दो दोस्तों ने मिलकर खड़ा कर दिया पोल्ट्री फार्मिंग का साम्राज्य, 30 करोड़ है सालाना टर्नओवर, ऐसे हुई थी शुरूआत
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West Champaran Friends Success Story: पश्चिम चंपारण के दो दोस्तों ने मिलकर पोल्ट्री फार्मिंग का साम्राज्य खड़ा कर लिया है. 9 हजार की उधारी से शुरू हुआ पोल्ट्री फार्मिंग का यह धंधा अब सालाना 30 करोड़ तक के टर्नओवर तक पहुंच गया है. अमित और रविशंकर तिवारी के पास फिलहाल 7 यूनिट्स हैं, जिनमें 70 हज़ार मुर्गे-मुर्गी उपलब्ध है. वहीं हेचरी की क्षमता प्रतिदिन 24 हजार चूजों की है और वर्तमान में प्रतिदिन 16 से 17 हजार चूज़े निकल रहे हैं.
पश्चिम चम्पारण. किसी भी कारोबार की शुरुआत करने वालों की संख्या तो अनगिनत होती है, लेकिन उसे सफलता के चरम तक ले जाने वाले गिने चुने ही होते हैं. आज हम आपको बिहार के पश्चिम चम्पारण ज़िले के दो ऐसे दोस्तों की कहानी बता रहे हैं, जिन्होंने बाज़ार से 9 हज़ार रूपए की उधारी लेकर बेहद छोटे स्तर पर पोल्ट्रीफार्मिंग शुरू की. करीब 5 वर्षों तक संघर्ष करने के बाद वर्ष 2009 में उन्होंने अपनी खुद की कमाई से ब्रायलर मुर्गे की पहली यूनिट डाली.
कारोबार को आगे बढ़ाते हुए वर्ष 2017 में उन्होंने एक ऐसी यूनिट डाल ली, जहां से अब वो खुद ही चूज़े से मुर्गी तैयार कर बाज़ार में उसकी सप्लाई करने लगे. आज आलम यह है कि सालाना 30 करोड़ के कारोबार के साथ वो हर दिन क़रीब 16 हज़ार चूज़े तथा 600 किलो तक मुर्गे-मुर्गियों की सप्लाई बिहार के कई ज़िलों सहित उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी कर रहे हैं.
कर्ज़ लेकर शुरू किया कारोबार
अमित बताते हैं कि इस जर्नी की शुरुआत उन्होंने वर्ष 2003 में की. स्थाई तौर पर वो बिहार के शिवहर ज़िले के रहने वाले हैं, लेकिन वर्ष 2003 में वो कारोबार की तलाश में शिवहर से पश्चिम चम्पारण ज़िला आ गए. यहां आकर उन्होंने बेहद छोटे स्तर से पोल्ट्री फार्मिंग की शुरुआत की. कारोबार को शुरू करने के लिए उन्हें बाज़ार से क़रीब 9 हज़ार रुपए का कर्ज़ लेना पड़ा. पोल्ट्री फार्म में क़रीब 300 ब्रायलर मुर्गे मुर्गियों को रखकर उन्होंने इसका व्यापार शुरू किया. हालांकि नया करोबार होने की वजह से उन्हें इसकी कुछ जानकारी नहीं थी.
दो दोस्तों ने मिलकर कारोबार को बनाया सफल
कारोबार के दौरान ही अमित की मुलाकात हरनाटांड़ निवासी रविशंकर तिवारी उर्फ गांधी तिवारी से हुई. मज़े की बात यह रही कि रविशंकर पोल्ट्री फार्मिंग के उस्ताद थे. कायदे से उन्होंने इसकी पढ़ाई भी की थी. अब जब अमित को उनका साथ मिला, तब दोनों ने मिलकर पोल्ट्री फार्मिंग के करोबार को संभलना शुरू किया और धीरे धीरे इसमें आगे बढ़ते गए. एक ने अपने ज्ञान तथा दूसरे ने अपने हौंसले को एक ही प्लेटफॉर्म पर लाकर बहुत बड़ा कारनामा कर दिखाया. वर्ष 2009 में दोनों दोस्तों ने मिलकर अपने पहले पोल्ट्री फार्म की नींव रखी. शुरुआत इतनी बेहतरीन रही कि कारोबार आगे बढ़ता गया. वर्ष 2017 में उन्होंने ब्रीडर की भी यूनिट डाल ली. जहां से अब वो खुद ही ब्रायलर का प्रोडक्शन करने लगें.
अमित के पास है सात ब्रायलर यूनिट्स
अमित बताते हैं कि वर्तमान में उनके पास ब्रीडर की कुल चार यूनिट्स हैं. एक यूनिट में क़रीब 12 हज़ार मुर्गे मुर्गियों को रखा जाता है. इनसे मिलने वाले अंडों को बाज़ार में न बेचकर, उनसे चूज़े निकाले जाते हैं. बड़े होने पर यह चूज़े ब्रायलर के रूप में बेचे जाते हैं. मज़े की बात यह है कि अमित के पास सिर्फ ब्रायलर की कुल 7 यूनिट्स हैं, जिनमें 70 हज़ार मुर्गे मुर्गी उपलब्ध है. जहां तक बात हेचरी की है, हो उनके हेचरी की क्षमता प्रतिदिन 24 हज़ार चूजों की है, जिनमें वर्तमान में प्रतिदिन 16 से 17 हज़ार चूज़े निकाले जाते हैं.
30 करोड़ है सालाना ट्रांजैक्शन
बता दें कि दोनों दोस्तों ने एकसाथ मिलकर पोल्ट्री फार्मिंग का साम्राज्य खड़ा कर लिया है. इनके हर एक यूनिट क़रीब 4 से 5 एकड़ में फैले हुए हैं. यहां से निकलने वाले मुर्गे मुर्गियों एवं चूज़ों को बिहार के क़रीब हर एक ज़िले सहित उत्तर प्रदेश के कुशीनगर एवं गोंडा तक सप्लाई किया जाता है. कभी 9 हज़ार की उधारी से शुरू करने वाले करोबार को आज इन दोनों दोस्तों ने सालाना 30 करोड़ तक के ट्रांजैक्शन तक पहुंचा दिया है.
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