प्रदूषण उत्सर्जन परीक्षण में हेरफेर करने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका, जानिए पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट
जर्मन कार विनिर्माता स्कोडा (Škoda) ऑटो फॉक्सवैगन इंडिया की एक याचिका को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में खारिज कर दिया गया है. इन कंपनियों पर आरोप है कि उत्सर्जन परीक्षणों में हेरफेर करने के लिए सॉफ्टवेयर आधारित धोखा देने वाले उपकरण का इस्तेमाल करती हैं.
- भाषा
- Last Updated: November 26, 2020, 3:40 PM IST
नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को जर्मन कार विनिर्माता स्कोडा ऑटो फॉक्सवैगन इंडिया की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें एक उपभोक्ता द्वारा उसकी डीजल कार में कथित रूप से ‘धोखा देने वाले उपकरण’ के इस्तेमाल पर उत्तर प्रदेश में दर्ज एफआईआर को चुनौती दी गई थी. मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन की पीठ ने यह फैसला सुनाया और ऑटोमोबाइल निर्माता की याचिका को खारिज कर दिया.
कंपनियां प्रदूषण उत्सर्जन (Pollution Emission) परीक्षणों में हेरफेर करने के लिए सॉफ्टवेयर आधारित धोखा देने वाले उपकरण का इस्तेमाल करती हैं. फॉक्सवैगन पर कुछ साल पहले वैश्विक स्तर पर इस तरह के कदाचार का आरोप लगा था.
इससे पहले चार नवंबर को शीर्ष न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था कि मामले की जांच क्यों नहीं होनी चाहिए. सुनवाई के दौरान ऑटोमोबाइल विनिर्माता ने दलील दी कि इस बारे में दिसंबर 2015 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) में शिकायत की गई थी, और मार्च 2019 में उस पर जुर्माना लगाया गया, जिसे शीर्ष न्यायालय ने रोक दिया था.
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इस संबंध में उत्तर प्रदेश में भी एक प्राथमिकी दर्ज की गई, जिसे रद्द कराने के लिए कंपनी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) का दरवाजा खटखटाया. उच्च न्यायालय ने FIR को रद्द करने से इनकार करते हुए स्कोडा की याचिका को खारिज कर दिया था. इसके बाद कंपनी ने उच्चतम न्यायालय में अपील की, जहां उसे कोई राहत नहीं मिल सकी.
इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने चार नवंबर को स्कोडा फॉक्सवैगन इंडिया की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. कंपनी ने अपने खिलाफ उत्तर प्रदेश में एक ग्राहक की प्राथमिकी (FIR) को चुनौती दी थी. ग्राहक ने कंपनी की डीजल कार में उत्सर्जन स्तर छिपाने के लिये ‘धोखाधड़ी वाले उपकरण’ के उपयोग के आरोप में यह प्राथमिकी दर्ज करायी है.
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पिछली सुनवाई में पीठ ने कहा था कि प्रथम दृष्ट्या मामले में जांच जारी रहनी चाहिए. न्यायालय ने कहा, ‘‘आपराधिक जांच से निपटने को लेकर कई रास्ते हैं... हम जानते हैं कि फॉक्सवैगन वाहन बनाने वाली नामी कंपनी है. हम उसके प्रशंसक हैं... लेकिन आप यहां आये हैं, इस समय यह गलत है.’’
स्कोडा की तरफ से पेश वरिठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने शीर्ष अदालत से कहा था कि जब मामला एनजीटी और शीर्ष अदालत देख रही है, ऐसे में नया मामला कैसे शुरू किया जा सकता है. हालांकि शीर्ष अदालत ने कहा कि ये दोनों अलग-अलग मामले हैं. सिंघवी ने कहा कि ग्राहक ने वाहन 2018 में खरीदा और कंपनी को कोई शिकायत नहीं की.
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इससे पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि वाहन धोखाधड़ी वाले उपकरण का उपयोग हुआ हो या नहीं, यह जांच का विषय है और अदालत उच्चतम न्यायालय के अंतरिम आदेश के गलत व्याख्या के आधार पर इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती.
कंपनियां प्रदूषण उत्सर्जन (Pollution Emission) परीक्षणों में हेरफेर करने के लिए सॉफ्टवेयर आधारित धोखा देने वाले उपकरण का इस्तेमाल करती हैं. फॉक्सवैगन पर कुछ साल पहले वैश्विक स्तर पर इस तरह के कदाचार का आरोप लगा था.
इससे पहले चार नवंबर को शीर्ष न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था कि मामले की जांच क्यों नहीं होनी चाहिए. सुनवाई के दौरान ऑटोमोबाइल विनिर्माता ने दलील दी कि इस बारे में दिसंबर 2015 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) में शिकायत की गई थी, और मार्च 2019 में उस पर जुर्माना लगाया गया, जिसे शीर्ष न्यायालय ने रोक दिया था.
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इस संबंध में उत्तर प्रदेश में भी एक प्राथमिकी दर्ज की गई, जिसे रद्द कराने के लिए कंपनी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) का दरवाजा खटखटाया. उच्च न्यायालय ने FIR को रद्द करने से इनकार करते हुए स्कोडा की याचिका को खारिज कर दिया था. इसके बाद कंपनी ने उच्चतम न्यायालय में अपील की, जहां उसे कोई राहत नहीं मिल सकी.
इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने चार नवंबर को स्कोडा फॉक्सवैगन इंडिया की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. कंपनी ने अपने खिलाफ उत्तर प्रदेश में एक ग्राहक की प्राथमिकी (FIR) को चुनौती दी थी. ग्राहक ने कंपनी की डीजल कार में उत्सर्जन स्तर छिपाने के लिये ‘धोखाधड़ी वाले उपकरण’ के उपयोग के आरोप में यह प्राथमिकी दर्ज करायी है.
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पिछली सुनवाई में पीठ ने कहा था कि प्रथम दृष्ट्या मामले में जांच जारी रहनी चाहिए. न्यायालय ने कहा, ‘‘आपराधिक जांच से निपटने को लेकर कई रास्ते हैं... हम जानते हैं कि फॉक्सवैगन वाहन बनाने वाली नामी कंपनी है. हम उसके प्रशंसक हैं... लेकिन आप यहां आये हैं, इस समय यह गलत है.’’
स्कोडा की तरफ से पेश वरिठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने शीर्ष अदालत से कहा था कि जब मामला एनजीटी और शीर्ष अदालत देख रही है, ऐसे में नया मामला कैसे शुरू किया जा सकता है. हालांकि शीर्ष अदालत ने कहा कि ये दोनों अलग-अलग मामले हैं. सिंघवी ने कहा कि ग्राहक ने वाहन 2018 में खरीदा और कंपनी को कोई शिकायत नहीं की.
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इससे पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि वाहन धोखाधड़ी वाले उपकरण का उपयोग हुआ हो या नहीं, यह जांच का विषय है और अदालत उच्चतम न्यायालय के अंतरिम आदेश के गलत व्याख्या के आधार पर इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती.