. ये सभी साथी पाटनी कंप्यूटर सिस्टम में काम करते थे और उन्होंने आईटी सर्विस प्रोवाइडर के तौर पर इस कंपनी की नींव डाली. इसके फाउंडर्स में एनआर नारायण मूर्ति, नंदन नीलेकणि, एनएस राघवन, एस गोपालकृष्णन, एसडी शिबूलाल, के दिनेश और अशोक अरोड़ा शामिल थे.
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नारायण मूर्ति ने पत्नी से उधार लेकर शुरू की कंपनी
इन्फोसिस के प्रमुख संस्थापकों में शामिल एनआर नारायण मूर्ति ने कंपनी शुरू करने के लिए पत्नी सुधा से पैसे उधार लिए थे. बेहद सीमित संसाधनों के साथ शुरू हुई यह कंपनी धीरे-धीरे देश की सबसे सफल आईटी कंपनियों में शामिल हो गई. पाटनी कंप्यूटर नाम की जिस कंपनी में इसके संस्थापक काम करते थे, उसे बाद में आईगेट कॉर्प ने खरीद लिया और साल 2011 में केपजेमिनी ने इसका अधिग्रहण कर लिया.
दूसरी ओर, बिना अनुभव वाली इन्फोसिस ने साल दर साल सफलता की सीढि़यां चढ़ना जारी रखा. 31 मार्च, 2022 तक कंपनी का बाजार पूंजीकरण 16.3 अरब डॉलर (करीब 1.32 लाख करोड़ रुपये) पहुंच गया, जबकि कंपनी के पास कुल कर्मचारियों की संख्या 3.14 लाख हो गई.
जीडीपी में आईटी सेक्टर की 9 फीसदी हिस्सेदारी
कंपनी के आईटी इंडस्ट्री में चार दशक पूरे करने की खुशी में उसके को-फाउंडर्स और सीईओ सलिल पारेख ने बुधवार को आईटी सेक्टर की भविष्य की रणनीतियों पर मंथन किया. बीते वित्तवर्ष में भारत के आईटी क्षेत्र ने जीडीपी में 9 फीसदी से ज्यादा का योगदान दिया है और देश के कुल सेवा निर्यात में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 50 फीसदी से ज्यादा रही है.
अमेरिकी एक्सचेंज पर लिस्ट होने वाली पहली भारतीय कंपनी
इन्फोसिस ने बीते चार दशक में कई उपलब्धियां हासिल की हैं और यह साल 1999 में अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज Nasdaq पर लिस्ट होने वाली पहली भारतीय कंपनी बन गई थी. बीते साल जुलाई में इन्फोसिस 100 अरब डॉलर की मार्केट वैल्यू क्रॉस करने वाली टीसीएस के बाद दूसरी भारतीय आईटी कंपनी बन गई थी.
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इन सर्विसेज ने बनाया बादशाह
इन्फोसिस ने तकनीक से जुड़ी कई ऐसी सेवाएं अपने ग्राहकों को दी हैं, जिससे उसके कारोबार को रफ्तार मिली है. कंपनी की ‘Cobalt’ क्लाउड सर्विसेज प्लेटफॉर्म अपने कस्टमर को डिजिटल ट्रांसफॉर्म सर्विसेज मुहैया कराती है. इसी तरह ‘Cyber Next’ के जरिये कंपनी साइबर सिक्योरिटी सॉल्यूशंस देती है, जबकि ‘Tennis’ प्लेटफॉर्म डाटा एनालिटिक्स और एआई जैसी सेवाएं देता है. ‘Leap’ ऐप के जरिये कंपनी इंटरप्राइजेज को डेवलपमेंट और मैनेजमेंट प्लेटफॉर्म देती है.
साल 2014 में किया बड़ा बदलाव
वैसे तो कंपनी की स्थापना के बाद से ही इसके को-फाउंडर्स में शामिल रहे लोगों को ही अहम जिम्मेदारियां मिलती रही हैं. मूर्ति सहित 5 को-फाउंडर्स ने कंपनी को आगे बढ़ाया, क्योंकि दिनेश ने साल 2011 में कंपनी का बोर्ड छोड़ दिया था, जबकि अरोड़ा 1989 में ही बोर्ड से हट गए थे. मूर्ति के सीईओ पद से हटने के बाद कंपनी ने साल 2014 में पहली बार किसी बाहरी व्यक्ति को सीईओ बनाया और विशाल सिक्का के हाथों में यह जिम्मेदारी सौंपकर सभी को चौंका दिया. हालांकि, विवादों से भरा सिक्का का सफर भी तीन साल बाद खत्म हो गया.
अब तक 21 कंपनियों को खरीदा
ऐसा लग रहा था कि इन्फोसिस अब ढलान पर है, तभी नीलेकणि और सलिल पारेख ने अपने अनुभवों से इसमें नई जान फूंक दी. इन्फोसिस ने अब तक छोटी-बड़ी 21 फर्मों को खरीदकर उसका अधिग्रहण किया है. इसमें से 11 का अधिग्रहण तो सिर्फ 5 साल में ही किया गया. सबसे बड़ा अधिग्रहण साल 2012 में लोडस्टोन मैनेजमेंट कंसल्टेंट एजी का किया. यह सौदा 35.5 करोड़ डॉलर (करीब 3 हजार करोड़ रुपये) में पूरा हुआ.
ईसॉप अपनाने वाली पहली कंपनी
इन्फोसिस हमेशा इनोवेशन को अपनाने और कुछ नया करने वाली कंपनी के रूप में जानी जाती है. यही कारण रहा कि सल 1993 में पहली बार इस कंपनी ने भारतीय आईटी सेक्टर के कर्मचारियों को ईसॉप का तोहफा दिया. इसके तहत कंपनी के कर्मचारियों को उसके शेयरों में हिस्सेदारी मिलती है. हालांकि, निवेश फर्मों का कहना है कि एक ब्रांड के रूप में इन्फोसिस शुरुआत में कर्मचारियों को काफी आकर्षित करती है, लेकिन इंडस्ट्री के अन्य कंपनियों की तुलना में सैलरी और कर्मचारियों को बनाए रखने के मामले में पीछे रह जाती है.
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