NIIST कृषि-अपशिष्ट से शाकाहारी चमड़ा विकसित करने में सफल रहा है. (प्रतीकात्मक फोटो: Canva)
नई दिल्ली. देश में चमड़े से बने बेल्ट और पर्स समेत कई आइट्मस की बड़ी मांग होती है. हालांकि, कुछ लोग चमड़े से बनी चीजों से परहेज करते हैं. क्योंकि चमड़ा मृत पशुओं के शरीर की त्वचा होती है. ऐसे लोगों के लिए लेदर की एक और किस्म बाजार में आने वाली है. खास बात है कि यह चमड़ा जानवारों के शरीर की स्किन से नहीं बल्कि कचरे और फलों के छिलके से तैयार होगा.
नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर इंटरडिसिप्लिनरी साइंस एंड टेक्नोलॉजी (NIIST) कृषि-अपशिष्ट से शाकाहारी चमड़ा विकसित करने में सफल रहा है और इस टेक्नोलॉजी से बने प्रोडक्ट्स को बाजार में उतारने की तैयारी कर रहा है. एनआईआईएसटी ने आम के छिलके या केले के स्यूडोस्टेम को कचरे के रूप में फेंक दिया जाता है, उन्हें हैंड बैग, जूते, पर्स और बेल्ट में बदल दिया है.
(NIIST) कृषि-अपशिष्ट से शाकाहारी चमड़ा विकसित करने में सफल रहा है.
इस टेक्नोलॉजी से बने लेदर प्रोडक्ट्स को बाजार में उतारने की तैयारी है.
आम और अनानास के छिलसे बैग, बेल्ट, पर्स और सैंडल बनाए गए हैं.
नई तकनीक से चमड़ा उद्योग में आएगी क्रांति
कुछ साल पहले NIIST ने पर्यावरण के अनुकूल इस तकनीक पर काम शुरू किया था और अब शाकाहारी चमड़े के निर्माण की तकनीक सोमवार को मुंबई एक कंपनी को सौंपेगा. संस्थान परिसर में सोमवार से शुरू होने वाले 6 दिवसीय ‘वन वीक वन लैब’ कार्यक्रम के दौरान इस टेक्नोलॉजी के ट्रांसफर की योजना बनाई गई है.
एनआईआईएसटी ने सिंगल-यूज वाले प्लास्टिक के आसान विकल्प के रूप में कृषि-अवशेषों से टेबलवेयर बनाकर सुर्खियां बटोरी थी. NIIST में इस प्रोजेक्ट को लीड करने वाले साइंटिस्ट अंजिन्युलु कोथाकोटा ने कहा, “पशु-आधारित और सिंथेटिक चमड़े के मुकाबले शाकाहारी चमड़े को एक अलग प्रक्रिया का उपयोग करके निर्मित किया जाता है.”
कम लागत और पर्यावरण के लिए अनुकूल
डॉ. कोथकोटा ने बताया “NIIST ने आम और अनानास के छिलके, कैक्टस, केले के छिलके, चावल के भूसे, खसखस घास की मदद से बैग, बेल्ट, पर्स और सैंडल बनाए हैं. हम किसी भी कृषि अपशिष्ट का उपयोग कर सकते हैं.” बता दें कि एनआईआईएसटी की इस पहल का उद्देश्य पशु-आधारित और सिंथेटिक चमड़ा उद्योगों के व्यावहारिक विकल्पों को लोकप्रिय बनाना है.
”हम इसे बनाने के लिए गीली प्रक्रिया का उपयोग करते हैं. उत्पादन के तरीके सिंथेटिक चमड़े की तुलना में ज्यादा पर्यावरण के अनुकूल और लागत प्रभावी हैं, क्योंकि इसमें खतरनाक रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता है.” NIIST के अनुसार, प्लांट-आधारित ‘चमड़ा’ नरम, टिकाऊ होता है और स्थिरता व तापमान प्रतिरोध प्रदर्शित करता है.
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